Mantra, Aarti and Katha collection

This is a collection of all important Mantras, Aarti and Katha which is mentioned in various Purans, Shastra and ancient shastras.

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पौष मास

पौष मास

पौष हिन्दू धर्म का दसवाँ महीना है। इस वर्ष 27 दिसम्बर 2023 (उत्तर भारत हिन्दू पंचांग के अनुसार) से पौष का आरम्भ हो गया है। (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार अभी मार्गशीर्ष मास है।) पौष मास की पूर्णिमा को अधिकांशतः चंद्र पुष्य नक्षत्र में होते हैं। तैत्तिरीय संहिता में पौष का नाम सहस्य बताया गया है। यह मास दक्षिणायनांत है। पौष मास में अधिकांशतः सूर्य धनु राशि में होते हैं। पौष मास को खर मास बहुत से लोग मानते हैं और इसमें कोई शुभ कार्य नहीं करते विशेषतः जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश कर जाएँ।

महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार “पौषमासं तु कौन्तेय भक्तेनैकेन यः क्षिपेत्। सुभगो दर्शनीयश्च यशोभागी च जायते।।” जो पौष मास को एक वक्त भोजन करके बिताता है वह सौभाग्यशाली, दर्शनीय और यश का भागी होता है ।

शिवपुराण के अनुसार पौषमास में पूरे महिनेभर जितेन्द्रिय और निराहार रहकर द्विज प्रात:कालसे मध्यांन्ह कालतक वेदमाता गायत्रीका जप करें | तत्पश्चात रातको सोने के समयतक पंचाक्षर आदि मन्त्रों का जप करें | ऐसा करनेवाला ब्राह्मण ज्ञान पाकर शरीर छूटने के बाद मोक्ष प्राप्त कर लेता हैं |

शिवपुराण के अनुसार पौष मास में नमक के दान से षडरस भोजन की प्राप्ति होती है।

पौषमास में शतभिषा नक्षत्र के आने पर गणेश जी की पूजा करनी चाहिए*

महाभारत अनुशासन पर्व में ब्रह्मा जी कहते हैं

पौषमासस्य शुक्ले वै यदा युज्येत रोहिणी।

तेन नक्षत्रयोगेन आकाशशयनो भवेत्॥

एकवस्त्रः शुचिः स्नातः श्रद्दधानः समाहितः।

सोमस्य रश्मयः पीत्वा महायज्ञफलं लभेत्॥

पौषमास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन रोहिणी नक्षत्र का योग हो, उस दिन की रात में मनुष्य स्नान आदि से शुद्ध हो एक वस्त्र धारण करके श्रद्धा और एकाग्रता के साथ खुले मैदान में आकाश के नीचे शयन करे और चन्द्रमा की किरणों का ही पान करता रहे । ऐसा करने से उसको महान यज्ञ का फल मिलता है।

ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखण्ड के अनुसार चैत्र, पौष तथा भाद्रपद मास के पवित्र मंगलवार को भगवान विष्णु ने भक्ति पूर्वक तीनों लोकों में लक्ष्मी पूजा का महोत्सव चालू किया। वर्ष के अन्त में पौष की संक्रान्ति के दिन मनु ने अपने प्रांगण में इनकी प्रतिमा का आवाहन करके इनकी पूजा की। तत्पश्चात तीनों लोकों में वह पूजा प्रचलित हो गयी।

शिवपुराण के अनुसार धनु की संक्रांति से युक्त पौषमास में उष:काल में शिव आदि समस्त देवताओं का पूजन क्रमश: समस्त सिद्धियों की प्राप्ति करानेवाला होता हैं | इस पूजन में अगहनी के चावल से तैयार किये गये हविष्य का नैवेद्य उत्तम बताया जाता हैं | पौषमास में नाना प्रकार के अन्नका नैवेद्य विशेष महत्त्व रखता हैं |

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कालभैरव अष्टमी 2023|Kaal Bhairav Ashtami 2023

img 4975कालभैरव अष्टमी जानिए संपूर्ण जानकारी

05 दिसम्बर, मंगलवार को भैरव अष्टमी पर्व है। यह दिन भगवान भैरव और उनके सभी रूपों के समर्पित होता है। भगवान भैरव को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है,इनकी पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व माना जाता है।

भगवान भैरव को कई रूपों में पूजा जाता है। भगवान भैरव के मुख्य 8 रूप माने जाते हैं। उन रूपों की पूजा करने से भगवान अपने सभी भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें अलग-अलग फल प्रदान करते हैं।

भगवान भैरव के 8 रूप जानें कौन-सी मनोकामना के लिए करें किसकी पूजा

1⃣ कपाल भैरव

इस रूप में भगवान का शरीर चमकीला है, उनकी सवारी हाथी है । कपाल भैरव एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में तलवार तीसरे में शस्त्र और चौथे में पात्र पकड़े हैं। भैरव के इन रुप की पूजा अर्चना करने से कानूनी कारवाइयां बंद हो जाती है । अटके हुए कार्य पूरे होते हैं ।

2⃣ क्रोध भैरव

क्रोध भैरव गहरे नीले रंग के शरीर वाले हैं और उनकी तीन आंखें हैं । भगवान के इस रुप का वाहन गरुण हैं और ये दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी माने जाते ह । क्रोध भैरव की पूजा-अर्चना करने से सभी परेशानियों और बुरे वक्त से लड़ने की क्षमता बढ़ती है ।

3⃣ असितांग भैरव

असितांग भैरव ने गले में सफेद कपालों की माला पहन रखी है और हाथ में भी एक कपाल धारण किए हैं । तीन आंखों वाले असितांग भैरव की सवारी हंस है । भगवान भैरव के इस रुप की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य में कलात्मक क्षमताएं बढ़ती है ।

4⃣ चंद भैरव

इस रुप में भगवान की तीन आंखें हैं और सवारी मोर है ।चंद भैरव एक हाथ में तलवार और दूसरे में पात्र, तीसरे में तीर और चौथे हाथ में धनुष लिए हुए है। चंद भैरव की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलता हैं और हर बुरी परिस्थिति से लड़ने की क्षमता आती है ।

5⃣ गुरू भैरव

गुरु भैरव हाथ में कपाल, कुल्हाडी, और तलवार पकड़े हुए है ।यह भगवान का नग्न रुप है और उनकी सवारी बैल है।गुरु भैरव के शरीर पर सांप लिपटा हुआ है।गुरु भैरव की पूजा करने से अच्छी विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

6⃣ संहार भैरव

संहार भैरव नग्न रुप में है, और उनके सिर पर कपाल स्थापित है ।इनकी तीन आंखें हैं और वाहन कुत्ता है । संहार भैरव की आठ भुजाएं हैं और शरीर पर सांप लिपटा हुआ है ।इसकी पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते है ।

7⃣ उन्मत भैरव

उन्मत भैरव शांत स्वभाव का प्रतीक है । इनकी पूजा-अर्चना करने से मनुष्य की सारी नकारात्मकता और बुराइयां खत्म हो जाती है । भैरव के इस रुप का स्वरूप भी शांत और सुखद है । उन्मत भैरव के शरीर का रंग हल्का पीला हैं और उनका वाहन घोड़ा हैं।

8⃣ भीषण भैरव

भीषण भैरव की पूजा-अर्चना करने से बुरी आत्माओं और भूतों से छुटकारा मिलता है । भीषण भैरव अपने एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तीसरे हाथ में तलवार और चौथे में एक पात्र पकड़े हुए है ।भीषण भैरव का वाहन शेर है ।

कालभैरव अष्टमी

धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कालभैरव का अवतार लिया था। इसलिए इस पर्व को कालभैरव जयंती को रूप में मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 05 दिसम्बर, मंगलवार को है।

भगवान कालभैरव को तंत्र का देवता माना गया है। तंत्र शास्त्र के अनुसार,किसी भी सिद्धि के लिए भैरव की पूजा अनिवार्य है। इनकी कृपा के बिना तंत्र साधना अधूरी रहती है। इनके 52 रूप माने जाते हैं। इनकी कृपा प्राप्त करके भक्त निर्भय और सभी कष्टों से मुक्त हो जाते हैं। कालभैरव जयंती पर कुछ आसान उपाय कर आप भगवान कालभैरव को प्रसन्न कर सकते हैं।

ये हैं कालभैरव को प्रसन्न करने के 11 उपाय, कोई भी 1 करें

1. कालभैरव अष्टमी को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठ जाएं। सामने भगवान कालभैरव की तस्वीर स्थापित करें व पंचोपचार से विधिवत पूजा करें। इसके बाद रूद्राक्ष की माला से नीचे लिखे मंत्र की कम से कम पांच माला जाप करें तथा भैरव महाराज से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें।

