• Class -2

Description of Houses, भावों की सज्ञाएँ

हम जानते हैं कि भाव बारह होते हैं। उन भावों को विभिन्‍न नामों से जानाजाता है। इस अध्याय में हम उनका परिचय देंगे |

जन्म कुण्डली में लग्न केन्द्र बिन्दु होता है। महर्षियों ने जीवन को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष को प्राप्त करने का साधन माना है | इसलिए कुण्डली को भी धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के तीन परिराशि में बांटा है।

धर्म लग्न 5 9 भाव

अर्थ 2 6 10 भाव

काम 3 7 11 भाव

मोक्ष 4 8 12 भाव

केन्द्र भाव 1 4 7 10 भाव
त्रिकोण भाव 1 5 9 भाव

पणफर भाव 2 5 8 11 भाव
अपोक्लिम भाव 3 6 9 12 भाव
चतुरस्र भाव 4 8 भाव

उपचय भाव 3 6 10 11 भाव
अनुपचय भाव 1 2 4 5 7 8 9 12 भाव
त्रिकया दुष्ट भाव 6 8 12 भाव

पतित भाव 6 12 भाव

मारक भाव 2 7 भाव

आयु भाव 3 8 भाव

योग कारक ग्रह

यदि कोई ग्रह केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होता है तो वह ग्रह योगकारक कहलाता है

जैसे
(क) वृष लग्न शनि 9 तथा 10 भाव का स्वामी
(ख) तुला लग्न शनि 4 तथा 5 भाव का स्वामी

(ग)कर्क लग्न मंगल 5 तथा 10 भाव का स्वामी
(घ) सिंह लग्न मंगल 4 तथा 9 भाव का स्वामी

(ड़) मकर लग्न शुक्र 5 तथा 10 भाव का स्वामी

(च) कुम्भ लग्न शुक्र 4 तथा 9 भाव का स्वामी

केन्द्राधिपति दोष

जब कोई शुभ ग्रह जैसे बृहस्पति, शुक्र, शुभ बुध, शुभ चन्द्रमा केन्द्र का स्वामी हो तो उसमें केन्द्रधिपति दोष आ जाता है।

जब शुभ ग्रह केन्द्र का स्वामी होता है तो शुभ ग्रह अपना शुभ फल देने में असमर्थ हो जाता है। इसका अर्थ यह नहीं कि वह अशुभ फल देता है|
शुभफल नहीं देता वह सम हो जाता है। सम ग्रह जिस भाव में स्थित होताहै या युति या दृष्टि बनाता है या उसकी दूसरी राशि जिस भाव में पड़ती है
उसके अनुसार फल देता है। अशुभ ग्रह केन्द्र के स्वामी होकर अशुभ फल नहीं देते। वे भी सम हो जाते हैं |

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