Puja Vidhi

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Chaitra Navratri 2023 Complete Details with Ghat Sthapna and Puja

चैत्र नवरात्रि: -22/03/2023 to 31/03/2023, जानिए सम्पूर्ण विवरण और पूजा विधि, घट स्थापना की जानकारी के साथ

नवरात्रि: -22/03/2023 to 31/03/2023,

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Navratri 2023

चैत्र नवरात्रि उत्तरी भारत में अधिक लोकप्रिय है. महाराष्ट्र में चैत्र नवरात्रि की शुरुआत गुडी पडवा से होती है और आंध्र प्रदेश में इसकी शुरुआत उगदी से होती है.

नवरात्रि पूजन विधि

नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।

घट स्थापना शुभ मुहूर्त:

घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर पड़ता है, इस बार घटस्थापना मुहुरत द्वि स्वभाव मीन लग्न के दौरान पड़ रहा है।

बुधवार 22-मार्च -2023, सुबह 6:23 बजे से सुबह 7:32 बजे तक घटस्थापना करने का सबसे अच्छा मुहूर्त रहेगा।

हमारे शास्त्रों ने नवरात्रि की शुरुआत में एक निश्चित अवधि के दौरान घाटस्थान प्रदर्शन करने के लिए नियमों और दिशानिर्देशों को अच्छी तरह से परिभाषित किया है. घटस्थापना देवी शक्ति का आह्वान है और इसे गलत समय में करके आप , जैसा कि हमारे धर्मग्रंथों में लिखा गया है, देवी शक्ति का क्रोध में ला सकते है,इसलिए समय का विशेष ख़याल रखे . अमावस्या और रात के समय के दौरान घटस्थापना निषिद्ध है.

घटस्थापना करने का सबसे शुभ या शुभ समय दिन का पहला एक तिहाई है जबकि प्रतिपदा प्रचलित है. यदि कुछ कारणों से यह समय उपलब्ध नहीं है, तो घटस्थापना को अभिजीत नक्षत्र के दौरान किया जा सकता है .

यह सलाह दी जाती है कि घटस्थापना के दौरान चित्रा नकशात्रा और वैदृती योग से बचें लेकिन वे निषिद्ध नहीं हैं. विचार करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक यह है कि घाटस्थान दोपहर से पहले किया जाता है जिस दिन प्रतिपदा हो।

पुजा सामग्री

जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र

जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी

पात्र में बोने के लिए जौ

घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश (“हैमो वा राजतस्ताम्रो मृण्मयो वापि ह्यव्रणः” अर्थात ‘कलश’ सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का छेद रहित और सुदृढ़ उत्तम माना गया है । वह मङ्गलकार्योंमें मङ्गलकारी होता है )

कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल

मौली (Sacred Thread)

इत्र

साबुत सुपारी

दूर्वा

कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के

पंचरत्न

अशोक या आम के 5 पत्ते

कलश ढकने के लिए ढक्कन

ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल

पानी वाला नारियल

नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा

फूल माला

विधि

सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मौली बाँध दें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र डाल दें। कलश में पंचरत्न डालें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें।

नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मौली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।

अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। “हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इसमें पधारें।” अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें।

कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।

नवरात्रि के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें|

माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें “हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।” उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।

नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है।

नवरात्रि के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है। दीपक के नीचे “चावल” रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा “सप्तधान्य” रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है ।

माता की पूजा “लाल रंग के कम्बल” के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है।

नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। मान भगवती को इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है।

नवरात्रि के प्रतिदिन कंडे की धुनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कर्पूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नवरात्रि में पान और गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें

मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है। किस दिन किस चीज़ का भोग लगाना है इसके बारे में नीचे बताएँगे।

प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “एकैकां पूजयेत् कन्यामेकवृद्ध्या तथैव च। द्विगुणं त्रिगुणं वापि प्रत्येकं नवकन्तु वा॥” अर्थात नित्य ही एक कुमारी का पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक-कुमारी की संख्या के वृद्धिक्रम से पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुने के वृद्धिक्रम से और या तो प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करें।

यदि कोई व्यक्ति नवरात्रि पर्यन्त प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ हैं तो उसे अष्टमी तिथि को विशेष रूप से अवश्य पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंश करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली करोङों योगिनियों सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुई थीं।

नवरात्रि के प्रत्येक दिन का विशेष महत्व होता है और हर दिन का अपना विशेष नाम होता है। नवरात्रि के नौ दिन और उनके अवतारों का विवरण निम्नलिखित हैं:

1. प्रथम दिन: शैलपुत्र, शैलपुत्री देवी का वाहन वृषभ होता है और इसका वर्ण ग्रीष्म ऋतु में उत्तम होता है। उनकी पूजा के दिन के रंग अबोली होता है।

2. दूसरा दिन: ब्रह्मचारिणी, ब्रह्मचारिणी का वाहन शंख होता है और उनका वर्ण सावन मास में उत म होता है। उनकी पूजा के दिन के रंग पीला होता है।

3. तृतीया दिन: चंद्रघंटा,चंद्रघंटा देवी का वाहन सिंह होता है और इसका वर्ण शरद ऋतु में उत्तम होता है। उनकी पूजा के दिन के रंग कमल रंग होता है।

4. चतुर्थी दिन: कूष्मांडा, कूष्मांडा देवी का वाहन बैल होता है और इसका वर्ण शरद ऋतु में उत्तम होता है। उनकी पूजा के दिन के रंग नीला होता है।

5. पंचमी दिन: स्कंदमाता, स्कंदमाता देवी का वाहन सिंह होता है और इसका वर्ण शरद ऋतु में उत्तम होता है। उनकी पूजा के दिन के रंग सफेद होता है।

6. षष्ठी दिन: कात्यायनी, कात्यायनी देवी का वाहन सिंह होता है और इसका वर्ण शरद ऋतु में उत्तम होता है। उनकी पूजा के दिन के रंग लाल होता है।

7. सप्तमी दिन: कालरात्रि, कालरात्रि देवी का वाहन बैल होता है और इसका वर्ण शरद ऋतु में उत्तम होता है। उनकी पूजा के दिन के रंग काला होता है।

8. अष्टमी दिन: महागौरी, महागौरी देवी का वाहन वृष होता है और इसका वर्ण शरद ऋतु में उत्तम होता है। उनकी पूजा के दिन के रंग आसमानी नीला होता है।

9. नवमी दिन: सिद्धिदात्री, सिद्धिदात्री देवी का वाहन शेर होता है और इसका वर्ण शरद ऋतु में उत्तम होता है। उनकी पूजा के दिन के रंग फूलवारी लाल होता है।

10. दशमी :दशमी के साथ ही नवरात्रि के पावन त्योहार का पारण हो जाता है और हम देवी माँ भगवती से हाथ जोड़ की प्रणाम करते है और शारदीय नवरात्र में फिर से उसी उत्साह के साथ उनके स्वागत को आतुर होते है ।

जय माता दी

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अतिसंक्षिप्त शिव अभिषेक विधि Very Brief Shiva Abhishek Method

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Very Brief Shiva Abhishek Method

सामान्य गृहस्थ जिसको मंत्र आदि का ज्ञान नहीं उनके हेतु

अभिषेक सामग्री:

दूध, दही, शहद, घी, बूरा अथवा चीनी, गंगाजल, बेल-पत्र, धतूरा, भांग, चन्दन, केसर, कर्पूर, पुष्प, काले तिल, अक्षत(चावल बिना टूटे), गंध  Abhishek Ingredients: Milk, curd, honey, ghee, boora or sugar, gangajal, bel-patra, dhatura, hemp, sandalwood, saffron, camphor, flowers, black sesame, Akshat (unbroken rice), odor

विधि:

स्नान के पश्चयात शुद्ध होकर पूजा की सम्पूर्ण सामग्री लेकर शिव मंदिर जाएँ (भक्तगण घर पर भी शिव पूजा कर सकते हैं)। सर्वप्रथम गौरी-गणेश का पूजन करें। उसके पश्च्यात शिव वंदना करें :-

Method: After bathing, being pure, go to the Shiva temple with all the worship materials (devotees can also worship Shiva at home). First of all worship Gauri-Ganesh. After that worship Shiva :-

वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम् l

वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनां पतिम् ll

वन्दे सूर्य शशांक वह्नि नयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम् l

वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवंशंकरम् ll

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्‌।

उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम्‌ ॥

परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्‌।

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥

वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।

हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥

एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।

सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥

मृत्युञ्जय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम्।

जन्म मृत्युजराव्याधिः पीड़ितं कर्म बन्धनैः ।।

अभिषेक के समय रुद्राभिषेकस्त्रोत्र, शिवमहिम्नस्तोत्र, श्रीरुद्रष्टकम, अथवा शिवतांडवस्‍तोत्रम का पाठ शिव को अत्यंत प्रसन्नता प्रदान करता है। परन्तु अगर आप इनका पाठ नहीं कर सकते तो “नमः शिवाय” का ही जप करें। यह शिव का सबसे सुन्दर तथा आसान, पञ्चाक्षर मंत्र है। The recitation of Rudrabhishekastrotra, Shivamahimnastotra, Srirudrashtakam, or Shivatandavastotram at the time of consecration gives immense pleasure to Shiva. But if you cannot recite them, then chant “Namah Shivay”. This is the most beautiful and easy, five letter mantra of Shiva.