मंत्र- ‘ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:’

2. कालभैरव अष्टमी पर किसी ऐसे भैरव मंदिर में जाएं, जहां कम ही लोग जाते हों। वहां जाकर सिंदूर व तेल से भैरव प्रतिमा को चोला चढ़ाएं। इसके बाद नारियल, पुए, जलेबी आदि का भोग लगाएं। मन लगाकर पूजा करें। बाद में जलेबी आदि का प्रसाद बांट दें। याद रखिए अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं।

3. कालभैरव अष्टमी को भगवान कालभैरव की विधि-विधान से पूजा करें और नीचे लिखे किसी भी एक मंत्र का जाप करें। कम से कम 11 माला जाप अवश्य करें।

ॐ कालभैरवाय नम:।

ॐ भयहरणं च भैरव:।

ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।

ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्

4. कालभैरव अष्टमी की सुबह भगवान कालभैरव की उपासना करें और शाम के समय सरसों के तेल का दीपक लगाकर समस्याओं से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।

5. कालभैरव अष्टमी पर 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ॐ नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। साथ ही, एकमुखी रुद्राक्ष भी अर्पण करें। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।

6. कालभैरव अष्टमी को एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए। इस क्रम को जारी रखें, लेकिन सिर्फ हफ्ते के तीन दिन (रविवार, बुधवार व गुरुवार)। यही तीन दिन भैरवनाथ के माने गए हैं।

7. अगर आप कर्ज से परेशान हैं तो कालभैरव अष्टमी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव की पूजा करें। उन्हें बिल्व पत्र अर्पित करें। भगवान शिव के सामने आसन लगाकर रुद्राक्ष की माला लेकर इस मंत्र का जप करें।

मंत्र- ॐ ऋणमुक्तेश्वराय नम:

8. कालभैरव अष्टमी के एक दिन पहले उड़द की दाल के पकौड़े सरसों के तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढककर रखें। सुबह जल्दी उठकर सुबह 6 से 7 बजे के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकलें और कुत्तों को खिला दें।

9. सवा किलो जलेबी भगवान भैरवनाथ को चढ़ाएं और बाद में गरीबों को प्रसाद के रूप में बांट दें। पांच नींबू भैरवजी को चढ़ाएं। किसी कोढ़ी, भिखारी को काला कंबल दान करें।

10. कालभैरव अष्टमी पर सरसो के तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे पकवान तलें और गरीब बस्ती में जाकर बांट दें। घर के पास स्थित किसी भैरव मंदिर में गुलाब, चंदन और गूगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं।

11. सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरवनाथ के मंदिर में कालभैरव अष्टमी पर चढ़ाएं।

12. कालभैरव अष्टमी की सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान कालभैरव के मंदिर जाएं और इमरती का भोग लगाएं। बाद में यह इमरती दान कर दें। ऐसा करने से भगवान कालभैरव प्रसन्न होते हैं।

13. कालभैरव अष्टमी को समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाएं और भगवान शिव का जल से अभिषेक करें और उन्हें काले तिल अर्पण करें। इसके बाद मंदिर में कुछ देर बैठकर मन ही मन में ॐ नम: शिवाय मंत्र का जप करें।

🙏जय श्री राम 🙏

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नवरात्रि 2023 संपूर्ण जानकारी : पूजा विधि : मंत्र #navratri

नवरात्रि की संपूर्ण जानकारी हर दिन का विवरण और मंत्रों के साथ माता के पूजा की विधि #navratri

नौ दिनों में माता के अलग-अलग स्वरुपों की पूजा की जाती है. इन दिनों की अलग-अलग पूजा विधि होती है, जबकि नौ दिनों के लिए अलग-अलग मंत्री भी शास्त्रों में बनाए गए हैं. शास्त्रों के हिसाब से 9 दिनों में इन्ही मंत्रों के साथ माता की पूजा की जाती है. खास बात यह है कि अलग-अलग दिन माता को भोग भी अलग-अलग ही लगाया जाता है. नवरात्रि पर पूजन विधि से जुड़ी पूरी जानकारी अधोलिखित है :-

पहले दिन मां भगवती के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है. दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्माण्डा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवे दिन महागौरी और नौवें दिन सिद्धिदात्री के रूप में माता को पूजा जाता है. हर दिन मां के अलग-अलग मंत्रों का उच्चारण करने से मनोकामना पूरी होती है और व्रत सफल होता है.

1. पहला दिन यानि मां शैलपुत्री:-

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शैलपुत्री पूजन विधि ( Shailputri Puja Vidhi) : दुर्गा को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करूणा और ममता का स्वरूप मानकर हम पूजते हैं, अत: इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता और और कलश में उन्हें विराजने हेतु प्रार्थना सहित उनका आहवान किया जाता है। शारदीय नवरात्र पर कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है। पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा होती है. कलश में सप्तमृतिका यानी सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा सादर भेट किया जाता है और पंच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता है।इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है और इससे सभी देवी-देवता की पूजा होती है।इसे जयन्ती कहते हैं जिसे इस मंत्र के साथ अर्पित किया जाता है “जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नामोस्तुते”. इसी मंत्र से पुरोहित यजमान के परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर जयंती डालकर सुख, सम्पत्ति एवं आरोग्य का आर्शीवाद देते हैं।

शैलपुत्री पूजन महत्व (Significance of Worshipping Shailputri) : देवी दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल पर बीच में स्थापित की जाती है और उनके दोनों तरफ यानी दायीं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा रहती है। वहीं बायीं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी रहती है तथा भगवान भोले नाथ की भी पूजा की जाती है। प्रथम पूजन के दिन “शैलपुत्री” के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती है।

मंत्र: वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

कलश स्थापना के पश्चात देवी दु्र्गा जिन्होंने दुर्गम नामक प्रलयंकारी अ-सुर का संहार कर अपने भक्तों को उसके त्रास से यानी पीड़ा से मुक्त कराया उस देवी का आह्वान किया जाता है. प्रतिदिन संध्या काल में देवी की आरती होती है. आरती में “जग जननी जय जय” और “जय अम्बे गौरी” के गीत भक्त जन गाते हैं.

2. दूसरा दिन यानि मां ब्रह्मचारिणी:

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दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।मां दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा विधि: देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा में सर्वप्रथम माता की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें तथा उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें व देवी को प्रसाद अर्पित करें। प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें। कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें। देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें-

मंत्र: दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल व कमल बेहद प्रिय होते हैं अत: इन फूलों की माला पहनायें, घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें।

“मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ”

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।

ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।

शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

“मां ब्रह्मचारिणी का कवच”

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।

अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥

पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥

षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।

अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

3.तीसरा दिन यानि मां चंद्रघंटा:

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तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को पूजा जाता है. नवरात्र का तीसरा दिन भय से मुक्ति और अपार साहस प्राप्त करने का होता है। इस दिन मां के चंद्रघंटा स्वरुप की उपासना की जाती है। इनके सिर पर घंटे के आकार का चंद्रमा है। इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनके दसों हाथों में अ-स्त्र-शस्त्र हैं और इनकी मुद्रा युद्ध की मुद्रा है। मां चंद्रघंटा तंभ साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती है और ज्योतिष में इनका संबंध मंगल ग्रह से होता है।

ऐसे करें पूजा : मां चंद्रघंटा , जिनके माथे पर घंटे के आकार का एक चंद्र होता है. इनकी पूजा करने से शांति आती है, परिवार का कल्याण होता है. मां को लाल फूल चढ़ाएं, लाल सेब और गुड़ चढाएं, घंटा बजाकर पूजा करें, ढोल और नगाड़े बजाकर पूजा और आरती करें, शुत्रुओं की हार होगी। इस दिन गाय के दूध का प्रसाद चढ़ाने का विशेष विधान है। इससे हर तरह के दुखों से मुक्ति मिलती है।

मंत्र:पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

4. चौथा दिन यानि मां कूष्माण्डा:

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चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा की जाती है.नवरात्र के चौथे दिन मां पारांबरा भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। मान्‍यता ये है कि जब सृष्टि का अ-स्तित्व नहीं था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।अपनी मंद-मंद मुस्कान भर से ब्रम्हांड की उत्पत्ति करने के कारण ही इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है इसलिए ये सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। देवी कुष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है जहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के समान ही अलौकिक हैं।माता के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित होती हैं ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में मौजूद तेज मां कुष्मांडा की छाया है।

मां कुष्‍माण्‍डा की आठ भुजाएं हैं। इसलिए मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। मां सिंह के वाहन पर सवार रहती हैं।

