- Class-8
द्वादश भावों में रहने वाले नवग्रहों का फल
सूर्य
1. लग्न (प्रथम) में सूर्य हो तो जातक स्वाभिमानी, चंचल, कृशदेही, प्रवासी उन्नत नासिका, विशाल ललाटवाला, पित्त-वातरोगी, शूरवीर, अस्थिर सम्पत्तिवाला एवं अल्पकेशी होता है|
2. द्वितीय भाव में सूर्य हो तो जातक भाग्यवान्, सम्पत्तिवानू, मुखरोगी, झगड़ालू, नेत्रकर्णदन्तरोगी, राजभीरु, घरेलू जीवन दुःखी एवं स्त्री के लिए कुटुम्बियों से झगड़ने वाला होता है।
3. तृतीय भाव में सूर्य हो तो जातक, सरकार से सम्मान प्राप्त, कवि, भाई और सम्बन्धियों के कारण दुःखी, पराक्रमी, प्रतापशाली, लब्धप्रतिष्ठ एवं बलवान् होता है|
4. चतुर्थभाव में सूर्य हो तो जातक परमसुन्दर, कठोर, पितृधननाशक, चिंताग्रस्त,भाईयों से वैर करने वाला, गुप्तविद्या प्रिय एवं वाहन सुखहीन होता है।
5. पंचमभाव में सूर्य हो तो जातक अल्पसन्तितिवान्, बुद्धिमानू, सदाचारी, रोगी, दुखी, शीघ्र क्रोधी एवं वंचक होता है।
6. षष्ठभाव में सूर्य हो तो जतक वीर्यवान, मातुल कष्टकारक, तेजस्वी,शत्रुनाशक, बलवान, श्रीमान, निरोगी एवं न्यायवान् होता है |
7. सप्तम भाव में सूर्य हो तो जातक चिन्तायुक्त राज्य से अपमानित, आत्मरत,कठोर, स्वाभिमानी एवं विवाहित जीवन दुःखी होता है |
8. अष्टमभाव में सूर्य हो तो जातक धैर्यहीन, निबुंद्धि, सुखी, धनी, क्रोधी,चिन्तायुक्त एवं पित्तरोगी होता है|
9. नवमभाव में सूर्य होतो जातक साहसी, ज्योतिषी, नेता सदाचारी,तपस्वीयोगी, वाहनसुख, भृत्यसुख एवं पिता के लिए अशुभ होता है।
10. दशमभाव में सूर्य हो तो जातक-प्रतापी, व्यवसाय कुशल, राजमान्य लब्ध-प्रतिष्ठ, राजमन्त्री, उदार, ऐश्वर्य सम्पन्न एवं लोकमान्य होता है।
11. ग्यारव्हे भाव में सूर्य हो तो जातक धनी, बलवान, सुखी, स्वाभिमानी, तपस्वी, मितभाषी, सदाचारी, योगी, अल्पसन्तति एवं उदररोगी होता है।
12. बारहवें भाव में सूर्य हो तो जातक वाम नेत्र तथा मस्तक रोगी , आलसी, उदासीन,परदेशवासी, मित्र-द्वेषी एवं कृश शरीर होता है।
चन्द्रमा
1. लग्न (प्रथम) में चन्द्रमा हो तो जातक बलवान, सुखी, स्थूलशरीर, गान वाद्यप्रिय, ऐश्वर्यशाली, व्यवसायी, उदार, धनी एवं विद्वान होता है
2. द्वितीयभाव में चन्द्रमा हो तो जातक परदेशवासी, भोगी, सुन्दर मधुरभाषी, भाग्यवानु, सहनशील एवं शान्तिप्रिय होता है।
3. तृतीय,भाव में चन्द्रमा हो तो जातक आस्तिक, तपस्वी, प्रसन्न, कफरोगी, मधुरभाषी प्रेमी, भाईयों और बहिनों का रक्षक, साहसी, विद्वान, एवं कंजूस होता है।
4. चतुर्थभाव में चन्द्रमा हो तो जातक सुखी, मानी, दानी, उदार, रोगरहित,राजद्देषवर्जित, कृषक, विवाह के पश्चात् भाग्योदयी, जलजीवी एवं बुद्धिमान होता है।
5. पंचमभाव में चन्द्रमा हो तो जातक सदाचारी, कन्यासन्ततिवान्, चंचल, सट्टे से धन कमानेवाला एवं क्षमाशील होता है।
