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मकर संक्रांति 2024

img 5585मकर संक्रांति 2024 विशेष

आत्मोद्धारक व जीवन-पथ प्रकाशक पर्व – मकर संक्रांति (15 जनवरी 2024 सोमवार को पुण्यकाल सूर्योदय से सूर्यास्त तक )

जिस दिन भगवान सूर्यनारायण उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करते हैं, उस दिन उतरायण (मकर संक्रांति) का पर्व मनाया जाता है | इस दिन से अंधकारमयी रात्रि कम होती जाती है और प्रकाशमय दिवस बढ़ता जाता है | उत्तरायण का वाच्यार्थ है कि सूर्य उत्तर की तरफ, लक्ष्यार्थ है आकाश के देवता की कृपा से ह्दय में भी अनासक्ति करनी है | नीचे के केन्द्रों में वासनाएँ, आकर्षण होता है व ऊपर के केन्द्रों में निष्कामता, प्रीति और आनंद होता है | संक्रांति रास्ता बदलने की सम्यक सुव्यवस्था है | इस दिन आप सोच व कर्म की दिशा बदलें | जैसी सोच होगी वैसा विचार होगा, जैसा विचार होगा वैसा कर्म होगा | हाड-मांस के शरीर को सुविधाएँ दे के विकार भोगकर सुखी होने की पाश्चात्य सोच है और हाड-मांस के शरीर को संयत, जितेन्द्रिय रखकर सदभाव से विकट परिस्थितियों में भी सामनेवाले का मंगल चाहते हुए उसका मंगलमय स्वभाव प्रकट करना यह भारतीय सोच है |

सम्यक क्रांति…. ऐसे तो हर महिने संक्रांति आती है लेकिन मकर संक्रांति साल में एक बार आती है | उसीका इंतजार किया था भीष्म पितामह ने | उन्होंने उत्तरायण काल शुरू होने के बाद ही देह त्यागी थी |

पुण्यपुंज व आरोग्यता अर्जन का दिन

जो संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता वह ७ जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है और जो संक्रांति का स्नान कर लेता है वह तेजस्वी और पुण्यात्मा हो जाता है | संक्रांति के दिन उबटन लगाये, जिसमे काले तिल का उपयोग हो |

भगवान सूर्य को भी तिलमिश्रित जल से अर्घ्य दें | इस दिन तिल का दान पापनाश करता है, तिल का भोजन आरोग्य देता है, तिल का हवन पुण्य देता है | पानी में भी थोड़े तिल डाल के पियें तो स्वास्थ्यलाभ होता है | तिल का उबटन भी आरोग्यप्रद होता है | इस दिन सुर्योद्रय से पूर्व स्नान करने से १० हजार गौदान करने का फल होता है | जो भी पुण्यकर्म उत्तरायण के दिन करते हैं वे अक्षय पुण्यदायी होते हैं | तिल और गुड के व्यंजन, चावल और चने की दाल की खिचड़ी आदि ऋतु-परिवर्तनजन्य रोगों से रक्षा करती है | तिलमिश्रित जल से स्नान आदि से भी ऋतु-परिवर्तन के प्रभाव से जो भी रोग-शोक होते हैं, उनसे आदमी भिड़ने में सफल होता है

सूर्यदेव की विशेष प्रसन्नता हेतु मंत्र

ब्रम्हज्ञान सबसे पहले भगवान सूर्य को मिला था | उनके बाद रजा मनु को, यमराज को…. ऐसी परम्परा चली | भास्कर आत्मज्ञानी हैं, पक्के ब्रम्ह्वेत्ता हैं | बड़े निष्कलंक व निष्काम हैं | कर्तव्यनिष्ठ होने में और निष्कामता में भगवान सूर्य की बराबरी कौन कर सकता है ! कुछ भी लेना नहीं, न किसी से राग है न द्वेष है | अपनी सत्ता-समानता में प्रकाश बरसाते रहते हैं, देते रहते हैं |

पद्म पुराण’ में सूर्यदेवता का मूल मंत्र है : ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम: | अगर इस सूर्य मंत्र का ‘आत्मप्रीति व आत्मानंद की प्राप्ति हो’ – इस हेतु से भगवान भास्कर का प्रीतिपूर्वक चिंतन करते हुए जप करते हैं तो खूब प्रभु-प्यार बढेगा, आनंद बढेगा |

ओज-तेज-बल का स्त्रोत : सूर्यनमस्कार

सूर्यनमस्कार करने से ओज-तेज और बुद्धि की बढ़ोत्तरी होती है |

ॐ सूर्याय नम: |

ॐ भानवे नम: |

ॐ खगाय नम:

ॐ रवये नम:

ॐ अर्काय नम: |…..