  1. सबसे पहले शिवलिंग पर जल अर्पित करें First of all offer water on Shivling
  2. जलस्नान के बाद शिवलिंग को दूध से स्नान कराएं। फिर से जल से स्नान कराएं। After water bath, bathe the Shivling with milk. Take a bath with water again.
  3. उसके बाद दही से स्नान कराएं। इसके बाद जल से स्नान कराएं। After that give a bath with curd. After this give a bath with water.
  4. दही स्नान के बाद घी स्नान कराएं। इसके बाद जल से स्नान कराएं। Take ghee bath after curd bath. After this take a bath with water.
  5. घी स्नान के बाद मधु यानी शहद से स्नान कराएं। इसके बाद जल से स्नान कराएं। After ghee bath, bathe with honey. After this take a bath with water.
  6. शहद स्नान के बाद शर्करा या शक्कर से स्नान कराएं। इसके बाद जल स्नान कराएं। After honey bath, take bath with sugar or sugar. After this give water bath.
  7. आखिर में सभी पांच चीजों को मिलाकर पंचामृत बनाकर स्नान कराएं।  और “ॐ नमो नमः शिवाय” मंत्र से पूजा करें। In the end, make Panchamrit by mixing all the five things and take a bath. And worship with the mantra “Om Namo Namah Shivay”.
  8. पंचामृत स्नान के बाद शुद्धजल से स्नान कराएं। Give bath with pure water after Panchamrit bath.
  9. फिर कर्पूर से सुगंधित शीतल जल चढ़ाएं। Then offer soft water scented with camphor.
  10. केसर को चंदन से घिसकर तिलक लगाएं। Rub saffron with sandalwood and apply Tilak.
  11. अक्षत (चावल बिना टूटे) अर्पित करें, काले तिल अर्पित करें Offer Akshat (unbroken rice), offer black sesame seeds
  12. फिर धतूरा, भांग, बिल्वपत्र, अक्षत, पुष्प और गंध चढ़ावें। Then offer Datura, Bhang, Bilvapatra, Akshat, Pushpa and Gandh. बिल्वाष्टक बोलते हुए तीन पत्ती वाला बिल्व पत्र शिवलिंग पर इस तरह समर्पित करें की चिकना भाग नीचे रह कर शिवलिंग को स्पर्श करे। While reciting Bilvashtak, dedicate a three-leafed Bilva leaf on the Shivling in such a way that the smooth part touches the Shivling by remaining at the bottom.  ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जो शिवरात्रि के दिन भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाता है, वह पत्र-संख्या के बराबर युगों तक कैलास में सुख पूर्वक वास करता है। पुनः श्रेष्ठ योनि में जन्म लेकर भगवान शिव का परम भक्त होता है। विद्या, पुत्र, सम्पत्ति, प्रजा और भूमि-ये सभी उसके लिए सुलभ रहते हैं। According to the Brahmavaivarta Purana, one who offers bilvapatra to Lord Shankar on the day of Shivratri, lives happily in Kailasa for ages equal to the number of leaves. By taking birth again in the best birth, he is the ultimate devotee of Lord Shiva. Knowledge, sons, wealth, subjects and land – all these remain accessible to him.
  13. किसी भी प्रकार की परेशानी दूर करने के लिए या मनोकामना पूर्ती के लिए 1000 बिल्व पत्र शिव सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए अर्पित करें अथवा श्रीशिवाष्टोत्तरशतनामावलिःका पाठ करते हुए 108 बिल्वपत्र अर्पित करें To remove any kind of trouble or to fulfill wishes, offer 1000 bilvapatra while reciting Shiva Sahastranam or offer 108 bilvapatra while reciting Shree Shivashtottarshatanamavali:
  14. इसके बाद धूप, दीप और नैवेद्य भगवान शिव को अर्पित करें। After this offer incense, lamp and naivedya to Lord Shiva.
  15. उसके बाद नंदीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय और कुबेर का पूजन करें। After that worship Nandishwar, Virbhadra, Kartikeya and Kuber.
  16. अंत में पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांग और अपनी कामनाओं के लिए शिव से प्रार्थना करें। At the end, ask for forgiveness for the mistakes made in worship and pray to Shiva for your wishes.

मन्त्रहीनं कियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।

यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ॥

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥

पोपोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसम्भव: ।

त्राहि मां पार्वतीनाथ सर्वपापहरो भव ॥

अपराधसहस्त्राणि कियन्तेऽहर्निशं मया ।

दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव 

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव 

त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥

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