मंत्र: सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥

5. पांचवां दिन यानि मां स्कंदमाता :

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नवरात्र का पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह इनका भी वाहन है।

स्कन्दमाता की पूजा विधि : कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से जो साधक दुर्गा मां की उपासना कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा का यह दिन विशुद्ध चक्र की साधना का होता है। इस चक्र का भेदन करने के लिए साधक को पहले मां की विधि सहित पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए कुश अथवा कम्बल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे आपने अब तक के चार दिनों में किया है फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए।

मंत्र: सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

अब पंचोपचार विधि से देवी स्कन्दमाता की पूजा कीजिए। नवरात्रे की पंचमी तिथि को कहीं कहीं भक्त जन उद्यंग ललिता का व्रत भी रखते हैं। इस व्रत को फलदायक कहा गया है। जो भक्त देवी स्कन्द माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है। देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है।

स्कन्दमाता की मंत्र:

सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया ।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ।।

या देवी सर्वभू?तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

6.छठवां दिन यानि मां कात्यायनी:

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मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से मां के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।

मां कात्यायनी का स्वरूप : मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार और कमल का फूल है।देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। मान्यता के अनुसार देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है। भक्त को माता के पूजन द्वारा सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है।

मां कात्यायनी की पूजा विधि : नवरात्रों के छठे दिन मां कात्यायनी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कात्यायनी सभी प्रकार के भय से मुक्त करती हैं. मां कात्यायनी की भक्ति से धर्म, अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है. देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए।

मंत्र:चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

चढावाषष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए।

मनोकामना- मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए।

मनोवान्छित वर की प्राप्ति :माना जाता है कि जिन कन्याओं के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हें मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।

विवाह के लिए कात्यायनी मन्त्र-

ऊॅं कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।’

7. सातवां दिन यानि मां कालरात्रि:

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नवरात्रि के सातवें दिन होती है मां कालरात्रि की पूजा। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी कहा जाता है। कहा जाता है कि देवी दुर्गा ने रक्तबीज का वध करने के लिए कालरात्रि को अपने तेज से उत्पन्न किया था। इनकी उपासना से प्राणी सर्वथा भय मुक्त हो जाता है।ऐसा है मां का स्वरूप: इनके शरीर का रंग काला है। मां कालरात्रि के गले में नरमुंड की माला है। कालरात्रि के तीन नेत्र हैं और उनके केश खुले हुए हैं। मां गर्दभ की सवारी करती हैं। मां के चार हाथ हैं एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा है।

मंत्र:

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।

जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तु ते।।

धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु।

बीज मंत्र : ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ( तीन, सात या ग्यारह माला करें)

कालरात्रि पूजा विधि : सप्तमी की पूजा अन्य दिनों की तरह ही होती परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है। इस दिन कहीं कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित कि जाती है। सप्तमी की रात्रि ‘सिद्धियों’ की रात भी कही जाती है। पूजा विधान में शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार पहले कलश की पूजा करनी चाहिए।

नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है। इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं।

मनोकामना: मां की इस तरह की पूजा से मृत्यु का भय नहीं सताता। देवी का यह रूप ऋद्धि- सिद्धि प्रदान करने वाला है। देवी भगवती के प्रताप से सब मंगल ही मंगल होता है।

8.आठवां दिन यानि मां महागौरी:

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नवरात्र के आठवें दिन आठवीं दुर्गा यानि की महागौरी की पूजा अर्चना और आराधना की जाती है। कहते हैं अपनी कठीन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था। तभी से इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया।

श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ।।

मां महागौरी की पूजा करने से मन पवित्र हो जाता है और भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन षोडशोपचार पूजन किया जाता है। मां की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। देवी महागौरी का अत्यंत गौर वर्ण हैं। इनके वस्त्र और आभूषण सफेद हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है।

पूजन विधि इस प्रकार है : सबसे पहले गंगा जल से शुद्धिकरण करके देवी मां महागौरी की प्रतिमा या तस्वीर चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें।इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता महागौरी सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। इस दिन माता दुर्गा को नारियल का भोग लगाएं और नारियल का दान भी करें।

मां महागौरी का उपासना मंत्र:

श्वेते वृषे समारुढ़ा, श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरीं शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया।।

9.नौवां दिन यानि मां सिद्धिदात्री :-

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नवरात्रि के नौवें और आखिरी दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां दुर्गा की नौवीं शक्ति देवी सिद्धिदात्री की पूजा करने से भक्तों को सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। देवी सिद्धिदात्री को मां सरस्वती का भी एक रूप माना जाता है क्योंकि माता अपने सफेद वस्त्र एवं अलंकार से सुसज्जित अपने भक्तों को महाज्ञान एवं मधुर स्वर से मन्त्र-मुग्ध करती है। सिद्धिदात्री मां की पूजा के बाद ही अगले दिन दशहरा त्योहार मनाया जाता है।

देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है, देवी की चार भुजाएं हैं। दाईं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है और बांई भुजा में शंख और कमल का फूल है। मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं। मां की आराधना वाले इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है।

ऐसे करें पूजा: इस दिन माता सिद्धिदात्री को नवाह्न प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करने चाहिए। सर्वप्रथम कलश की पूजा व उसमें स्थपित सभी देवी-देवताओ का ध्यान करना चाहिए। इसके पश्चात माता के मंत्रो का जाप कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इस दिन नौ कन्याओं को घर में भोग लगाना चाहिए। नव-दुर्गाओं में सिद्धिदात्री अंतिम है तथा इनकी पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर और 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए। यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं है।इस तरह से की गई पूजा से माता अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न होती है। भक्तों को संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भक्तों को अपना सारा ध्यान निर्वाण चक्र की ओर लगाना चाहिए। यह चक्र हमारे कपाल के मध्य में स्थित होता है। ऐसा करने से भक्तों को माता सिद्धिदात्री की कृपा से उनके निर्वाण चक्र में उपस्थित शक्ति स्वतः ही प्राप्त हो जाती है।

मंत्र: सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयाात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

देवी का बीज मंत्र :

ऊॅं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नमः ।।

मां सिद्धदात्री की पूजा में हवन करने के लिए दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोकों का प्रयोग किया जा सकता है।

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Sarv Pitra Amavasya: Commemorating Ancestral Spirits and Cultivating Blessings

Sarv Pitra Amavasya 2023Sarv Pitra Amavasya 2023

Sarv Pitra Amavasya is a significant day in Hindu tradition, dedicated to honoring and remembering one’s ancestors. This day, observed on the Amavasya (New Moon) of the Krishna Paksha in the Ashwin month of the Hindu calendar, holds profound historical and cultural importance. In this article, we will delve into the history, significance, and remedies associated with Sarv Pitra Amavasya.

History:

The origins of Sarv Pitra Amavasya can be traced back to ancient Indian scriptures and texts. It is believed that our ancestors play a vital role in our lives, even after their physical existence has ended. This day is dedicated to expressing gratitude and seeking blessings from one’s forefathers.

According to Hindu mythology, the Mahabharata epic narrates the story of Karna, who, after his death, was unable to find food in the afterlife due to his deeds on Earth. To help him, Lord Krishna showed him the importance of ancestral offerings on the Amavasya. This story underlines the significance of performing rituals for one’s ancestors.

Importance:

Sarv Pitra Amavasya holds a central place in Hindu culture for several reasons:

1.Ancestral Blessings: It is believed that by offering prayers and performing rituals on this day, individuals can receive blessings from their ancestors, ensuring their well-being, prosperity, and spiritual growth.

2.Karmic Balance: This day serves as an opportunity to rectify any negative karmas or debts to one’s ancestors, allowing both the living and the departed to find solace and liberation.

3.Family Unity: Observing Sarv Pitra Amavasya encourages family members to come together, fostering a sense of unity and shared cultural values.

Remedies and Rituals:

To observe Sarv Pitra Amavasya and seek blessings from one’s ancestors, several rituals and remedies are performed:

1.Pinda Daan: The most important ritual involves offering pinda (rice balls) to ancestors. This symbolizes nourishing the departed souls and is typically done at riverbanks or holy places.

2.Tarpan: Offering water mixed with black sesame seeds and barley to ancestors is also a common practice. It is believed to purify and liberate their souls.

3.Feeding the Needy: Donating food, clothing, or other essentials to the less fortunate is considered an act of virtue on

this day, as it is believed to benefit the souls of one’s ancestors.

4.Prayers and Mantras: Chanting specific mantras and offering prayers to ancestors is an essential part of Sarv Pitra Amavasya. This can be done at home or in temples.