आदि मंत्रो से सूर्यनमस्कार करने से आदमी ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है | इसमें प्राणायाम भी हो जाता है, कसरत भी हो जाती है |

सूर्य की उपासना करने से, अर्घ्य देने से, सूर्यस्नान व सूर्य-ध्यान आदि करने से कामनापूर्ति होती है | सूर्य का ध्यान भ्रूमध्य में करने से बुद्धि बढती है और नाभि-केंद्र में करने से मन्दाग्नि दूर होती है, आरोग्य का विकास होता है |

आरोग्य व पुष्टि वर्धक : सूर्यस्नान

सूर्य की धूप में जो खाद्य पदार्थ, जैसे-घी, तेल आदि २ – ४ घंटे रखा रहे तो अधिक सुपाच्य हो जाता है | धूप में रखे हुए पानी से कभी –कभी स्नान कर सकते हैं | इससे सूखा रोग (Rickets) नहीं होता और रोगनाशिनी शक्ति बरक़रार रहती है |

सूर्य की किरणों से रोग दूर करने की प्रशंसा ‘अथर्ववेद’ में भी आती है | कांड – १, सूक्त २२ के श्लोकों में सूर्य की किरणों का वर्णन आता है |

मैं १५-२० मिनट सूर्यस्नान करता हूँ | लेटे–लेटे सूर्यस्नान करना और भी हितकारी होता है लेकिन सूर्य की कोमल धूप हो, सूर्योदय से एक-डेढ़ घंटे के अंदर-अंदर सूर्यस्नान कर लें | इससे मांसपेशियाँ तंदुरस्त होती हैं, स्नायुओं का दौर्बल्य दूर होता है | सूर्यस्नान का यह प्रसाद मुझे अनुभव होता है | मुझे स्नायुओं में दौर्बल्य नहीं है | स्नायु की दुर्बलता, शरीर में दुर्बलता, थकान व कमजोरी हो तो प्रतिदिन सूर्यस्नान करना चाहिए |

सूर्यस्नान से त्वचा के रोग भी दूर होते हैं, हड्डियाँ मजबूत होती हैं | रक्त में कैल्शियम, फ़ॉस्फोरस व लोहें की मात्राएँ बढती हैं, ग्रंथियों के स्त्रोतों में संतुलन होता है | सूर्यकिरणों से खून का दौरा तेज, नियमित व नियंत्रित चलता है | लाल रक्त कोशिकाएँ जाग्रत होती हैं, रक्त की वृद्धि होती है | गठिया, लकवा और आर्थराइटिस के रोग में भी लाभ होता है | रोगाणुओं का नाश होता है, मस्तिष्क के रोग, आलस्य, प्रमाद, अवसाद, ईर्ष्या-द्वेष आदि शांत होते हैं | मन स्थिर होने में भी सूर्य की किरणों का योगदान है | नियमित सूर्यस्नान से मन पर नियंत्रण, हार्मोन्स पर नियंत्रण और त्वचा व स्नायुओं में क्षमता, सहनशीलता की वृद्धि होती है |

नियमित सूर्यस्नान से दाँतों के रोग दूर होने लगते हैं | विटामिन ‘डी’ की कमी से होनेवाले सूखा रोग, संक्रामक रोग आदि भी सूर्यकिरणों से भगाये जा सकते हैं |

अत: आप भी खाद्य अन्नों को व स्नान के पानी को धूप में रखों तथा सूर्यस्नान का खूब लाभ लो |

दृढ़ संकल्पवान व साधना में उन्नत होने का दिन

उत्तरायण यह देवताओं का ब्राम्हमुहूर्त है तथा लौकिक व अध्यात्म विद्याओं की सिद्धि का काल है | तो मकर संक्रांति के पूर्व की रात्रि में सोते समय भावना करना कि ‘पंचभौतिक शरीर पंचभूतों में, मन, बुद्धि व अहंकार प्रकृति में लीन करके मैं परमात्मा में शांत हो रहा हूँ | और जैसे उत्तरायण के पर्व के दिन भगवान सूर्य दक्षिण से मुख मोडकर उत्तर की तरफ जायेंगे, ऐसे ही हम नीचे के केन्द्रों से मुख मोडकर ध्यान-भजन और समता के सूर्य की तरफ बढ़ेंगे |

ॐ शांति …. ॐ आनंद …. ‘

रात को ‘ॐ सूर्याय नम: |’

