विभिन्न प्रकार के दीपक और इनका हिंदू धर्म में इनका पूजा में महत्व
1. एक बत्ती वाला दीपक : यह एक सामान्य दीपक है जो ईष्टदेव से निवेदन के लिए प्रज्वलित किया जाता है। किसी भी देवी-देवता की पूजा हेतु गाय का शुद्ध घी तथा एक फूल बत्ती या तिल के तेल का दीपक आवश्यक रूप से जलाना चाहिए।
2. दो बत्ती वाला दीप : भगवती जगदंबा दुर्गा देवी की आराधना के समय एवं माता सरस्वती की आराधना के समय तथा शिक्षा-प्राप्ति के लिए दो मुखों वाला दीपक जलाना चाहिए।
3. तीन बत्तियों वाला घी का दीपक : गणेश भगवान की कृपा पाने के लिए रोजाना तीन बत्तियों वाला घी का दीपक जलाना चाहिए।
4. चार मुख वाला सरसों के तेल का दीपक : भैरव देवता को प्रसन्न करने के लिए चार मुख वाला सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
5. पांच मुखी दीपक : किसी केस या मुकदमे को जीतने के लिए भगवान के आगे पांच मुखी दीपक जलाना चाहिए। इससे कार्तिकेय भगवान प्रसन्न होते हैं।
6. सात मुखी दीपक : माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहे, इसके लिए हमें उनके समक्ष सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए। दीपावली पर यह कार्य अवश्य कीजिए।
7. आठ या बारह मुख वाला दीपक : शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए घी या सरसों के तेल का आठ या बारह मुख वाला दीपक जलाना चाहिए।
8. दशमुख वाला दीपक : दशावतार की पूजा हेतु दशमुख वाला दीपक जलाएं।
9. सोलह बत्तियों का दीपक : विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए इनके समक्ष रोजाना सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए।
अन्य 10 तरह के दीपक :
1. आटे का दीपक : किसी भी प्रकार की साधना या सिद्धि हेतु आटे का दीपक बनाते हैं और इसे ही पूजा करने के लिए सबसे उत्तम मानते हैं।
2. घी का दीपक : आर्थिक तंगी से मुक्ति पाने के लिए रोजाना घर के देवालय में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। इससे देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं। आश्रम तथा देवालय में अखंड ज्योत जलाने के लिए भी शुद्ध गाय के घी का या तिल के तेल का उपयोग किया जाता है।
3. सरसों के तेल का दीपक : शत्रुओं से बचने के लिए भैरवजी के यहां सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए भी सरसों का दीपक जलाते हैं।
4. तिल के तेल का दीपक : शनि ग्रह की आपदा से मुक्ति हेतु तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इससे देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं।
5. महूए के तेल का दीपक : पति की लंबी आयु की मनोकामना को पूर्ण करने के लिए घर के मंदिर में महुए के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
6. अलसी के तेल का दीपक : राहु और केतु ग्रहों की दशा को शांत करने के लिए अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
7. चमेली के तेल से भरा तिकोना दीपक : संकटहरण हनुमानजी की पूजा करने के लिए तथा उनकी कृपा आप पर सदैव बनी रहे, इसके लिए तीन कोनों वाला दीपक जलाना चाहिए।
8 गहरा और गोल दीपक : ईष्ट सिद्धि के लिए या ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक गहरा और गोल दीपक प्रज्वलित करें।
नवग्रह व्यक्ति के जीवन पर शुभ-अशुभ प्रभाव रखते हैं। जब कुंडली में ग्रहों की दशा बेहतर होती है तो लाइफ पॉजिटिव रहती है। यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह नीच है या वह ग्रह खराब असर दे रहा है तो ये उपाय किए जा सकते हैं-
सूर्य के अशुभ होने पर शरीर में अकडऩ आ जाती है। मुंह में थूक बना रहता है। इसके लिए हर रोज़ मुंह में मीठा या गुड़ डालकर ऊपर से पानी पीकर ही घर से बाहर निकलें। पिता का सम्मान करें।
घर के ईशान कोण को साफ और खाली रखें। वहां जल की स्थापना कर सकते हैं। हर रोज़ माता के पैर छुएं। एकादशी या प्रदोष का व्रत रखें। विशेष अवसरों पर ही शिव जी को जल चढ़ाएं। चंद्र अच्छा है तो उसकी वस्तुओं का दान न करें और बुरा है तो दान करें।
बुध ग्रह को शुभ करने के लिए दुर्गा माता की पूजा करें। नाक छिदवाएं। बेटी, बहन, बुआ और साली से अच्छे संबंध रखें। बुधवार के दिन गाय को हरा चारा खिलाएं। साबुत हरे मूंग का दान करें। कभी झूठ न बोलें।
गुरु की कृपा प्केराप्त करने के लिए पीपल में जल चढ़ाएं। सदा सत्य बोलें और चाल-चलन को शुद्ध रखें। पिता, दादा और गुरु का आदर करें। घर में धूप-दीप दें। केसर या चंदन का तिलक लगाएं। पीले वस्त्र पहनें।