5.Fasting: Some people choose to fast on this day as a mark of respect and as a means of purifying the body and soul.

Important Mantra

there are specific mantras that can be chanted on Sarv Pitra Amavasya to seek blessings for your ancestors and spiritual growth. Here are a few mantras that you can consider:

1. Om Namah Shivaya: Chanting this mantra is believed to purify the soul and bring peace to your ancestors.

2. Gayatri Mantra: The Gayatri Mantra is a powerful prayer that can be chanted to seek blessings for your ancestors and the well-being of your family.

3. Om Namo Narayana: This mantra is dedicated to Lord Vishnu and can be chanted to seek the blessings of Lord Vishnu for your ancestors’ well-being.

4. Om Akaal Mrityu Namah: This mantra is dedicated to Lord Shiva and is believed to liberate your ancestors from the cycle of birth and death.

5. Om Tryambakam Yajamahe: The Mahamrityunjaya Mantra is another powerful mantra dedicated to Lord Shiva, seeking protection and blessings for your ancestors.

6. Om Shanti Shanti Shanti: This mantra is often chanted at the end of prayers to invoke peace and harmony for the living and the departed souls.

When chanting these mantras, it’s essential to do so with a pure heart and focused intention. You can chant these mantras while performing the rituals and offerings to your ancestors on Sarv Pitra Amavasya.

Conclusion :

Sarv Pitra Amavasya is a day of deep spiritual significance, providing an opportunity to honor and connect with one’s ancestors. By performing the prescribed rituals and remedies, individuals can seek blessings, alleviate karmic debts, and promote family unity. This ancient tradition reminds us of the enduring bond between the living and the departed, emphasizing the importance of gratitude and respect for our forefathers.

🙏जय श्री राम 🙏

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सर्व पितृ अमावस्या करे ये उपाय

सर्व पितृ अमावस्या 2023

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सर्व पितृ अमावस्या

श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार 14 अक्टूबर, शनिवार को यह अमावस्या है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, श्राद्ध पक्ष की अमावस्या पर कुछ विशेष उपाय करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष भी कम होता है। इसलिए इस दिन भी ये उपाय किए जा सकते हैं।

पीपल में पितरों का वास माना गया है ।सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और गाय के शुद्ध घी का दीपक लगाएं ।

सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर किसी ब्राह्मण को भोजन के लिए घर बुलाएं या भोजन सामग्री जिसमें आटा, फल, गुड़ आदि का दान करें ।

इस अमावस्या पर किसी पवित्र नदी में काले तिल डालकर तर्पण करें ।इससे भी पितृगण प्रसन्न होते हैं ।

सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर अपने पितरों को याद कर गाय को हरा चारा खिला दें ।इससे भी पितृ प्रसन्न व तृप्त हो जाते हैं ।

इस अमावस्या पर चावल के आटे से 5 पिडं बनाएं व इसे लाल कपड़े में लपेटकर नदी में प्रवाहित कर दें ।

अमावस्या पर गाय के गोबर से बने कंड़े को जलाकर उस पर घी-गुड़ की धूप दें और पितृ देवताभ्यो अर्पणमस्तु बोलें ।

इस अमावस्या पर कच्चा दूध, जौ, तिल व चावल मिलाकर नदी में प्रवाहित करें ।ये उपाय सूर्योदय के समय करें तो अच्छा रहेगा ।

सर्व पितृ अमावस्या

पितृ पक्ष का आखिरी दिन पितृ अमावस्या होती है। इस दिन कुल के सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। फिर चाहे उनकी मृत्यु तिथि पता न हो। तब भी आप पितृ अमावस्या पर उनका तर्पण कर सकते हैं।

पितृ पक्ष की अमावस्या को सूर्यास्त से पहले ये उपाय करना है। इस उपाय में एक स्टील के लोटे में, दूध, पानी, काले व सफेद तिल और जौ मिला लें। इसके साथ कोई भी सफेद मिठाई, एक नारियल, कुछ सिक्के और एक जनेऊ पीपल के पेड़ के नीचे जाकर सबसे पहले ये सारा सामान पेड़ की जड़ में चढ़ा दें। इस दौरान सर्व पितृ देवभ्यो नम: का जप करते रहें।

ये मंत्र बोलते हुए पीपल को जनेऊ भी चढ़ाएं। इस पूरी विधि के बाद मन में सात बार ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करें और भगवान विष्णु से कहें मेरे जो भी अतृप्त पितृ हों वो तृप्त हो जाए। इस उपाय को करने से पितृ तृप्त होते हैं पितृ दोष का प्रभाव खत्म होता है और उनका अशीर्वाद मिलने लगता है। हर तरह की आर्थिक और मानसिक समस्याएं दूर होती हैं।

🙏जय श्री राम 🙏

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Pitru Paksha 2023: Dos and don’ts to follow during 15 days of Shradh

Pitru Paksha 2023
Pitru Paksha 2023 details and rituals

Pitru Paksha 2023: A Compassionate Guide to Observing Shradh

Pitru Paksha, also known as Shradh or Mahalaya Paksha, is a sacred period in the Hindu calendar dedicated to paying homage to our ancestors. It is believed that the three generations of deceased ancestors live in an in-between realm called Pitrilok and during Pitru Paksha, they are freed by the god of death – Yamaraj or Yama, to visit their relatives and family members and accept gifts, food and water.

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Pitru Paksha, every year, is observed for fifteen days when people visit the river Ganges or banks of other rivers and offer food, water and gifts to their deceased ancestors through priests and Brahmins. It is considered an extremely auspicious time of the year. Auspicious rituals such as Shradh, Pind Daan and Tarpan are performed during this time of the year.

In 2023, these 15 days of reverence will take place from September 29 to October 14.

Here are a few dos and don’ts that we should keep in mind.. During this time, it is believed that the spirits of our departed loved ones visit the mortal realm, and it becomes our duty to offer our respect and prayers.

Here are the dos and don’ts of observing Pitru Paksha 2023 in a compassionate way.

Dos:

1. Perform Pinda Dana: One of the most significant rituals during Pitru Paksha is Pinda Dana. It involves offering rice balls mixed with sesame seeds and ghee to the departed souls. This act is believed to provide peace and salvation to the ancestors’ souls.

2. Cleanliness Matters: Keep your surroundings and yourself clean during this period. It is essential to maintain purity and respect for the rituals. Observing cleanliness is an act of devotion.

3. Offer Tarpan: Offering tarpan is another crucial ritual. It involves pouring water mixed with black sesame seeds, barley, and rice into a cupped hand to remember and honor your ancestors. It is typically done in a river or a sacred body of water.

4. Charity and Feeding the Needy: Performing acts of charity and feeding the less fortunate during Pitru Paksha is highly recommended. It is believed that these virtuous deeds benefit the souls of your ancestors.

5. Recite Mantras and Prayers: Chanting mantras and prayers from the Rigveda or other sacred texts can bring peace to your ancestors’ souls. Seek the guidance of a knowledgeable priest for the appropriate mantras.

Don’ts:

1. Avoid Non-Vegetarian Food: During Pitru Paksha, it is customary to abstain from non-vegetarian food, as it is considered inauspicious. Opt for vegetarian meals to maintain the sanctity of the period.

2. Refrain from Celebratory Events: It is best to avoid weddings, celebrations, and joyous occasions during these 15 days. Instead, focus on paying respects to your ancestors.

3. Limit New Ventures: It is not advisable to start new ventures or make significant life changes during Pitru Paksha. This period is dedicated to reflection and remembrance.

4. Respect Food Offerings: If you receive food offerings from others during this time, accept them with humility and gratitude. Do not waste any offerings, as they are made with a sacred intention.

5. Be Mindful of Your Behavior: Maintain a respectful and solemn demeanor during Pitru Paksha. Avoid unnecessary arguments, conflicts, and negative emotions.

Sacred Mantras should chant during the Pitra Paksha

During Pitru Paksha, reciting specific mantras can be a meaningful way to honor and offer prayers to your ancestors. One of the most commonly recited mantras during this period is the Mahalaya Tarpanam mantra. Here is the Mahalaya Tarpanam mantra in Sanskrit along with its English transliteration:

Mahalaya Tarpanam mantra

Sanskrit Mantra:

ये केचित्कर्मकृतं प्राहुर्येकेचिज्जानतामृताः।

पापे दीपे यदाकुर्वन्ति दीपं तेषां सुखं तमाः॥

Transliteration:

Ye kechit karmakritam prahuryekechij janatamritah.

Pape deepe yadakurwanti deepam tesham sukham tamah.