इस मंत्र का चिंतन करके सोओगे तो सुबह उठते-उठते सूर्यनारायण का भ्रूमध्य में ध्यान भी सहज में कर पाओगे | उससे बुद्धि का विकास होगा |

मकर संक्रांति

15 जनवरी 2024 सोमवार को (पुण्यकाल सूर्योदय से सूर्यास्त तक मकर संक्राति है।

मकर संक्रांति के दिन एक मुट्ठी काले तिल को लेकर घर के सभी सदस्यों के सिर से 7 बार वार कर उत्तर दिशा में बिना देखे फेंक दें. ऐसा करने से रोगों से छुटकारा मिलता है साथ ही कर्ज से भी मुक्ति मिलती है.

सूर्य आराधना और अर्घ्यमकर संक्रांति के दिन सूर्य पूजन और अर्घ्य का विशेष महत्व होता है. इससे आपके गृह दोष दूर होते हैं और नौकरी, भोग विलास, रोग, दोष से मुक्ति मिलती है. इसलिए स्नान कर के सूर्य देव को अर्घ्य दें. ध्यान रहे कि अर्घ्य में लाल चंदन, लाल फूल, गुड़ और तिल अवश्य लें. इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं उनकी कृपा दृष्टि आप पर हमेशा बनी रहती है.

नारद पुराण के अनुसार

“मकरस्थे रवौ गङ्गा यत्र कुत्रावगाहिता ।

पुनाति स्नानपानाद्यैर्नयन्तीन्द्रपुरं जगत् ।।”

सूर्य के मकर राशिपर रहते समय जहाँ कहीं भी गंगा में स्नान किया जाय , वह स्नान आदि के द्वारा सम्पूर्ण जगत्‌‍ को पवित्र करती और अन्त में इन्द्रलोक पहुँचाती है।

पद्मपुराण के सृष्टि खंड अनुसार मकर संक्रांति में स्नान करना चाहिए। इससे दस हजार गोदान का फल प्राप्त होता है। उस समय किया हुआ तर्पण, दान और देवपूजन अक्षय होता है।

गरुड़पुराण के अनुसार मकर संक्रान्ति, चन्द्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण के अवसर पर गयातीर्थ में जाकर पिंडदान करना तीनों लोकों में दुर्लभ है।

मकर संक्रांति के दिन लक्ष्मी प्राप्ति व रोग नाश के लिए गोरस (दूध, दही, घी) से भगवान सूर्य, विपत्ति तथा शत्रु नाश के लिए तिल-गुड़ से भगवान शिव, यश-सम्मान एवं ज्ञान, विद्या आदि प्राप्ति के लिए वस्त्र से देवगुरु बृहस्पति की पूजा महापुण्यकाल / पुण्यकाल में करनी चाहिए।

मकर संक्रांति के दिन तिल (सफ़ेद तथा काले दोनों) का प्रयोग तथा तिल का दान विशेष लाभकारी है। विशेषतः तिल तथा गुड़ से बने मीठे पदार्थ जैसे की रेवड़ी, गजक आदि। सुबह नहाने वाले जल में भी तिल मिला लेने चाहिए।

विष्णु पुराण, द्वितीयांशः अध्यायः 8 के अनुसार

कर्कटावस्थिते भानौ दक्षिणायनमुच्यते ।

उत्तरायणम्प्युक्तं मकरस्थे दिवाकरे ।।

सूर्य के ‪‎कर्क‬ राशि में उपस्थित होने पर ‪‎दक्षिणायन‬ कहा जाता है और उसके ‪मकर ‬राशि पर आने से ‪उत्तरायण‬ कहलाता है|

धर्मसिन्धु के अनुसार

तिलतैलेन दीपाश्च देया: शिवगृहे शुभा:।

सतिलैस्तण्डुलैर्देवं पूजयेद्विधिवद् द्विजम्।।

तस्यां कृष्ण तिलै: स्नानं कार्ये चोद्वर्त्नम तिलै:

तिला देवाश्च होतव्या भक्ष्याश्चैवोत्तरायणे

उत्तरायण के दिन तिलों के तेल के दीपक से शिवमंदिर में प्रकाश करना चाहिए , तिलों सहित चावलों से विधिपूर्वक शिव पूजन करना चाहिए. ये भी बताया है की उत्तरायण में तिलों सेठ उबटन, काले तिलों से स्नान, तिलों का दान, होम तथा भक्षण करना चाहिए .