यदि शुक्र अशुभ हो तो स्त्री ऋण का उपाय करें। हर शुक्रवार को विष्णु-लक्ष्मी मंदिर में गुलाब के फूल चढ़ाएं। स्वयं को और घर को साफ-सुथरा रखें। हमेशा साफ कपड़े पहनें। शरीर को जरा भी गंदा न रखें। सुगंधित इत्र या परफ्यूम का उपयोग करें। पवित्र बने रहें।
शनि ग्रह की शांति के लिए भगवान भैरव की उपासना करें। हर शनिवार शाम को शनि मंदिर में एक कटोरी में रखे सरसों के तेल में अपनी छाया देखें और उसे वहीं मंदिर में रख कर आ जाएं। इसे छायादान करना कहते हैं। शराब का सेवन न करें। दांत, बाल और नाखून हमेशा साफ रखें। शनिवार सुबह नहाते समय जल में थोड़ा-सा चमेली का तेल डालकर नहाएं। नेत्रहीनों, अपंगों, सेवकों और सफाई कर्मियों से अच्छा व्यवहार करते हुए उनको दान दें।
राहू ग्रह के उपाय के लिए किचन में ही खाना खाएं। शौचालय में कपूर की एक डली रखें। चांदी का हाथी घर में रखें। ससुराल पक्ष से अच्छे संबंध रखें। स्नानघर में लकड़ी के पीढ़े पर बैठकर ही स्नान करें। काले, कत्थई, भूरे, मटमैले रंग के वस्त्र पहनने से बचें।
केतु को अपने पक्ष में करने के लिए कान छिदवाएं। संतान और अन्य बच्चों से भी मधुर संबंध रखें। दो रंग के कुत्ते को रोटी खिलाएं। दो रंगों का कंबल दान भी कर सकते हैं। बुरे व्यक्तियों की संगत से बचें।
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अंतर्दशा: इन वर्षों में मुख्य ग्रहों की महादशा में
इसके अंतर्गत अन्य ग्रह भी गोचर या भ्रमण करते हैं जिसे अंतर्दशा कहते हैं। जिस ग्रह की महादशा होगी, उस ग्रह की अंत होगी।
पहले उस ग्रह की अन्तर्दशा आएगी, फिर अन्य ग्रह ऊपर दिए गए क्रम में भ्रमण करेंगे। इस दौरान मुख्य ग्रह के साथ अन्तर्दशा स्वामी का प्रभाव भी अनुभव किया जाता है।
प्रत्यंतर दशा: पंचांग से ग्रहों की अन्तर्दशा का समय
निकाला जा सकता है। अधिक सटीक गणना के लिए अन्तर्दशा में उन्हीं ग्रहों की प्रत्यंतर दशा की गणना भी की जाती है, जो उसी क्रम का अनुसरण करती है। इससे अच्छी और बुरी घटनाओं का सही समय का आकलन किया जा सकता है।
1. लग्नेश यानि लग्न के स्वामी ग्रह की महादशा स्वास्थ्य लाभ देती है तथा धन और प्रतिष्ठा प्राप्ति के अवसर प्रदान करती है।
2. धनेश यानि दूसरे भाव के स्वामी की महादशा में धन लाभ होता है लेकिन अष्टम भाव से सप्तम होने के कारण यह दशा स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां देती है।
3. सहज भाव यानि तीसरे भाव के स्वामी की दशा सामान्यतः अच्छी नहीं मानी जाती है। भाइयों को कष्ट होता है तथा उनसे संबंध खराब होते हैं।
4. चतुर्थेश की दशा सुखद होती है। मकान, वाहन तथा नौकरों का सुख मिलता है। लाभ होता है।
5. पंचमेश की दशा लाभकारी तथा सुख देने वाली होती है। संतान की उन्नति होती है लेकिन माता को कष्ट होता है।
6. षष्ठेश की दशा शत्रु भाव होने से इसके स्वामी की दशा रोग, शत्रु भय, अपमान, पुत्र को कष्ट तथा पीड़ा देती है।
7. सप्तमेश की दशा स्वयं तथा जीवन साथी के लिए कष्टकारी होती है। अनावश्यक चिंताएं होती हैं।
8. अष्टमेश की महादशा में मृत्यु, भय, हानि, साथी के स्वास्थ्य की हानि जैसे कष्टों का फल मिलता है।
9. नवमेश की महादशा सौभाग्य लाती है। धार्मिक कार्य होते हैं, तीर्थ यात्राएं होती हैं, लेकिन माता को कष्ट होता है।
10. दशमेश की महादशा में पिता का प्रेम, राज्य पक्ष से लाभ, पदोन्नति, धन लाभ, प्रभाव में वृद्धि जैसे फल मिलते हैं।
11. लाभेश की दशा धन, यश तथा पुत्र देती है, लेकिन पिता को मिलती है।
12. व्ययेश की दशा शारीरिक कष्ट, आर्थिक हानि, अपमान, पराजय, शत्रु से हानि तथा कारावास आदि का कारण बनती हैं
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जन्म कुंडली में योगिनी का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है। बिना योगिनी के भविष्यवाणी की सफलता में संदेह बना रहता है। अत: किसी भी जातक को अपनी शुभ-अशुभ योगिनी की जानकारी होना चाहिए तथा अशुभ योगिनी की शांति तुरंत करवाना चाहिए, क्योंकि यह प्रारंभ में ही कष्ट देना शुरू कर देती है। ये योगिनियां 8 प्रकार की होती हैं।
1. मंगला योगिनी
मंगला योगिनी 1 वर्ष की होती है। इस समय जातक को सफलता, यश, धन एवं अच्छे कार्यों से प्रशंसा प्राप्त होती है।
2. पिंगला योगिनी
पिंगला 2 वर्ष की होती है। इसमें जमीन-जायदाद, भाई-बंधु की चिंता, मानसिक कष्ट, अशुभ समाचार, हानि, अपमान, बीमारी से कष्ट आदि होते हैं।