This mantra emphasizes the importance of performing righteous deeds and offering light (deepam) to those ancestors who have departed. It is believed that by reciting this mantra and offering tarpan (water oblation) while remembering your ancestors, you can help bring peace and salvation to their souls.

Pitra Gayatri Mantra

The Gayatri Pitra Mantra is a sacred mantra dedicated to honoring one’s ancestors. It’s recited during rituals and ceremonies like Pitru Paksha to seek blessings and peace for the souls of departed ancestors. Here is the Gayatri Pitra Mantra in Sanskrit along with its English transliteration:

Sanskrit Mantra:

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ।।

Transliteration:

Om Devatabhyah Pitrubhyashcha Mahayogibhyah Eva Cha.

Namah Swadhayai Swahayai Nityameva Namo Namah.

This mantra expresses deep respect and reverence for both the divine and ancestral energies. It acknowledges the importance of offering homage to the devatas, pitrus (ancestors), and great yogis while invoking the blessings of Swadha (the divine energy of offerings) and Swaha (the divine energy of sacrifice).

Chanting this mantra with sincerity during rituals, especially during Pitru Paksha, can be a meaningful way to connect with these spiritual energies and seek their blessings.

In Conclusion:

Pitru Paksha is a time of reflection, remembrance, and respect for our ancestors. By following these dos and don’ts, you can observe this sacred period with devotion and compassion. Remember that the essence of Pitru Paksha lies in honoring the departed souls and seeking their blessings for a harmonious life.

As you observe Pitru Paksha 2023, may your actions bring solace to your ancestors’ souls and pave the way for their eternal peace.

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Ganapati Atharvashirsha :: गणपती अथर्वशीर्ष

Ganapati Atharvashirsha English and Hindi translation

सुने गणपति अथर्वशीर्ष :- https://youtu.be/o3sg9wnxBNA?si=Que6fn12lksJbn8a

The Ganpati Atharvashirsha is a sacred Hindu scripture that praises Lord Ganesha, the elephant-headed deity known as the remover of obstacles. Here’s a brief overview of its history and importance:

History:

1. Origin: The Ganpati Atharvashirsha is part of the Atharvaveda, one of the four Vedas of ancient Indian scriptures. It is considered a late addition to the Vedic texts, likely composed around the 16th century.

2. Authorship:The authorship of the Atharvashirsha is traditionally attributed to the sage Atharva, though its actual author is not definitively known.

Importance:

1. Devotional Significance: The Ganpati Atharvashirsha is highly revered in Hinduism as a powerful mantra and hymn dedicated to Lord Ganesha. It is chanted by devotees to seek blessings, wisdom, and the removal of obstacles in life.

2. Obstacle Removal:Lord Ganesha is venerated as the deity who can eliminate impediments and challenges from one’s path. Chanting the Atharvashirsha is believed to invoke His blessings for overcoming difficulties.

3. Spiritual Insights:The scripture contains philosophical and spiritual insights about the nature of Ganesha. It describes Him as the supreme reality, the source of creation, and the embodiment of the ultimate truth (Brahman).

4. Versatility: The Ganpati Atharvashirsha is versatile and can be chanted as a standalone prayer or incorporated into various rituals and ceremonies, particularly during Ganesh Chaturthi, a prominent Hindu festival dedicated to Lord Ganesha.

5. Protection and Auspiciousness:Chanting or reciting this text is believed to provide protection and bring auspiciousness to the devotee’s life.

In summary, the Ganpati Atharvashirsha is a sacred text that holds immense significance in Hinduism, particularly in the worship of Lord Ganesha. It is cherished for its power to remove obstacles and bestow blessings upon those who recite it with devotion.

ganpati atharvashirsha गणपति अथर्वशीर्ष संस्कृत और हिन्दी और english में अनुवाद के साथ

Ganapati Atharvashirsha English and Hindi translation

ॐ नमस्ते गणपतये। 
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि। 
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। 
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। 
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। 
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। 
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥१॥

Transliteration:
oṃ namaste gaṇapataye।
tvameva pratyakṣaṃ tattvamasi। 
tvameva kevalaṃ kartāsi। 
tvameva kevalaṃ dhartāsi।
tvameva kevalaṃ hartāsi।
tvameva sarvaṃ khalvidaṃ brahmāsi। 
tvaṃ sākṣādātmāsi nityam॥1॥

Hindi Translation:
हे! गणेशा आप को प्रणाम। 
आप ही प्रत्यक्ष तत्त्व हो।
आप ही केवल कर्ता हो। 
आप ही केवल धर्ता हो।
आप ही केवल हर्ता (दुख हरण करनेवाले) हो। 
निश्चयपूर्वक आप ही इन सब रूपों में विराजमान ब्रह्म हो। 
आप साक्षात नित्य आत्मस्वरूप हो।

English Translation:
Aum, I offer a salutation to that one, to Ganapati. You are, verily, the prime principle. You are verily the unswerving (direct or straight) creator and the upholder. You are verily the unswerving destroyer. You are verily this assuredly absolute Brahman. You are verily the eternal self.

ऋतं वच्मि। 
सत्यं वच्मि॥२॥ 

Transliteration:
ṛtaṃ vacmi। 
satyaṃ vacmi॥2॥

Hindi Translation:
मैं ऋत (न्यायसंगत बात) कहता हूँ, 
सत्य कहता हूँ।

English Translation:
I speak of the cosmic law,
I speak of the absolute reality.

अव त्वं माम्। 
अव वक्तारम्। 
अव श्रोतारम्। 
अव दातारम्। 
अव धातारम्।
अवानूचानमव शिष्यम्।
अव पश्चात्तात्। 
अव पुरस्तात्। 
अवोत्तरात्तात्। 
अव दक्षिणात्तात्। 
अव चोर्ध्वात्तात्।
अवाधरात्तात्। सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात्॥३॥

Transliteration:
ava tvaṃ mām। ava vaktāram।
ava śrotāram। 
ava dātāram। 
ava dhātāram। 
avānūcānamava śiṣyam। 
ava paścāttāt।
ava purastāt। avottarāttāt। 
ava dakṣiṇāttāt। 
ava cordhvāttāt। 
avādharāttāt।
sarvato māṃ pāhi pāhi samantāt॥3॥

Hindi Translation:
आप मेरी रक्षा करो, आप वक्ता (बोलने वाले) की रक्षा करो, आप श्रोता (सुनने वाली) की रक्षा करो, आप दाता की रक्षा करो, आप धाता की रक्षा करो, आप आचार्य की रक्षा करो, शिष्य की रक्षा करो। आप आगे से रक्षा करो, पीछे से रक्षा करो, पूर्व से रक्षा करो, पश्चिम से रक्षा करो, उत्तर दिशा से रक्षा करो, दक्षिण से रक्षा करो। आप ऊपर से रक्षा करो, नीचे से रक्षा करो। आप सब ओर से मेरी रक्षा करो।

English Translation:
Protect me, protect the speaker, protect the listener, protect the giver, protect the sustainer, protect the teacher, protect the disciple. Protect from the back, protect from the front, protect from the north, protect from the south, protect from above, protect from below. Protect me from all the sides.

त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः। 
त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः। 
त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वितीयोऽसि। 
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। 
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि॥४॥

Transliteration:
tvaṃ vāṅmayastvaṃ cinmayaḥ।
tvamānandamayastvaṃ brahmamayaḥ। 
tvaṃ saccidānandā’dvitīyo’si।
tvaṃ pratyakṣaṃ brahmāsi।
tvaṃ jñānamayo vijñānamayo’si॥4॥

Hindi Translation:
आप वाङ्मय हो, आप चिन्मय हो, आप आनंदमय हो, आप ब्रह्ममय हो, आप सच्चिदानन्द और अद्वितीय (जिसके आलावा कोई दूसरा नहीं) हो। आप ज्ञानमय हो, विज्ञानमय हो। आप प्रत्यक्ष कर्ता हो आप ही ब्रह्म हो।

English Translation:
You are the very nature of the words. You are the nature of consciousness. You are the nature of bliss. You are the nature of the Brahman. You are none other than the Real existence-consciousness-bliss. You are the one without the second (the only one). You are the visible Brahman. You are the nature of spiritual knowledge (and) you are science.