6. षष्ठभाव में चन्द्रमा हो तो जातक अल्पायु, आसक्त, कफरोगी, खर्चीले स्वभाववाला, नेत्ररोगी एवं भृत्यप्रिय होता है।
7. सप्तमभाव में चन्द्रमा हो तो जातक सभ्य, धैर्यवान् नेता, विचारक, प्रावासी, जलयात्रा करने वाला, व्यापारी, अभिमानी, वकील, कीर्तिमान, शीतल स्वभाववाला एवं स्फूर्तिवान् होता है।
8. आठवेंभाव में चन्द्रमा हो तो जातक कामी, व्यापार से लाभवाला, विकाग्रस्त प्रमेहमरोगी, वाचाल, स्वाभिमानी, बन्धन से दुखी होने वाला एवं ईर्ष्यलु होताहै|
9. नवेंभाव में चन्द्रमा हो तो जातक विद्वान, विद्यपप्रिय, चंचल, न्यायी, प्रवास-प्रिय, कार्यशील,धर्मात्मा, सन्तति-सम्पत्तियुक्त सुखी, साहसी एवं अल्पभ्रातृवान् होता है।
10. दसवेंभाव में चन्द्रमा हो तो जातक कार्यकुशल, व्यापारी, कार्यपरायण, सुखी, यशस्वी, विद्वानू, कुल-दीपक, दयालु, बुद्धिमान,लोकहितैषी, मानी, प्रसननचित्त एवं दीर्घायु होता है।
11. ग्यारहवें भाव में चन्द्रमा हो तो जातक गुणी, चंचलबुद्धि, सन्तति और सम्पत्ति से युक्त, सुखी, यशस्वी, लोकप्रिय, दीर्घायु, मन्त्रज्ञ, परदेशप्रिय एवं राज्यकार्यदक्ष होता है|
12. बारहवें भाव में चन्द्रमा हो तो जातक मृदुभाषी, चिन्ताशील, एकात्तप्रिय, क्रोधी, कफरोगी, चंचल, नेत्ररोगी एवं अधिक व्यय करने वाला होता है।
मंगल
1. लग्न (प्रथम) में मंगल हो तो जातक, चपल, क्रूर, महत्वाकांक्षी, विचार रहित, गुप्तरोगी, उतावला, लौहधातु एवं व्रणजन्य, कष्ट से युक्त, व्यवसायहानि, दुर्घटना की सम्भावना, दुःखी, निर्धन एवं साहसी होता है।
2. द्वितीय भाव में मंगल हो तो जातक कटुभाषी, नेत्रकर्ण रोगी, कटुतिक्तरसप्रिय, धर्मप्रेमी, चोर से भक्ति, कुटुम्ब से कलेश वाला, पशुपालक, निर्बुद्धि एवं निर्धन होता है।
3. तृतीयभाव में मंगल हो तो जातक कटुभाष, भ्रतृकष्टकारक, प्रदीप्त जठराग्निवाला,बलवान, बंधुहीन, सर्वगुणी, साहसी, धैर्यवान् प्रसिद्ध एवं शूरवीर होता है|
4. चतुर्थभाव में मंगल हो तो जातक संततिवन, मातृसुखहीन, वाहनसुख,प्रवासी, अग्निमययुक्त, अल्पमृत्यु चा अपमृत्यु प्राप्त करने वाला, कृषक, बन्धुविरोधी एवं लाभ युक्त होता है|
5. पंचम भाव में मंगल हो तो जातक बुद्धिमान, चंचल, गुप्तरोगी, कृशशरीरी, रोगी, विशेष रूप से उदररोगी, व्यसनी, कपटी, उग्रबुद्धि एवं सन्तति-क्लेश युक्त होता है|
6. छठेभाव में मंगल हो तो जातक बलवान, धैर्यशाली, प्रबल जठराग्नि, कुलवन्त, प्रचण्ड शक्ति, शत्रुहन्ता, ऋणी, दादरोगी, क्रोधी, पुलिस अफसर, वर्ण और रक्तविकार युक्त एवं अधिकव्यय करने वाला होता है।
7. सातवें भाव में मंगल हो तो जातक वातरोगी, राजभीरु, शीघ्रकोपी, Herd,
स्त्रीदुःखी, gd, मूर्ख, निर्धन, घातकी, धननाशक एवं ईर्ष्यलु होता © |