3. धान्या योगिनी
धान्या की दशा में धन प्राप्ति के योग होते हैं। इसका समय 3 वर्ष का होता है। राजकीय कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
4. भ्रामरी योगिनी
यह 4 वर्ष की होती है एवं 4 वर्ष तक अशुभ यात्रा, कष्ट, व्यापार में हानि, कर्ज की चिंता आदि अन्य अशुभ कार्य भ्रामरी के कारण होते हैं।
5. भद्रिका योगिनी
भद्रिका 5 की होती है। इसकी दशा में धन-संपत्ति का लाभ होता है। सुंदर स्त्रियों एवं सुखोपभोग की प्राप्त होती है। राजकीय कर्मचारी को पदोन्नति प्राप्त होती है।
6. उल्का योगिनी
उल्का 6 वर्ष की योगिनी होती है। इस समय नाना प्रकार के कष्टों से जातक परेशान हो जाता है। मानहानि, शत्रु भय, ऋण, रोग, कोर्ट केस, पारिवारिक कष्ट, मुंह, सिर, पैर में रोग होते हैं।
7. सिद्धा योगिनी
सिद्धा की दशा 7 वर्ष की होती है। इसमें बुद्धि, धन व व्यापार में वृद्धि होती है। घर में विवाह आदि कार्य होते हैं।
8. संकटा योगिनी
संकटा योगिनी 8 वर्ष की होती है। यह धन, बल, व्यापार व परिवार से संबंधित नाना प्रकार के कष्ट देकर जातक को भयभीत कर देती है। अपने ही जनों का विसंयोग होता है। इस प्रकार ये आठों योगिनियां जातक के भविष्य को प्रभावित करती हैं।
योगिनियों का फल
यदि संकटा में संकटा योगिनी हो तो मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट होता है। घर-परिवार को छोड़ना पड़ता है। संकटा में जब मंगला का अंतर होता है तो सिर की बीमारी व पत्नी को कष्ट होता है।
संकटा में जब पिंगला का अंतर होता है, तब रोग एवं शत्रु से कष्ट होता है। संकटा में जब धान्या के अंतर्गत भ्रामरी के अंतर में विवाद, स्थानातंरण व यात्रा में कष्ट आदि फल होते हैं।
संकटा के अंतर्गत सिद्धा दशा में पुत्र लाभ, सुख एवं व्यापारोन्नति आदि शुभ फल होते हैं। ठीक इसी प्रकार आगे योगिनियों में अन्य अंतर आते हैं एवं शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं।
संकटा में जब भद्रिका का अंतर होता है, तब अपने जनों से कष्ट, रोग तथा सामान्य लाभ प्राप्त होता है। संकटा में जब उल्का का अंतर होता है, तब घर-परिवार में असामंजस्य, विवाद, धोखा आदि फल प्राप्त होते हैं।
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In astrology, the placement of the Moon in the seventh house of a natal chart can have various interpretations, and whether it’s considered “good” or “bad” depends on multiple factors, including the overall chart context and the aspects the Moon forms with other planets.
Moon in the Seventh House: General Interpretations
1. Relationships and Marriage:-
Positive Aspects:-
The Moon in the seventh house can signify a nurturing and emotional approach to relationships. Individuals with this placement may seek deep emotional connections with their partners, valuing intimacy and care. This placement often indicates a partner who is sensitive, caring, and possibly even a bit motherly.
Challenges:-
On the flip side, the Moon is associated with fluctuating emotions, and when placed in the house of partnerships, it can indicate instability or emotional ups and downs in relationships. Such individuals may experience mood swings that affect their partnerships, or they might attract partners who are emotionally volatile.
2. Business Partnerships:-
The seventh house also governs business partnerships. A Moon here can suggest a tendency to form business alliances based on emotional connections rather than practicality. This can be beneficial if the partnership thrives on mutual support, but it can also lead to issues if emotions cloud business judgments.
Examples and Illustrations
Example 1:-
Consider an individual named Sarah with her Moon in the seventh house. Sarah might find herself deeply invested in her partner’s feelings and well-being. She may often take on a caretaking role, ensuring her partner feels loved and supported. However, if her partner’s needs become overwhelming, Sarah might struggle with maintaining her own emotional stability.