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। 
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। 
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः।
त्वं चत्वारि वाक् पदानि॥५॥ 

Transliteration:
sarvaṃ jagadidaṃ tvatto jāyate ।
sarvaṃ jagadidaṃ tvattastiṣṭhati।
sarvaṃ jagadidaṃ tvayi layameṣyati। 
sarvaṃ jagadidaṃ tvayi pratyeti। 
tvaṃ bhūmirāpo’nalo’nilo nabhaḥ। 
tvaṃ catvāri vāk padāni॥5॥

Hindi Translation:
सारा जगत आप से उत्पन्न होता है, सारा जगत आप से सुरक्षित रहता है, सारा जगत आप में लीन रहता है, सारा जगत आप ही में प्रतीत होता है । आप ही भूमि, जल, आकाश और अग्नि हो। आप चार प्रकार की वाणी हो (परा, पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी)।

English Translation:
All this world is manifested from you. All this world is sustained by you. This entire world dissolves in you. This entire world reverts back to you. You are the earth, water, wind, fire, and space. You are the four types of speech (parā, paśyantī, madhyamā, vaikharī).

त्वं गुणत्रयातीतः। 
त्वं अवस्थात्रयातीतः।
त्वं देहत्रयातीतः। 
त्वं कालत्रयातीतः।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मकः। 
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम्। 
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम्॥६॥ 

Transliteration:
tvaṃ guṇatrayātītaḥ। 
tvaṃ avasthātrayātītaḥ। 
tvaṃ dehatrayātītaḥ। 
tvaṃ kālatrayātītaḥ।
tvaṃ mūlādhārasthito’si nityam।
tvaṃ śaktitrayātmakaḥ। 
tvāṃ yogino dhyāyanti nityam।
tvaṃ brahmā tvaṃ viṣṇustvaṃ rudrastvamindrastvamagnistvaṃ vāyustvaṃ sūryastvaṃ candramāstvaṃ Brahma bhūrbhuvassuvarom॥6॥

Hindi Translation:
तुम तीनों गुणों (सत्त्व, राज, तम) से परे हो। तुम तीनों अवस्थाओं (जागृत, स्वप्ना, सुषुप्ति) से परे हो। तुम तीनों देह (स्थूल, सूक्ष्म और कारण) से परे हो। तुम तीनों काल (भूत, वर्तमान, भविष्य) हो। तुम मूलाधार चक्र में स्थित हो। तीनों शक्तियों (संकल्प शक्ति, उत्साह शक्ति और ज्ञान शक्ति) में तुम ही हो। सभी योगी नित्य तुम्हारा ध्यान करते हैं। तुम ब्रह्मा, विष्णु, और रूद्र हो। तुम इंद्रा हो, तुम अग्नि हो, तुम वायु हो, तुम सूर्या हो, तुम्ही चंद्र हो। तुम ही ब्रह्म और तुम ही त्रिपाद भू, भुवः और स्वः हो।

English Translation:
You transcend three attributes (sattva, rajas and tamas). You transcend three states of the body (waking, dreaming and sleeping). You transcend the three bodies (gross, subtle and causal). You are beyond the three periods of time (Past, present and future) . You are the eternal one who abides as the foundation. You are the trinity of power (will power, power of action and power of knowledge). You are the one of whom the ascetics meditate upon. You are Brahma, you are Vishnu, you are Rudra, you are Indra, you are Fire, you are the Wind, you are the Sun, you are the Moon. You are effulgence as the earth, the mid-region, and space above.

गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम्। 
अनुस्वारः परतरः।
अर्धेन्दुलसितम्।
तारेण ऋद्धम् । 
एतत्तव मनुस्वरूपम्। 
गकारः पूर्वरूपम्। 
अकारो मध्यरूपम्।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्।
बिन्दुरुत्तररूपम्। 
नादः सन्धानम्।
संहिता संधिः।
सैषा गणेशविद्या। 
गणक ऋषिः।
निचृद्गायत्रीच्छन्दः।
गणपतिर्देवता। 
ॐ गं गणपतये नमः॥७॥

Transliteration:
gaṇādiṃ pūrvamuccārya varṇādīṃstadanantaram। 
anusvāraḥ parataraḥ। 
ardhendulasitam।
tāreṇa ṛddham। 
etattava manusvarūpam। 
gakāraḥ pūrvarūpam। 
akāro madhyamarūpam।
anusvāraścāntyarūpam।
binduruttararūpam।
nādaḥ sandhānam। 
saṁhitā sandhiḥ। 
saiṣā gaṇeśavidyā। 
gaṇaka ṛṣiḥ।
nicṛdgāyatrīcchandaḥ। gaṇapatirdevatā। 
oṃ gaṃ gaṇapataye namaḥ॥7॥

Hindi Translation:
‘गण’ के प्रथम शब्दांश (ग) का उच्चारण करने के बाद प्रथम वर्ण (अ) का उच्चारण करें, उसके बाद अनुस्वार (म्) का उच्चारण करें (जिससे ‘गम्’ बनता है), इसके बाद इसे अधचन्द्र से सुशोभित करें (गँ) और तार से इसे बाधाएँ (इस प्रकार “ॐ गँ” बनता है)। ग-कार प्रथम रूप है, अ-कार मध्य रूप है और अनुस्वार अनिम रूप है। बिंदु उत्तर (ऊपरी) रूप है । अंत में नाद का संधान (योग) होता है, ये सभी आपस में मिल जाते हैं (“ॐ गँ” ये रूप बनता है )। यह गणेश विद्या है, गणक इसके ऋषि हैं, निचृद-गायत्री छन्द है, गणपति देवता है, ॐ गँ गणपतये नमः।

English Translation:
Pronouncing the syllabus ग (ga) in the beginning and other syllables thereafter, the sibilant is marked with half-moon transcending, mature with stars. Thus is your form. The ग (ga) is the prior form, अ (a) is the later form, sibilant is the final form, the dot is the supreme form. The sound is the connecting link, the hymn is the connection. (this makes the “ॐ गँ” ) ‘Gakāra’ (ग्) is the first part. ‘Akāra’ (अ) is the middle part. And the Anusvāra (nasal sound) is the last part and the ‘bindu’ (dot) is the latter form of pronunciation. These all joined together as the sound of the mantra (ॐ गँ). This, verily, is the wisdom of Gaṇeśa. Gaṇaka is the seer, Gāyatrī is the metre, Gaṇapati is the deity. Aum, obeisance to Gaṇapatī as ‘gam’. My reverential salutations to Gaṇapati.

एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। 
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥८॥ 

Transliteration:
ekadantāya vidmahe vakratuṇḍāya dhīmahi।
tanno dantiḥ pracodayāt॥8॥

Hindi Translation:
हम एकदन्त को जानते हैं; वक्रतुण्ड का ध्यान करते हैं। वह दन्ती (हाथीदाँत वाला) हमें जागृत करे।

English Translation:
We know the single-tusked one; we meditate on the one with a curved trunk. May he awaken us (to the ultimate truth).

एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्॥ 
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैस्सुपूजितम्॥ 
भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। 
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्। 
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः॥९॥ 

Transliteration:
ekadantaṃ caturhastaṃ pāśamaṇkuśadhāriṇaṃ। radaṃ ca varadaṃ hastairbibhrāṇaṃ mūṣakadhvajaṃ॥ 
raktaṃ lambodaraṃ śurpakarṇaṃ raktavāsasaṃ। raktagandhānuliptaṇgaṃ raktapuṣpaiḥ supūjitaṃ। 
bhaktānukampinaṃ devaṃ jagatkāraṇamacyutaṃ॥
āvirbhūtaṃ ca sṛṣtyādau prakṛteḥ puruṣatparaṃ॥ 
evaṃ dhyāyati yo nityaṃ sa yogī yogināṃ varaḥ॥ 9॥

Hindi Translation:
भगवान गणेश एकदन्त चार भुजाओं वाले है जिसमे वह पाश, अंकुश, दन्त, वर मुद्रा रखते हैं। उनके ध्वज पर मूषक हैं। वे लाल रंग से तेजस्वी हैं, लम्बोदर हैं, हैं लाल वस्त्र धारी हैं। रक्त चन्दन का लेप लगा है। वे लाल पुष्प धारण करते हैं। भक्तो के लिये अनुकम्पा रखते हैं जगत में सभी जगह व्याप्त हैं। श्रृष्टि के रचियता हैं। वह प्रकृति और पुरुष से भी पहले आविर्भूत हुए हैं और अच्युत हैं। जो इनका ध्यान सच्चे हृदय से करते हैं वे महा योगी हैं।

English Translation:
(The visible form of Gaṇapatī is as follows) his face has a single tusk; he has four hands; (and) with two hands, he is holding noose (pāśa) and goad (aṅkuśa), with his third hand he is holding a tusk (rada), and with fourth hand he is showing the gesture of boon-giving (varada-mudrā); his flag is having the emblem of a rat (mūṣaka). His form is having a beautiful reddish glow, with a large belly (lambodara) and with large ears like fans (śūrpakarṇa); he is wearing red garments. His Form is anointed with red fragrant paste, and he is worshipped with red flowers. He is the one who is compassionate towards his devotees, he has descended for the cause of the universe. He manifested at the beginning of the universe. He is beyond the manifested nature of the manifested world. He who meditates on him in this way everyday is the best Yogi among the Yogis.