8. आठवेंभाव में मंगल हो तो जातक व्याधिग्रस्त, व्यसनी, मद्यपायी, कठोरभाषी, नेत्ररोगी, शस्त्रचोर, संकोची, अग्निभीरु, धनचिन्ता युक्त एवं रक्तविकारयुक्त होता है।
9. नौवें भाव में मंगल हो तो जातक अभिमानी, क्रोधी, नेता, द्वेषी, अल्पलाभ करने वाला, यशस्वी, भातृविरोधी, अधिकारी एवं ईर्ष्यलु होता है।
10. दसवें भाव में मंगल हो तो जातक कुलदीपक, स्वाभिमानी, कष्टवाला, धनवान, सुखी, उत्तम-वाहनों से सुखी एवं यशस्वी होता है|
11. ग्यारवें भाव में मंगल हो तो जातक धैर्यवान्, न्यायवान्, प्रवासी, साहसी,लाभ करने वाला, क्रोधी, झगड़ालू, दम्भी एवं कटुभाषी होता है।
12. बारहवें भाव में मंगल हो तो जातक नेत्ररोगी, स्त्रीनाशक, उग्र ऋणी,झगड़ालू, मूर्ख, व्ययशील एवं नीच प्रकृति का पापी होता है।
बुद्ध
1. लग्न (प्रथम) में बुध हो तो जातक आस्तिक, गणितज्ञ, दीर्घायु, उदार-विनोदी,वैद्य, विद्वान, स्त्रीप्रिय, मितव्ययी एवं मिष्टभाषी होता है।
2. द्वितीयभाव में बुध हो तो जातक सुखी, सुन्दर, वक्ता, साहसी, सत्कार्यकारक, संग्रही, दलाल या वकील का पेशा करने वाला, मिष्टाभभोजी, गुणी एवंमितव्ययी होता है।
3. तृतीयभाव में बुध हो तो जातक सद्गुणी, कार्यदक्ष, परिश्रमी, मित्रप्रेमी, भीरू,यात्राशील, व्यवसायी, चंचल, अल्पभ्रातृवानु, विलासी, सन्ततिवान्, कवि, सम्पादक, सामुद्रिकशास्त्र का ज्ञाता एवं लेखक होता है।
4. चतुर्थभाव में बुध हो तो जातक पण्डित भाग्यवान् नीतिवान्, नीतिज्ञ, लेखक, स्थूलदेही वाहनसुखी ,विद्वानु, बन्धुप्रेमी, उदार, गतिप्रिय, आलसी | , वाहनसुखी एवं दानी होता है।
5. पंचमभाव में बुध हो तो जातक उद्यमी, विद्वानु, कवि, प्रसन्न कुशाग्रबुद्धि,गप्य-मान्य, सुखी, वाद्यप्रिय एवं सदाचारी होता है |
6. षष्ठभाव में बुध हो तो जातक विवेकी, कलहप्रिय, वादी, रोगी, आलसी,अभिमानी, परिश्रमी, कामी, दुर्बल एवं स्त्रीप्रिय होता है।
7. सातवेंभाव में बुध हो तो जातक सुन्दर, विद्वान, कुलीन, व्यवसायकुशल, धनी,लेखक, सम्पादक, उदार, सुखी, दीर्घायु एवं धार्मिक होता है।
8. अष्टमभाव में बुध हो तो जातक दीघयु, अभिमानी, ISTH, कृषक,लब्धप्रतिष्ठ, मानसिक दुखी, कवि, वक्ता, न्यायाधीश, धनवान् एवं धर्मात्मा होता है|
9.नवमभाव में बुध हो तो जातक विद्वान् लेखक, ज्योतिषी, धर्मभीरु, व्यवसायप्रिय, भाग्यवानू, सम्पादक, गवैया, कवि एवं सदाचारी होता है।
10. दशमभाव में बुध हो तो जातक सत्यवादी, व्यवहार कुशल,लोकमान्य, विद्वान, लेखक, कवि जमींदार, मातृ-पितृ भक्त, राजमान्य, न्यायी एवं भाग्यवान् होता है।
11. ग्यारहवें भाव में बुध हो तो जातक ईमानदार, सुन्दर, पुत्रवानू, सरदार,गायनप्रिय, विद्वानु, प्रसिद्ध, धनवान, सदाचारी, योगी, दीर्घायु, शत्रुनाशक एवंविचारवान् होता है।