अत्र शंभौ घृताभिषेको महाफलः

वस्त्रदानं महाफलं

मकर संक्रांति के दिन महादेव जी को घृत से अभिषेक (स्नान) कराने से महाफल होता है . गरीबों को वस्त्रदान से महाफल होता है .

अत्र क्षीरेण भास्करं स्नानपयेव्सूर्यलोकप्राप्तिः

इस संक्रांति को दूध से सूर्य को स्नान करावै तो सूर्यलोक की प्राप्ति होती है

“क्षीराद्यैः स्नापयेद्यस्तु रविसंक्रमणे हरिम् ।

स वसेद्विष्णुसदने त्रिसप्तपुरुषैः सह ।।”

जो सूर्यकी संक्रान्तिके दिन दूध आदिसे श्रीहरिको नहलाता है , वह इक्कीस पीढ़ियोंके साथ विष्णुलोक में वास करता है।

🙏जय श्री राम 🙏

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कालभैरव अष्टमी 2023|Kaal Bhairav Ashtami 2023

img 4975कालभैरव अष्टमी जानिए संपूर्ण जानकारी

05 दिसम्बर, मंगलवार को भैरव अष्टमी पर्व है। यह दिन भगवान भैरव और उनके सभी रूपों के समर्पित होता है। भगवान भैरव को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है,इनकी पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व माना जाता है।

भगवान भैरव को कई रूपों में पूजा जाता है। भगवान भैरव के मुख्य 8 रूप माने जाते हैं। उन रूपों की पूजा करने से भगवान अपने सभी भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें अलग-अलग फल प्रदान करते हैं।

भगवान भैरव के 8 रूप जानें कौन-सी मनोकामना के लिए करें किसकी पूजा

1⃣ कपाल भैरव

इस रूप में भगवान का शरीर चमकीला है, उनकी सवारी हाथी है । कपाल भैरव एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में तलवार तीसरे में शस्त्र और चौथे में पात्र पकड़े हैं। भैरव के इन रुप की पूजा अर्चना करने से कानूनी कारवाइयां बंद हो जाती है । अटके हुए कार्य पूरे होते हैं ।

2⃣ क्रोध भैरव

क्रोध भैरव गहरे नीले रंग के शरीर वाले हैं और उनकी तीन आंखें हैं । भगवान के इस रुप का वाहन गरुण हैं और ये दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी माने जाते ह । क्रोध भैरव की पूजा-अर्चना करने से सभी परेशानियों और बुरे वक्त से लड़ने की क्षमता बढ़ती है ।

3⃣ असितांग भैरव

असितांग भैरव ने गले में सफेद कपालों की माला पहन रखी है और हाथ में भी एक कपाल धारण किए हैं । तीन आंखों वाले असितांग भैरव की सवारी हंस है । भगवान भैरव के इस रुप की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य में कलात्मक क्षमताएं बढ़ती है ।

4⃣ चंद भैरव

इस रुप में भगवान की तीन आंखें हैं और सवारी मोर है ।चंद भैरव एक हाथ में तलवार और दूसरे में पात्र, तीसरे में तीर और चौथे हाथ में धनुष लिए हुए है। चंद भैरव की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलता हैं और हर बुरी परिस्थिति से लड़ने की क्षमता आती है ।

5⃣ गुरू भैरव

गुरु भैरव हाथ में कपाल, कुल्हाडी, और तलवार पकड़े हुए है ।यह भगवान का नग्न रुप है और उनकी सवारी बैल है।गुरु भैरव के शरीर पर सांप लिपटा हुआ है।गुरु भैरव की पूजा करने से अच्छी विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

6⃣ संहार भैरव

संहार भैरव नग्न रुप में है, और उनके सिर पर कपाल स्थापित है ।इनकी तीन आंखें हैं और वाहन कुत्ता है । संहार भैरव की आठ भुजाएं हैं और शरीर पर सांप लिपटा हुआ है ।इसकी पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते है ।

7⃣ उन्मत भैरव

उन्मत भैरव शांत स्वभाव का प्रतीक है । इनकी पूजा-अर्चना करने से मनुष्य की सारी नकारात्मकता और बुराइयां खत्म हो जाती है । भैरव के इस रुप का स्वरूप भी शांत और सुखद है । उन्मत भैरव के शरीर का रंग हल्का पीला हैं और उनका वाहन घोड़ा हैं।

8⃣ भीषण भैरव

भीषण भैरव की पूजा-अर्चना करने से बुरी आत्माओं और भूतों से छुटकारा मिलता है । भीषण भैरव अपने एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तीसरे हाथ में तलवार और चौथे में एक पात्र पकड़े हुए है ।भीषण भैरव का वाहन शेर है ।