नमो व्रातपतये। 
नमो गणपतये। 
नमः प्रमथपतये। 
नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय विघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः॥१०॥ 

Transliteration:
namo vrātapataye। 
namo gaṇapataye। 
namaḥ pramathapataye। 
namaste’stu lambodarāyaikadantāya vighnanāśine śivasutāya varadamūrtaye namaḥ॥10॥

Hindi Translation:
व्रातपति, गणपति को प्रणाम, प्रथम पति को प्रणाम, एकदंत को प्रणाम, विध्नविनाशक, लम्बोदर, शिवतनय श्री वरद मूर्ती को प्रणाम।

English Translation:
Salutations to the Lord of all human beings, salutations to the Lord of all soldiers, salutations to the Lord of all sages, salutations to you, the one with a large belly and a single tusk, salutations to the son of Lord Śiva who is the remover of all obstacles and the bestower of boons.

गणनायकाय गणदैवताय गणाध्यक्षाय धीमहि।
गुणशरीराय गुणमण्डिताय गुणेशानाय धीमहि।
गुणातीताय गुणाधीशाय गुणप्रविष्टाय धीमहि।
एकदंताय वक्रतुण्डाय गौरीतनयाय धीमहि।

Transliteration:
gaṇanāyakāya gaṇadaivatāya gaṇādhyakṣāya dhīmahi। 
guṇaśarīrāya guṇamaṇḍitāya guṇeśānāya dhīmahi।
guṇātītāya guṇādhīśāya guṇapraviṣṭāya dhīmahi।
ekadaṃtāya vakratuṇḍāya gaurītanayāya dhīmahi॥

Hindi Translation:
हम श्री गणेश का ध्यान करते हैं, जो गणों के नायक, देवता, तथा अध्यक्ष हैं,
जो गुणों के विग्रह हैं, गुणों द्वारा मण्डित हैं, गुणों के अधीश हैं, और गुणों के परे हैं।

English Translation:
The leader, god, and chief of the gaṇas. The embodiment, adornment, and master of the guṇas, and one who is beyond the guṇas. The one with one tusk, and a curved trunk, the son of Gaurī (Pārvati), we meditate upon you.

त्वं गुणत्रयातीतः।
त्वमवस्थात्रयातीतः।
त्वं कालत्रयातीतः।
त्वं देहत्रयातीतः।

Transliteration:
tvaṃ guṇatrayātītaḥ।
tvamavasthātrayātītaḥ।
tvaṃ kālatrayātītaḥ।
tvaṃ dehatrayātītaḥ।

Hindi Translation:
आप तीनों गुणों के (सत्त्व, रजस् ,तमस्), तीनों अवस्थाओं के (जाग्रत, निद्रामय, स्वप्नमय), 
तीनों काल के (भूत, भविष्य, वर्तमान), तीनों शरीरों के (स्थूल, सूक्ष्म, कारण) परे हैं।

English translation:
You are beyond the three qualities (sattva, rajas, tamas), beyond the three conditions (awake, sleepful, dreaming), 
beyond the three states of time (past present and future), and beyond the three bodies (physical, astral and causal).

गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्॥

Transliteration:
gaṇānāṃ tvā gaṇapatiṃ havāmahe kaviṃ kavīnāmupamaśravastamam।
jyeṣṭharājaṃ brahmaṇāṃ brahmaṇaspata ā naḥ śṛṇvannūtibhiḥ sīda sādanam॥

Hindi Translation:
हे गणों के स्वामी हम आप का हवन करते है। क्रान्तदर्शियों (कवियों)
में श्रेष्ठ कवि और सभीसे तेजस्वी है। मंत्रों के राजा, मंत्रों मे अग्रीम है।
हम आपका आवाहन करते हैं। हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता
के रुप में आप इस सदन में आसीन हों।

English translation:
The leader of the Ganas, you are the wisdom of the wise and uppermost in glory. 
You are the foremost king of prayers (Brahmanaspati).
Please come to us and be present in the seat of this sacred altar (to charge our prayers with your wisdom), 
we offer our sacrificial oblations to you.

त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि॥ 

Transliteration:
tvaṃ pratyakṣaṃ brahmāsi। tvaṃ jñānamayo vijñānamayo’si॥

Hindi Translation:
आप संपूर्ण जागरुकता हो। आप सर्वोच्च ज्ञान और प्रज्ञता से भरे हुए हैं।

English translation:
You are the absolute awareness. You are full of supreme wisdom and knowledge.

इति श्री गणपति अथर्वशीर्ष समाप्तम

https://youtu.be/o3sg9wnxBNA?si=Que6fn12lksJbn8a

श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी 2023

Sri Krishna Janmashtami Special

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ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार

भारतवर्ष में रहने वाला जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है, वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। इसमें संशय नहीं है। वह दीर्घकाल तक वैकुण्ठलोक में आनन्द भोगता है। फिर उत्तम योनि में जन्म लेने पर उसे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति उत्पन्न हो जाती है-यह निश्चित है।

अग्निपुराण के अनुसार

इस तिथिको उपवास करने से मनुष्य सात जन्मों के किये हुए पापों से मुक्त हो जाता हैं | अतएव भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी को उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिये | यह भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला हैं।

भविष्यपुराण के अनुसार

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है।

स्कन्दपुराण के अनुसार

जो व्यक्ति कृष्ण जन्माष्टमी व्रत नहीं करता, वह जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है।

श्रीकृष्ण-जन्माष्टमीव्रत की कथा एवं विधि

06 सितम्बर 2023 बुधवार को जन्माष्टमी (स्मार्त) 07 सितम्बर 2023 गुरुवार को जन्माष्टमी (भागवत)

भविष्यपुराण उत्तरपर्व अध्याय – २४

राजा युधिष्ठिर ने कहा – अच्युत ! आप विस्तार से (अपने जन्म-दिन) जन्माष्टमी व्रत का विधान बतलाने की कृपा करें |

भगवान् श्रीकृष्ण बोले – राजन ! जब मथुरा में कंस मारा गया, उस समय माता देवकी मुझे अपनी गोद में लेकर रोने लगीं | पिता वसुदेवजी भी मुझे तथा बलदेवजी आलिंगन कर गद्गदवाणी से कहने लगे – ‘आज मेरा जन्म सफल हुआ, जो मैं अपने दोनों पुत्रों को कुशल से देख रहा हूँ | सौभाग्य से आज हम सभी एकत्र मिल रहे हैं |’ हमारे माता-पिता को अति हर्षित देखकर बहुत से लोग वहाँ एकत्र हुए और मुझसे कहने लगे – ‘भगवन ! आपने बहुत बड़ा काम किया, जो इस दुष्ट कंसको मारा | हम सभी इससे बहुत पीड़ित थे | आप कृपाकर यह बतलाये कि आप माता देवकी के गर्भ से कब आविर्भूत हुए थे ? हम सब उस दिन महोत्सव मनाया करेंगे | आपको बार-बार नमस्कार है, हम सब आपकी शरण में हैं | आप हम पर प्रसन्न होइये | उस समय पिता वसुदेवजी ने भी मुझसे कहा था कि अपना जन्मदिन इन्हें बता दो |’ तब मैंने मथुरानिवासी जनों को जन्माष्टमी व्रत का रहस्य बतलाया और कहा – ‘पुरवासियों ! आपलोग मेरे जन्म दिन को विश्व में जन्माष्टमी के नाम से प्रसारित करें | प्रत्येक धार्मिक व्यक्ति को जन्माष्टमी का व्रत अवश्य करना चाहिये | जिस समय सिंह राशि पर सूर्य और वृषराशिपर चन्द्रमा था, उस भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में मेरा जन्म हुआ | वसुदेवजी के द्वारा माता देवकी के गर्भ से मैंने जन्म लिया | यह दिन संसार में जन्माष्टमी नाम से विख्यात होगा | प्रथम यह व्रत मथुरा में प्रसिद्ध हुआ और बाद में सभी लोकों में इसकी प्रसिद्धी हो गयी | इस व्रत के करने से संसार में शान्ति होगी, सुख प्राप्त होगा और प्राणिवर्ग रोगरहित होगा |’

महाराज युधिष्ठिर ने कहा – भगवन ! अब आप इस व्रत का विधान बतलाये, जिसके करने से आप प्रसन्न होते हैं |