Example 2:-
Imagine a business scenario where two friends, Jack and Tom, start a company together. Jack has his Moon in the seventh house. He might prioritize their friendship and mutual trust over objective business decisions. While this can create a strong, supportive partnership, it might also lead to challenges if personal feelings interfere with professional matters.
Remedies
If someone perceives their Moon in the seventh house as problematic, there are several remedies and strategies they can consider:
1. Emotional Awareness:-
Cultivating self-awareness regarding one’s emotional patterns can help manage the Moon’s influence. Practicing mindfulness and emotional regulation techniques can be beneficial.
2. Clear Communication:-
Open and honest communication with partners can help mitigate misunderstandings and emotional turbulence. Establishing boundaries and expressing needs clearly is crucial.
3. Astrological Remedies:-
Chanting Mantras:-
Reciting mantras associated with the Moon, like “Om Chandraya Namaha,” can help harmonize its energy.
Wearing Gemstones:-
Moonstone or pearls are often recommended to balance moons energy.
Charity and Service:-
Engaging in acts of kindness, particularly on Mondays (the day ruled by the Moon), can help alleviate any negative influence.
4. Therapeutic Approaches:-
Counselling or therapy can be incredibly beneficial for navigating emotional complexities within relationships.
Conclusion
While the Moon in the seventh house can bring about challenges related to emotional stability in relationships, it also offers opportunities for deep emotional connections and nurturing partnerships. Understanding and working with this placement through various strategies can transform potential negatives into positives, fostering healthier and more fulfilling relationships.
This is generalised explanation kindly send your complete birth details for accurate predictions and remedies.
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इस शुभ दिन के साथ कई किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण किंवदंतियाँ देवी अन्नपूर्णा के इर्द-गिर्द घूमती हैं। शास्त्रों के अनुसार, देवी अन्नपूर्णा, देवी पार्वती का अवतार, अक्षय तृतीया के इस खुशी के अवसर पर भूखों को उदारतापूर्वक भोजन प्रदान करने के लिए प्रकट हुईं।
किंवदंती है कि भगवान शिव, एक भिखारी के रूप में भेष भर कर, अन्नपूर्णा देवी के पास गए और भोजन का अनुरोध किया। किसी को आश्चर्य हो सकता है कि ब्रह्मांड के भगवान को भोजन के लिए भीख मांगने की आवश्यकता क्यों होगी। इस कृत्य ने मानवता के लिए एक आध्यात्मिक अनुस्मारक के रूप में कार्य किया, कम भाग्यशाली लोगों को खाना खिलाने के महत्व पर जोर दिया, क्योंकि भगवान हर प्राणी के भीतर रहते हैं। इस प्रकार, इस कथा के अनुसार, देवी ने स्वयं इस शुभ दिन पर भगवान शिव के अलावा किसी और को भोजन नहीं खिलाया।
तभी से भगवान भोलेनाथ ने इस दिन अन्न व भोजन दान के रूप में मनाने का वरदान दिया।
इस दिन अन्नदान व भोजन दान का अक्षय फल प्राप्त होने का भी वरदान है।
अक्षय तृतीया का यह शुभ दिन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग ढंग से मनाया जाता है:
1-उड़ीसा में, प्रसिद्ध रथ यात्रा के लिए रथों के निर्माण की शुरुआत अक्षय तृतीया के महत्व को दर्शाती है।
2-उत्तर प्रदेश में वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में एक अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है, जहां आशीर्वाद लेने के लिए जनता के सामने भगवान श्री बांके बिहारी जी के चरण दर्शन कराए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, यह दिन ईश्वर द्वारा ब्रह्मांड के निर्माण का प्रतीक है, इसलिए इसका अत्यधिक महत्व है।
3-महाराष्ट्र में महिलाएं सौहार्दपूर्ण वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करने के लिए वैवाहिक आनंद के प्रतीक हल्दी और कुमकुम का आदान-प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त, वे अपने पतियों की दीर्घायु की कामना के लिए देवी गौरी की पूजा करती हैं।
4-पश्चिम बंगाल में भक्त इस दिन को वर्ष का सबसे शुभ दिन मानकर देवी लक्ष्मी के प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। लोग अपने जीवन में समृद्धि और प्रचुरता लाने के लिए कीमती धातुएँ खरीदते हैं।
सोना चांदी खरीदने के अलावा अक्षय तृतीया पर मिट्टी का घड़ा, बर्तन, कौड़ी, जौ, पीली सरसों, धनिया, दक्षिणावर्ती शंख, श्रीयंत्र, झाड़ू, वाहन और घर खरीदना भी बहुत ही शुभ माना गया है. ये चीजें घर लाने से धन-धान्य में वृद्धि होती है.
