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Introduction to Horoscope & its Houses, पाठ 1. कुण्डली एवं भाव परिचय

जन्म कुंडली किसी निश्चित स्थान पर किसी निश्चित समय के लिए आकाश का नक्शा होती है उस समय जो भचक्र की राशि पूर्व क्षितिज पर उदय होती है उसका संकेत करती है जिसे लग्न की संज्ञा दी जाती है इसे प्रथम भाव के नाम से भी जाना जाता है और उसे लग्न भी कहते है ।

कुंडली का स्वरूप

कुंडली
कुंडली का स्वरूप

ऊपरोक्त चित्र मे उदाहरण कुंडली बनाई गई है जिसमे की दिखाया गया है की लग्न मे मेष राशि है और उसके आगे जैसे ही हम घड़ी की विपरीत दिशा यानि की Anti clockwise direction मे आगे 2 नंबर यानि की वृष राशि आएगी , उसके बाद तीन नंबर मे मिथुन और इसी प्रकार क्रम से आगे जाने पर सभी 12 रशिया जोकि मीन तक है मे खतम होती है ।

ब्रह्माण्ड को जिस प्रकार 12 राशियों में बांटा गया है उसी प्रकार काल पुरुष को 12 भावों में भी बांटा गया है | भाव स्थिर है | प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है। जातक के जन्म के समय पूर्व में जो राशि उदित होती है उस राशि की संख्या को लग्न या प्रथम में लिखा जाता है उसके बाद क्रमशः उदय होने वाली राशियों को द्वितीय, तृतीय भाव में लिखा जाता है। भाव पूर्व से उत्तर पश्चिम दिशा में चलते हैं, इसको विपरीत घड़ी गति भी कह सकते हैं |वह ग्रह जो किसी भाव के कार्य को करता है उसे उस भाव का कारक ग्रहकहते हैं। भाव के कार्य को भाव का कारकत्व कहते है।

कारक ग्रह

  1. प्रथम भाव तनु भाव सूर्य चन्द्र
  2. द्वितीय भाव धन भाव बृहस्पति, बुध
  3. तृतीय भाव सहज भाव मंगल, शनि
  4. चतुर्थ भाव सुख भाव चन्द्रमा बुध, शुक्र
  5. पंचम भाव पुत्र भाव बृहस्पति
  6. षष्ठ भाव शत्रु भाव मंगल, शनि बु.
  7. सप्तम भाव पत्नी भाव शुक्र
  8. अष्टम भाव आयु भाव, रहस्य , छुपा हुआ शनि
  9. नवम भाव धर्म, भाग्य, पितृ भाव बू. सू ,
  10. दशम भाव कर्म भाव बु.सू,श.-व्र ,म
  11. एकादश भाव लाभ भाव बृहस्पति
  12. द्वादश भाव व्यय भाव शनि, शुक्र

अन्य ज्योतिष विद्वानों ने मत के अन्य कारक भी माने हैं जैसे- प्रथम भाव का कारक सूर्य के साथ चन्द्रमा भी है| द्वितीय भाव का कारक बुध वाक पटुता के कारण, तृतीय भाव का शनि-आयु कारक, चतुर्थ भाव का शुक्र-वाहन का कारक, षष्ठ भाव का बुध- मामा का कारक, दशम भाव का मंगल- पराक्रम, तकनीकी शिक्षा, प्रतियोगता का कारक तथा द्वादश भाव का शुक्र सम्भोग का कारक ग्रह भी माना है।

गृहों के कारक तत्व

ग्रहों को भी नैसर्गिक कुछ काम सौंपे गये हैं। उनका भी विचार करना आवश्यक है।

सूर्य

आत्मा, अहम, सहानुभूति प्रभाव, यश, स्वास्थ्य, दाएँ नेत्र, दिन, ऊर्जा, पिता, राजा, राजनीति, चिकित्सा विज्ञान गौरव, पराक्रम का कारक है

चन्द्रमा
मन, रुचि, सम्मान, निद्रा, प्रासननता, माता, सत्ता, धन, यात्रा, जल का कारक है.