भगवान श्रीकृष्ण बोले – महाराज ! इस एक ही व्रत के कर लेने से सात जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं | व्रत के पहले दिन दंतधावन आदि करके व्रत का नियम ग्रहण करें | व्रत के दिन मध्यान्ह में स्नान कर माता भगवती देवकी का एक सूतिका गृह बनाये | उसे पद्मरागमणि और वनमाला आदिसे सुशोभित करें | गोकुल की भांति गोप, गोपी, घंटा, मृदंग, शंख और मांगल्य-कलश आदिसे समन्वित तथा अलंकृत सुतिका-गृह के द्वारपर रक्षा के लिए खणग, कृष्ण छाग, मुशल आदि रखे | दीवालों पर स्वस्तिक आदि मांगलिक चिन्ह बना दें | षष्ठीदेवी की भी नैवेद्य आदि के साथ स्थापना करें | इस प्रकार यथाशक्ति उस सूतिकागृह को विभूषितकर बीच में पर्यंक के ऊपर मुझसहित अर्धसुप्तावस्थावाली, तपस्विनी माता देवकी की प्रतिमा स्थापित करें | प्रतिमाएँ आठ प्रकार की होती हैं –स्वर्ण, चाँदी, ताम्र, पीतल, मृत्तिका, काष्ठ की मणिमयी तथा चित्रमयी | इनमे से किसी भी वस्तुकी सर्वलक्षणसम्पन्न प्रतिमा बनाकर स्थापित करें | माता देवकी का स्तनपान करती हुई बालस्वरूप मेरी प्रतिमा उनके समीप पलंग के ऊपर स्थापित करें | एक कन्या के साथ माता यशोदा की प्रतिमा भी वहां स्थापित की जाय | सूतिका-मंडप के ऊपर की भित्त्तियों में देवता, ग्रह, नाग तथा विद्याधर आदि की मूर्तियाँ हाथोसे पुष्प-वर्षा करते हुए बनाये | वसुदेवजी को सूतिकागृह के बाहर खणग और ढाल धारण किये चित्रित करना चाहिये | वसुदेवजी महर्षि कश्यप के अवतार हैं और देवकी माता अदितिकी | बलदेवजी शेषनाग के अवतार हैं, नन्दबाबा दक्षप्रजापति के, यशोदा दिति की और गर्गमुनि ब्रह्माजी के अवतार हैं | कंस कालनेमिका अवतार है | कंस के पहरेदारों को सूतिकागृह के आस-पास निद्रावस्था में चित्रित करना चाहिये | गौ, हाथी आदि तथा नाचती-गाती हुई अप्सराओं और गन्धर्वो की प्रतिमा भी बनाये | एक ओर कालिया नाग को यमुना के ह्रदय में स्थापित करें |

इसप्रकार अत्यंत रमणीय नवसुतिका-गृह में देवी देवकी की स्थापनकर भक्ति से गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, नारियल, दाडिम, ककड़ी, बीजपुर, सुपारी, नारंगी तथा पनस आदि जो फल उस देशमें उससमय प्राप्त हों, उन सबसे पूजनकर माता देवकी की इसप्रकार प्रार्थना करे –

गायभ्दि: किन्नराध्यै: सततपरिवृता वेणुवीणानीनादै भृंगारादर्शकुम्भप्रमरकृतकरै: सेव्यमाना मुनीन्द्रै: |

पर्यन्गे स्वास्तृते या मुदित्ततरमना: पुत्रिणी सम्यगास्ते सा देवी देवमाता जयति सुवदना देवकी कान्तरूपा ||

जिनके चारों ओर किन्नर आदि अपने हाथों में वेणु तथा वीणा-वाद्यों के द्वारा स्तुति-गान कर रहे हैं और जो अभिषेक-पात्र, आदर्श, मंगलमय कलश तथा चँवर हाथों में लिए श्रेष्ठ मुनिगणोंद्वारा सेवित हैं तथा जो कृष्ण-जननी भलीभांति बिछे हुए पलंगपर विराजमान हैं, उन कमनीय स्वरुपवाली सुवदना देवमाता अदिति-स्वरूपा देवी देवकी की जय हो |

उससमय यह ध्यान करें कि कमलासना लक्ष्मी देवकी के चरण दबा रही हो | उन देवी लक्ष्मी की – ‘नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम: |’ इस मन्त्र से पूजा करे | इसके बाद ‘ॐ देवक्यै नम:, ॐ वासुदेवाय नम:, ॐ बलभद्राय नम:, ॐ श्रीकृष्णाय नम:, ॐ सुभद्रायै नम:, ॐ नन्दाय नम: तथा ॐ यशोदायै नम:’ – इन नाम-मन्त्रों से सबका अलग-अलग पूजन करें |कुछ लोग चन्द्रमा के उदय हो जानेपर चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान कर हरि का ध्यान करते हैं, उन्हें निम्नलिखित मन्त्रों से हरि का ध्यान करना चाहिये –

अनघं वामनं शौरि वैकुण्ठ पुरुषोत्तमम |

वासुदेवं हृषीकेशं माधवं मधुसूदनम ||

वाराहं पुण्डरीकाक्षं नृसिंहं ब्राह्मणप्रियम |

दामोदरं पद्यनाभं केशवं गरुड़ध्वजम |

गोविन्दमच्युतं कृष्णमनन्तमपराजितम |

अघोक्षजं जगद्विजं सर्गस्थित्यन्तकारणम |

अनादिनिधनं विष्णुं त्रैलोक्येश त्रिविक्रमम |

नारायण चतुर्बाहुं शंखचक्रगदाधरम |

पीताम्बरधरं नित्यं वनमालाविभूषितम |

श्रीवत्सांग जगत्सेतुं श्रीधरं श्रीपति हरिम || (उत्तरपर्व ५५/४६ – ५०)

इन मन्त्रों से भगवान् श्रीहरि का ध्यान करके ‘योगेश्वराय योगसम्भवाय योगपतये गोविन्दाय नमो नम:’ – इस मन्त्र से प्रतिमा को स्नान कराना चाहिये | अनन्तर यज्ञेश्वराय यज्ञसम्भवाय यज्ञपतये गोविन्दाय नमो नम:’ – इस मंत्रसे अनुलोपन, अर्घ्य, धूप, दीप आदि अर्पण करें | तदनंतर ‘विश्वाय विश्वेश्वराय विश्वसम्भवाय विश्वपतये गोविन्दाय नमो नम: |’ इस मन्त्र से नैवेद्य निवेदित करें | दीप अर्पण करने का मन्त्र इसप्रकार हैं – धम्रेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम: |’

इसप्रकार वेदी के ऊपर रोहिणी-सहित चन्द्रमा, वसुदेव, देवकी, नन्द, यशोदा और बलदेवजी का पूजन करें , इससे सभी पापों से मुक्ति हो जाती हैं | चंद्रोदय के समय इस मन्त्र से चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान करें

क्षीरोदार्नवसम्भूत अत्रिनेत्रसमुद्भव |

गृहनार्घ्य शशाकेंदों रोहिण्या सहितो मम || (उत्तरपर्व ५५/५४)

आधी रात को गुड और घी से वसोर्धारा की आहुति देकर षष्ठीदेवी की पूजा करे | उसी क्षण नामकरण आदि संस्कार भी करने चाहिये| नवमी के दिन प्रात:काल मेरे ही समान भगवती का भी उत्सव करना चाहिये | इसके अनन्तर ब्राह्मणों को भोजन कराकर ‘कृष्णो में प्रीयताम’ कहकर यथाशक्ति दक्षिणा देनी चाहिये |

धर्मनंदन ! इसप्रकार जो मेरा भक्त पुरुष अथवा नारी देवी देवकी के इस महोत्सव को प्रतिवर्ष करता हैं, वह पुत्र, सन्तान, आरोग्य, धन-धान्य, सदगृह, दीर्घ आयुष्य और राज्य तथा सभी मनोरथों को प्राप्त करता हैं | जिस देशमें यह उत्सव किया जाता है, वहाँ जन्म-मरण, आवागमन की व्याधि, अवृष्टि तथा ईति-भीती आदि का कभी भय नहीं रहता | मेघ समयपर वर्षा करते हैं | पांडूपुत्र ! जिस घर में यह देवकी-व्रत किया जाता हैं, वहाँ अकालमृत्यु नहीं होती और न गर्भपात होता हैं तथा वैधव्य, दौर्भाग्य एवं कलह नहीं होता | जो एक बार भी इस व्रत को करता हैं, वह विष्णुलोक को प्राप्त होता है | इस व्रत के करनेवाले संसार के सभी सुखों को भोगकर अंत में विष्णुलोक में निवास करते हैं |

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