अक्षय तृतीया पर अबूझ साया होता है इस दिन विवाह करना भी बहुत शुभ माना गया है।
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1 मई 2024 को देवताओं के गुरु बृहस्पति का राशि परिवर्तन होगा. गुरु मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे. ज्योतिष से जानते हैं गुरु के गोचर का समय, उपाय और राशियों पर प्रभाव।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समय-समय पर ग्रह राशि परिवर्तन करते हैं, जिसका प्रभाव सभी 12 राशियों के जातकों के जीवन पर पड़ता है।
सभी ग्रह एक निश्चित अंतराल पर गोचर करते हैं. ज्योतिष में गुरु ग्रह के राशि परिवर्तन को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. जब भी गुरु ग्रह अपनी राशि बदलते हैं तो हर जातक के जीवन में इसका प्रभाव अवश्य ही पड़ता है।
गुरु गोचर 2024 का समय
गुरु 13 महीने तक किसी राशि में रहते हैं फिर इसके बाद राशि परिवर्तन करते हैं. देवताओं के गुरु बृहस्पति का 1 मई को गोचर होगा और गुरु वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे।
देवगुरु बृहस्पति 01 मई 2024 को दोपहर उपरांत राशि बदलेंगे. गुरु ग्रह को विस्तार, प्रगति और ज्ञान का ग्रह माना जाता है. गुरु ग्रह जातक के जीवन को अधिकांश क्षेत्रों को प्रभावित करता है. गुरु अभी मंगल की राशि मेष में विराजमान हैं और इसके बाद शुक्र की राशि वृषभ में प्रवेश करेंगे.
गुरु के वृषभ राशि में गोचर करने से कई राशियों के लोगों को लाभ मिल सकता है. सभी 9 ग्रहों में, बृहस्पति को सबसे शुभ माना जाता है और बृहस्पति की कृपा के बिना जातकों को कोई भी शुभ फल प्राप्त नहीं होती है.
गुरु ग्रह धनु व मीन राशि के स्वामी हैं. इन्हें ज्ञान, शिक्षक, संतान, शिक्षा, धार्मिक कार्य, पवित्र स्थल, धन, दान, पुण्य और वृद्धि आदि का कारक ग्रह कहा जाता है. बृहस्पति 27 नक्षत्रों में पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र के स्वामी होते हैं।
सनातन धर्म में गुरुवार का दिन देवताओं के गुरु बृहस्पति देव को समर्पित होता है. इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु संग देवगुरु बृहस्पति की पूजा-उपासना की जाती है.
कुंडली में गुरु मजबूत रहने से जातक को जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है, मान-सम्मान और पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है. अविवाहित जातकों की शीघ्र शादी हो जाती है. वहीं कुंडली में गुरु कमजोर होने पर जातक को जीवन में धन-संबंधी परेशानी हमेशा बनी रहती है.
गुरु गोचर
ज्योतिष गणना के अनुसार, देवताओं के गुरु बृहस्पति वर्तमान में मेष राशि में विराजमान हैं और 1 मई को वृषभ राशि में गोचर करेंगे. देवगुरु बृहस्पति दोपहर 02:29 मिनट पर मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे।
इस दौरान 12 जून को रोहिणी नक्षत्र में गोचर करेंगे. वहीं 9 अक्टूबर को देवगुरु बृहस्पति वक्री हो जाएंगे. इसके बाद गुरु 4 फरवरी, 2025 को मार्गी होंगे. वर्ष 2025 में 14 मई को देवगुरु वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि में गोचर करेंगे.
गुरु गोचर का प्रभाव
बृहस्पति के राशि बदलने के कारण लंबे समय से प्रमोशन का इंतजार करने वाले लोगों को स्थान परिवर्तन के साथ सुखद संकेत भी मिल सकते हैं. राजनीति से जुड़े कुछ लोगों को जनता का सहयोग मिल सकता है. बुद्धि और ज्ञान बढ़ेगा, कुछ नया सीखने को मिलेगा, सेहत संबंधी परेशानियां भी कम हो सकती है. जॉब-बिजनेस और अन्य कई मामलों में निष्पक्ष फैसले भी होने के योग बन रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि के साथ शेयर बाजार फिर से बढ़ने की भी संभावना रहेगी. इससे अर्थव्यवस्था मजबूत होने के योग बनेंगे।
राजनीतिक उथल-पुथल एवं प्राकृतिक आपदाओं की आशंका बढ़ेगी. लोगों को विशेष लाभ मिलेगा. शिक्षा प्रणाली में सुधार के भी योग बनेंगे. धरना जुलूस प्रदर्शन आंदोलन गिरफ्तारियां होगी. रेल दुर्घटना होने की संभावना रहेगी, अचानक मौसमी बदलाव भी हो सकते हैं, बारिश और बर्फबारी होने की आशंका है, सेना की ताकत बढ़ेगी और देश की कानून व्यवस्था भी मजबूत होगी।
गुरु के उपाय
जल में हल्दी डालकर स्नान करें. मस्तक पर हल्दी और केसर का टीका लगाएं. गुरुवार के दिन पीली वस्तुओं का दान करें, पीले वस्त्र, फल, चना, गुड़ चने की दाल आदि का दान करें. साथ ही अपने से ज्येष्ठ और गुरुजनों का सम्मान करें.