12. बारहवें भाव में बुध हो तो जातक अल्पभाषी, विद्वान, आलसी धर्मात्मा,वकील, सुन्दर, वेदान्ती, लेखक, दानी एवं शास्त्रज्ञ होता है |
बृहस्पति
1. लग्न (प्रथम) में गुरु हो तो जातक विद्वान दीर्घायु, ज्योतिषी कार्यपरायण, लोकसेवक, तेजस्वी, प्रतिष्ठित, स्पष्टवक्ता, स्वाभिमानी, सुन्दर, सुखी, विनीत,धनवान, राज्यमान, सुन्दर एवं धर्मात्मा होता है|
2. द्वितीयभाव में गुरु हो तो जातक मधुरभाषी, सम्पत्ति और सन्ततिवान्,सुन्दरशरीरी, सदाचारी, पुण्यात्मा, सुकार्यरत, राज्यमान्य, व्यवसायी,शत्रुनाशक एवं भाग्यवान् होता है|
3. तृतीयभाव में गुरु हो तो जातक शास्त्रज्ञ, जितेन्द्रिय, लेखक, कामी, प्रवासी, स्त्रीप्रिय, व्यवसायी, मन्दाग्नि, वाहनयुक्त, पर्यटनशील, विदेशप्रिय, ऐश्वर्यवान बहुत भाई बहन, आस्तिक एवं योगी होता है |
4. चतुर्थभाव में गुरु हो तो जातक शौकीन मिजाज, सुन्दरदेही, आरामतलब,परिश्रमी, ज्योतिषी, उच्चशिक्षा प्राप्त, कमसन्तान, सरकार द्वारा सम्मानित, माँ से स्नेह करने वाला, कार्यरत, उद्योगी, लोकमान्य, यशस्वी एवं व्यवहारज्ञ होता है|
5. पंचमभाव में गुरु हो तो जातक नीतिविशारद, सन्ततिवान्, सट्टे से धनप्राप्त करने वाला, कुलश्रेष्ठ, लोकप्रिय, कुटुम्ब में सबसे ऊँचा स्थान,ज्योतिषी एवं आस्तिक होता है |
6. षष्ठभाव में गुरु हो तो जातक विवेकी, प्रसिद्ध, ज्योतिषी, विद्वानसुकर्मरत, दुर्बल, उदार, प्रतापी, नीरोगी, लोकमान्य, बहुत कमशत्रु एवं मधुरभाषी होता है |
7. सप्तमभाव में गुरु हो तो जातक सुन्दर, धैर्यवानू, भाग्यवान्, प्रवासी, सन्तोषी, प्रेमी, परस्त्रीरत, ज्योतिषी, नम्र, विद्वान वक्ता एवं प्रधान होता है।
8. अष्टमभाव में गुरु हो तो जातक दीरघायु, नम्रव्यवहार, लेखक, सुखी, शान्त,मधुरभाषी, विवेकी, ग्रन्थकार, कुलदीपक, ज्योतिषप्रेमी, मित्रों द्वारा धननाशक,गुप्तरोगी एवं लोभी होता है।
9. नवमभाव में गुरु हो तो जातक पराक्रमी, धर्मात्मा, पुत्रवान, बुद्धिमान,राजपूज्य, तपस्वी, विद्वानू योगी, वेदान्ती, यशस्वी, भक्त, भाग्यवान् संन्यास कीओर प्रवृत्ति एवं प्रचुर सन्तान होता है |
10. दशमभाव में गुरु हो तो जातक सुकर्म करने वाला, प्रसिद्ध और सम्मानितप्रतिष्ठित पद पर आसीन, सदाचारी, पुण्यात्मा, ऐश्वर्यवानु, साधु, चतुर, न्यायी,प्रसन्न, ज्योतिषी, सत्यवादी, शत्रुहन्ता, राजमान्य, Wa विचारक, मातृपितूभक्त, धनी एवं भाग्यवान् होता है |
11. ग्यारहवें भाव में गुरु हो तो जातक व्यवसायी, धनिक, सुन्दरनिरोगी, पराक्रमी, सद्व्ययी, बहुस्त्रीयुक्त, विद्वान् राजपूज्य एवं अल्पसन्ततिवान् होता है
12. द्वादश भाव में गुरु हो तो जातक मितभाषी, योगाभ्यासी, परोपकारी, उदार, आलसी, सुखी, मितव्ययी, शास्त्रज्ञ, सम्पादक, लोभी, यात्री एवं दुष्ट चित्तवाला होता है।