कालभैरव अष्टमी

धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कालभैरव का अवतार लिया था। इसलिए इस पर्व को कालभैरव जयंती को रूप में मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 05 दिसम्बर, मंगलवार को है।

भगवान कालभैरव को तंत्र का देवता माना गया है। तंत्र शास्त्र के अनुसार,किसी भी सिद्धि के लिए भैरव की पूजा अनिवार्य है। इनकी कृपा के बिना तंत्र साधना अधूरी रहती है। इनके 52 रूप माने जाते हैं। इनकी कृपा प्राप्त करके भक्त निर्भय और सभी कष्टों से मुक्त हो जाते हैं। कालभैरव जयंती पर कुछ आसान उपाय कर आप भगवान कालभैरव को प्रसन्न कर सकते हैं।

ये हैं कालभैरव को प्रसन्न करने के 11 उपाय, कोई भी 1 करें

1. कालभैरव अष्टमी को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठ जाएं। सामने भगवान कालभैरव की तस्वीर स्थापित करें व पंचोपचार से विधिवत पूजा करें। इसके बाद रूद्राक्ष की माला से नीचे लिखे मंत्र की कम से कम पांच माला जाप करें तथा भैरव महाराज से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें।

मंत्र- ‘ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:’

2. कालभैरव अष्टमी पर किसी ऐसे भैरव मंदिर में जाएं, जहां कम ही लोग जाते हों। वहां जाकर सिंदूर व तेल से भैरव प्रतिमा को चोला चढ़ाएं। इसके बाद नारियल, पुए, जलेबी आदि का भोग लगाएं। मन लगाकर पूजा करें। बाद में जलेबी आदि का प्रसाद बांट दें। याद रखिए अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं।

3. कालभैरव अष्टमी को भगवान कालभैरव की विधि-विधान से पूजा करें और नीचे लिखे किसी भी एक मंत्र का जाप करें। कम से कम 11 माला जाप अवश्य करें।

ॐ कालभैरवाय नम:।

ॐ भयहरणं च भैरव:।

ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।

ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्

4. कालभैरव अष्टमी की सुबह भगवान कालभैरव की उपासना करें और शाम के समय सरसों के तेल का दीपक लगाकर समस्याओं से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।

5. कालभैरव अष्टमी पर 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ॐ नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। साथ ही, एकमुखी रुद्राक्ष भी अर्पण करें। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।

6. कालभैरव अष्टमी को एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए। इस क्रम को जारी रखें, लेकिन सिर्फ हफ्ते के तीन दिन (रविवार, बुधवार व गुरुवार)। यही तीन दिन भैरवनाथ के माने गए हैं।

7. अगर आप कर्ज से परेशान हैं तो कालभैरव अष्टमी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव की पूजा करें। उन्हें बिल्व पत्र अर्पित करें। भगवान शिव के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस मंत्र का जप करें।

मंत्र- ॐ ऋणमुक्तेश्वराय नम:

8. कालभैरव अष्टमी के एक दिन पहले उड़द की दाल के पकौड़े सरसों के तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढककर रखें। सुबह जल्दी उठकर सुबह 6 से 7 बजे के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकलें और कुत्तों को खिला दें।

9. सवा किलो जलेबी भगवान भैरवनाथ को चढ़ाएं और बाद में गरीबों को प्रसाद के रूप में बांट दें। पांच नींबू भैरवजी को चढ़ाएं। किसी कोढ़ी, भिखारी को काला कंबल दान करें।

10. कालभैरव अष्टमी पर सरसो के तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे पकवान तलें और गरीब बस्ती में जाकर बांट दें। घर के पास स्थित किसी भैरव मंदिर में गुलाब, चंदन और गूगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं।

11. सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरवनाथ के मंदिर में कालभैरव अष्टमी पर चढ़ाएं।

12. कालभैरव अष्टमी की सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान कालभैरव के मंदिर जाएं और इमरती का भोग लगाएं। बाद में यह इमरती दान कर दें। ऐसा करने से भगवान कालभैरव प्रसन्न होते हैं।

13. कालभैरव अष्टमी को समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं और भगवान शिव का जल से अभिषेक करें और उन्हें काले तिल अर्पण करें। इसके बाद मंदिर में कुछ देर बैठकर मन ही मन में ॐ नम: शिवाय मंत्र का जप करें।

🙏जय श्री राम 🙏

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