गाय का पूजन कर उसे आटा की लोई खिलाएं, पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं, हर गुरुवार शाम एक दीपक जलाकर पीपल के पास रखने से लाभ होगा।
गुरु के वृषभ राशि में गोचर का सभी 12 राशियों पर प्रभाव
मेष राशि-मेष राशि वालों के लिए गुरु का गोचर शुभप्रद है, धन लाभ व उन्नति के अवसर, शुभ कार्यों पर खर्च, उच्च प्रतिष्ठित लोगों के साथ संपर्क बढ़ेगा, जिससे नए लाभप्रद मार्ग एवं परियोजना सामने आएंगी.
वृषभ राशि-आय कम, खर्च अधिक होंगे. धर्म का पालन करने से लाभ के अवसर बनेंगे. शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति सावधानी बरतें. पारिवारिक दायित्व के निर्वाह में संघर्ष रहेगा.
मिथुन राशि-स्वास्थ्य के प्रति विशेष सावधानी बरतें. अनावश्यक वाद-विवाद में न उलझें. धन व्यय की अधिकता रहेगी, बनते कामों में विघ्न न पैदा हों इसके लिए सोच-समझकर ही निर्णय लें.
कर्क राशि-गुरु शुभ और सर्व सिद्धि कारक हैं. लाभ व उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे, धन, भूमि, सवारी आदि सुखों में वृद्धि होगी, कार्यों में सफलता प्राप्त होगी.
सिंह राशि-कठोर श्रम से ही कार्यक्षेत्र में सफलता मिलेगी. कार्य, व्यवसाय में कुछ उलझनों के बाद धन प्राप्ति होगी, अनावश्यक तनाव स्वास्थ्य कष्ट का कारण बन सकता है.
कन्या राशि-आपको श्रेष्ठ स्थिति की ओर आपकी योग्यता अनुसार ले जाने का प्रयास करेगा. नवम भाव का गुरु कार्यों में सफलता, लाभ व उन्नति के अवसर प्रदान करता है.
तुला राशि-मानसिक अशांति, मतिभ्रम, स्थान परिवर्तन, घरेलु उलझनें बनी रहेंगी. नए प्रोजेक्ट की शुरुआत हो सकती है जो एक वर्ष के बाद सार्थक परिणाम दिलाऐंगे. यात्रा में सावधानी बरतें.
वृश्चिक राशि-धन लाभ एवं सवारी आदि सुखों की प्राप्ति होगी. पद, प्रतिष्ठा में वृद्धि एवं सम्मान आदि का सुख प्राप्त होगा. विचारों में परोपकार की भावना उदय होगी.
धनु राशि-अनावश्यक परेशानियां और खर्चे बढ़ सकते हैं. रोग और शत्रु आप पर हावी हो सकते हैं. अतः सावधानी पूर्वक कार्य व्यवहार करें. परिस्थिवश निकट बन्धुओं से व्यथा, तकरार पैदा होने की संभावनाएं हैं.
मकर राशि-उच्च शिक्षा में सफलता, अविवाहितों को विवाह आदि सुखों की प्राप्ति होगी, श्रेष्ठजनों से सम्पर्क, लाभ व उन्नति के अवसर मिलेंगे, परन्तु अनुकूल परिणाम पाने के लिए विशेष प्रयास भी करना पड़ेगा.
कुंभ राशि-कुम्भ राशि: आपकी सूझ-बूझ, प्रयास और परिश्रम ही परेशानियों को कम करेगी, जिससे वाद-विवाद से बचाव और सुख-साधनों में कमी नहीं आएगी. आर्थिक लेन- देन के प्रति सचेत रहें.
मीन राशि-विशेष प्रयास के बाद ही सफलता प्राप्त होगी. नौकरी, व्यवसाय में परिवर्तन, मानसिक अशांति प्रस्तुत कर सकता है. सही निर्णय ही आपको सफलता दिलाएगा.
चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जन्मोत्सव पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 23 अप्रैल मंगलवार को है। हनुमानजी जन्मोत्सव के शुभ योग में यदि कुछ विशेष उपाय किए जाएं तो आपकी हर परेशानी दूर हो सकती है। ये उपाय इस प्रकार हैं-
ऐसे चढाएं हनुमानजी को चोला
हनुमान जन्मोत्सव को हनुमानजी को चोला चढ़ाएं। हनुमानजी को चोला चढ़ाने से पहले स्वयं स्नान कर शुद्ध हो जाएं और साफ वस्त्र धारण करें। सिर्फ लाल रंग की धोती पहने तो और भी अच्छा रहेगा। चोला चढ़ाने के लिए चमेली के तेल का उपयोग करें। साथ ही, चोला चढ़ाते समय एक दीपक हनुमानजी के सामने जला कर रख दें। दीपक में भी चमेली के तेल का ही उपयोग करें।
चोला चढ़ाने के बाद हनुमानजी को गुलाब के फूल की माला पहनाएं और केवड़े का इत्र हनुमानजी की मूर्ति के दोनों कंधों पर थोड़ा-थोड़ा छिटक दें। अब एक साबुत पान का पत्ता लें और इसके ऊपर थोड़ा गुड़ व चना रख कर हनुमानजी को भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद उसी स्थान पर थोड़ी देर बैठकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र का जप करें। कम से कम 5 माला जप अवश्य करें।
मंत्र- राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने।।
अब हनुमानजी को चढाए गए गुलाब के फूल की माला से एक फूल तोड़ कर, उसे एक लाल कपड़े में लपेटकर अपने धन स्थान यानी तिजोरी में रखें। इससे धन संबंधी समस्या हल होने के योग बनने लगेंगे।
करें बड़ के पेड़ का उपाय सुबह स्नान करने के बाद बड़ (बरगद) के पेड़ का एक पत्ता तोड़ें और इसे साफ स्वच्छ पानी से धो लें। अब इस पत्ते को कुछ देर हनुमानजी की प्रतिमा के सामने रखें और इसके बाद इस पर केसर से श्रीराम लिखें। अब इस पत्ते को अपने पर्स में रख लें। साल भर आपका पर्स पैसों से भरा रहेगा। अगली होली पर इस पत्ते को किसी नदी में प्रवाहित कर दें और इसी प्रकार से एक और पत्ता अभिमंत्रित कर अपने पर्स में रख लें।
घर में स्थापित करें पारद हनुमान की प्रतिमा अपने घर में पारद से निर्मित हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित करें। पारद को रसराज कहा जाता है। पारद से बनी हनुमान प्रतिमा की पूजा करने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं। पारद से निर्मित हनुमान प्रतिमा को घर में रखने से सभी प्रकार के वास्तु दोष स्वत: ही दूर हो जाते हैं, साथ ही घर का वातावरण भी शुद्ध होता है। प्रतिदिन इसकी पूजा करने से किसी भी प्रकार के तंत्र का असर घर में नहीं होता और न ही साधक पर किसी तंत्र क्रिया का प्रभाव पड़ता है। यदि किसी को पितृदोष हो, तो उसे प्रतिदिन पारद हनुमान प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए। इससे पितृदोष समाप्त हो जाता है।
शाम को जलाएं दीपक हनुमान जयंती की शाम को समीप स्थित किसी हनुमान मंदिर में जाएं और हनुमानजी की प्रतिमा के सामने एक सरसों के तेल का व एक शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद वहीं बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। हनुमानजी की कृपा पाने का ये एक अचूक उपाय है। करें राम रक्षा स्त्रोत का पाठ सुबह स्नान आदि करने के बाद किसी हनुमान मंदिर में जाएं और राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। इसके बाद हनुमानजी को गुड़ और चने का भोग लगाएं। जीवन में यदि कोई समस्या है, तो उसका निवारण करने के लिए प्रार्थना करें।
प्राणों की रक्षा हेतु मंत्र/रक्षा कवच बनाने के लिए
हनुमानजी जब लंका से आये तो राम जी ने उनको पूछा कि , रामजी के वियोग में सीताजी अपने प्राणो की रक्षा कैसे करती हैं ?
तो हनुमान जी ने जो जवाब दिया उसे याद कर लो । अगर आप के घर में कोई अति अस्वस्थ है, जो बहुत बिमार है, अब नहीं बचेंगे ऐसा लगता हो, सभी डॉक्टर दवाईयाँ भी जवाब दे गईं हों, तो ऐसे व्यक्ति की प्राणों की रक्षा इस मंत्र से करो..उस व्यक्ति के पास बैठकर ये हनुमानजी का मंत्र जपो..तो ये सीता जी ने अपने प्राणों की रक्षा कैसे की ये हनुमानजी के वचन हैं..(सब बोलना)
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट ।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ॥
इसक अर्थ भी समझ लीजिये ।
नाम पाहरू दिवस निसि ‘ ….. सीता जी के चारों तरफ आप के नाम का पहरा है । क्योंकि वे रात दिन आप के नाम का ही जप करती हैं । सदैव राम जी का ही ध्यान धरती हैं और जब भी आँखें खोलती हैं तो अपने चरणों में नज़र टिकाकर आप के चरण कमलों को ही याद करती रहती हैं ।
तो ‘ जाहिं प्रान केहिं बाट ‘….. सोचिये की आप के घर के चारों तरफ कड़ा पहरा है । छत और ज़मीन की तरफ से भी किसी के घुसने का मार्ग बंद कर दिया है, क्या कोई चोर अंदर घुस सकता है..? ऐसे ही सीता जी ने सभी ओर से श्री रामजी का रक्षा कवच धारण कर लिया है ..इस प्रकार वे अपने प्राणों की रक्षा करती हैं । तो ये मंत्र श्रद्धा के साथ जपेंगे तो आप भी किसी के प्राणों की रक्षा कर सकते हैं ।
रक्षा कवच बनाने के लिए
दिन में 3-4 बार शांति से बैठें , 2-3 मिनिट होठो में जप करे और फिर चुप हो गए। ऐसी धारणा करे की मेरे चारो तरफ भगवान का नाम मेरे चारो ओर घूम रहा हें। भगवान के नाम का घेरा मेरी रक्षा कर रहा है।
हनुमान जन्मोत्सव
जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी कोई विरोधी परेशान करता है तो कभी घर के किसी सदस्य को बीमारी घेर लेती है। इनके अलावा भी जीवन में परेशानियों का आना-जाना लगा ही रहता है। ऐसे में हनुमानजी की आराधना करना ही सबसे श्रेष्ठ है। इस बार 23 अप्रैल, मंगलवार को हनुमान जन्मोत्सव है। हनुमानजी की कृपा पाने का यह बहुत ही उचित अवसर है। यदि आप चाहते हैं कि आपके जीवन में कोई संकट न आए तो नीचे लिखे मंत्र का जप हनुमान जन्मोत्सव के दिन करें। प्रति मंगलवार या शनिवार को भी इस मंत्र का जप कर सकते हैं।
सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें।
इसके बाद अपने माता-पिता, गुरु, इष्ट व कुल देवता को नमन कर कुश का आसन ग्रहण करें।
पारद हनुमान प्रतिमा के सामने इस मंत्र का जप करेंगे तो विशेष फल मिलता है।
जप के लिए लाल मूँगे की माला का प्रयोग करें।
यदि आपके काम बिगड़ रहे है या फिर मेहनत करने के बाद भी आपको सफलता नहीं मिल रही है तो आप मंगलवार के दिन किसी हनुमान जी के मंदिर में जाकर गुड़ चने का प्रसाद चढ़ाएं और उसे मंदिर में ही भक्तों को बांटे तथा शेष प्रसाद स्वयं व अपने परिवार को ग्रहण करायें। इस प्रकार आपको लगातार गुड़-चने का प्रसाद चढ़ाने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होगी
शास्त्रों में हनुमान जी को चोला चढ़ाने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना गया है। बजरंगवली को चोला चढ़ाने से शनि की साढ़ेसाती और ढैया से मुक्ति मिलती है। जो भक्त हनुमानजी को विधि-विधान से चोला चढ़ाते हैं उसके जीवन में भूत-पिशाच, शनि व ग्रहबाधा, रोग-शोक, कोर्ट-कचहरी के विवाद, दुर्घटना या कर्ज, चिंता आदि परेशान नहीं करते।
भगवान राम की पूजा करने से हनुमानजी बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। पीपल के पत्ते पर चमेली के तेल और सिन्दूर से राम का नाम लिखें और इसे चढ़ाएं ,ऐसा करने से आपको सभी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी। इसके अलावा पीपल के 11 पत्तों पर चन्दन या रोली से राम का नाम लिखकर उसकी माला बनाकर हनुमान जी को अर्पित करें।
Welcome to the enthralling world of KP Astrology! Known for its precision and accuracy, KP Astrology, short for Krishnamurti Paddhati Astrology, is a branch of Vedic astrology that offers profound insights into various aspects of life. Developed by the esteemed late astrologer Krishnamurti, this system has garnered immense popularity for its unique techniques and methodologies.
In KP Astrology, each planet holds significant importance, influencing different aspects of an individual’s life. The celestial bodies, including the Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus, Saturn, Rahu, and Ketu, play pivotal roles in shaping one’s destiny. By analyzing their positions and movements in the birth chart, astrologers can unravel the mysteries of life events and provide valuable guidance.
Central to KP Astrology is the Sub-Lord theory, which divides each astrological sign into smaller segments called sub-lords. These sub-lords govern specific houses and signify various aspects of life, such as career, relationships, finances, and health. By meticulously analyzing the sub-lords and their connections, astrologers can make accurate predictions with remarkable precision.
Another essential concept in KP Astrology is the concept of Ruling Planets. Unlike traditional astrology, which primarily focuses on the placement of planets in zodiac signs, KP Astrology emphasizes the significance of ruling planets in predicting events. These ruling planets, derived through intricate calculations, provide deeper insights into the timing and outcome of events, enabling astrologers to offer precise forecasts.
In addition to the Sub-Lord theory, KP Astrology incorporates the Stellar and Sub-Sub theory, further enhancing its predictive accuracy. By considering the influence of specific stars and sub-sub divisions within each constellation, astrologers can fine-tune their analysis and provide detailed insights into various life events.
Whether you’re at a crossroads in your career or seeking guidance on professional matters, KP Astrology can offer invaluable insights. By analyzing the placement of planets in your birth chart and examining relevant dashas (planetary periods), astrologers can provide guidance on career choices, job opportunities, promotions, and success in endeavors.
Relationship Compatibility
KP Astrology is also adept at analyzing relationship dynamics and compatibility. By assessing the seventh house, which governs marriage and partnerships, along with the positions of Venus and Mars, astrologers can offer insights into romantic relationships, marriage prospects, and compatibility with a potential partner.
Financial Prosperity
For those seeking financial prosperity and stability, KP Astrology offers practical solutions and guidance. By examining the second and eleventh houses, along with the positions of wealth-indicating planets such as Jupiter and Venus, astrologers can provide insights into investment opportunities, wealth accumulation, and financial success.
In conclusion, KP Astrology stands as a beacon of wisdom and guidance, offering profound insights into life’s mysteries. With its meticulous techniques and predictive accuracy, this ancient science continues to empower individuals to navigate life’s challenges with confidence and clarity.