मंगल

शक्ति, साहस, पराक्रम, प्रतियोगता, क्रोध, उत्तेजना, षडयन्त्र, शत्रु, विपक्ष विवाद, शस्त्र, सेनाध्यक्ष, युद्ध दुर्घटना जलना, घाव, भूमि, अचल सम्पत्ति छोटा
भाई, चाचा के लड़के, नेता, पुलिस सर्जन, मैकेनिकल इंजीनियर का कारक है।

बुध

बुद्धिमता, वाणी पटुता तर्क अभिव्यक्ति, शिक्षा, शिखण, गणित डाकिया, ज्योतिषी, लेखाकार, व्यापार, कमीशन एजेंट, प्रकाशन राजनीति में मध्यवर्ती व्यक्ति,नृत्य, नाटक, वस्तुओं का मिश्रण प्त्तेवाले पेड़, मूल्यवान पत्थरों की परीक्षा मामा, मित्र सम्बन्धि आदि।

बृहस्पति

विवेक, बुद्धिमता, शिक्षण, शरीर की मांसलता, धार्मिक कार्य ईश्वर के प्रति निष्ठा, बड़ा भाई, पवित्र स्थान, दार्शनिकता, धार्मिक ग्रन्थों का पठन, पाठन, गुरु, अध्यापक, धन बैंक, तीना कम्पनियां , दान देना, परोपकार फलदार वृक्ष, पुत्र
शुक्र

पति ,/ पत्नी, विवाह, रतिक्रिया, प्रम सम्बन्ध, संगीत, काव्य, इत्र सुगन्ध, घर की सजावट ऐश्वर्य, दूसरों के साथ सहयोग, फूल फूलदार वृक्ष, पौधे सौंदर्य, आखों की रोशनी, आभूषण, जलीय स्थान, सिल्क का कपड़ा, सफेद रंग, वाहन, शयनकक्ष आदि सुख सामग्री आदि |

शनि

आयु, दुख, रोग, मृत्यु संकट अनादर, गरीबी, आवजीवका, अनैतिक तथा अधार्मिक कार्य, विदेशी भाषा, विज्ञान तथा तकनीकी शिक्षा मेहनत वाले कार्य,कृषीगत व्यवसाय, लोहा, तेल, खनिज पदार्थ, कर्मचारी, सेवक नौकरियां,क्रूर कार्य, वृद्ध , अंग-भंग, लोभ, लालच बिस्तरे पर पड़े रहना, चार दिवारी में बन्द रहना, जेल, हास्पीटल में पड़े रहना, वायु, जोड़ों के दर्द, कठोरवाणी आदि |

राहु

दादा का कारक ग्रह है। कठोर वाणी, जुआ, भ्रामक तर्क, गतिशीलता, यात्राएं,विजातीय लोग, विदेशी लोग, विष, चोरी, दुष्टता, विधवा, त्वचा की बिमारियां होठ, धार्मिक यात्राएं दर्द आदि।

केतु

नाना का कारक गृह है | दर्द, ज्वर, घाव, शत्रुओं को नुकसान पहुंचाना, तांत्रिक,तन्त्र, जादू-टोना, कुत्ता, सींग वाले पशु, बहुरंगी पक्षी, मोक्ष का कारक ग्रह माना जाता है ।

अब तक हमने इस अध्याय में भाव, भावों कारक तथा ग्रहों के कारकत्व पढ़े |इनका क्या लाभ है मानो हम चतुर्थ भाव का विश्लेषण कर रहे हैं | चतुर्थ भाव तथा चतुर्थश पीड़ित है तो चतुर्थ भाव वाहन, सुख, अचल सम्पत्ति, भूमि, शिक्षा तथा माता को दर्शाता है, किसको कष्ट होगा या किसके द्वारा कष्ट प्राप्त होगा? इसका निर्णय कारक ग्रह करता है | यदि चतुर्थ भाव तथा भावेश के साथ चन्द्रमा पीड़ित है तो माता को कष्ट, शुक्र पीड़ित है तो वाहन के द्वारा कष्ट, बुध पीड़ित है तो शिक्षा में कष्ट होता है। इस प्रकार घटना का सम्बन्ध भाव, भावेश तथा कारक ग्रह से होता है।

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