Mantra, Aarti and Katha collection

This is a collection of all important Mantras, Aarti and Katha which is mentioned in various Purans, Shastra and ancient shastras.

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शरद पूर्णिमा की रात दिलाये आत्मशांति, स्वास्थ्यलाभ

शरद पूनम की रात दिलाये आत्मशांति, स्वास्थ्यलाभ

16 अक्टूबर 2024 बुधवार को शरद पूर्णिमा है।

आश्विन पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ बोलते हैं । इस दिन रास-उत्सव और कोजागर व्रत किया जाता है । गोपियों को शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने बंसी बजाकर अपने पास बुलाया और ईश्वरीय अमृत का पान कराया था । अतः शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्त्व है । इस रात को चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है ।*

शरद पूनम की रात को क्या करें, क्या न करें ?

दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं । इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें । नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें ।

अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं । जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें ।’ फिर वह खीर खा लेना ।

इस रात सुई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है ।

शरद पूनम दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान का दिन है । अपने आश्रमों में निःशुल्क औषधि मिलती है, वह चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर में मिलाकर खा लेना और रात को सोना नहीं । दमे का दम निकल जायेगा ।

चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है । शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है ।

अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है । जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है ।

खीर को बनायें अमृतमय प्रसाद खीर को रसराज कहते हैं । सीताजी को अशोक वाटिका में रखा गया था । रावण के घर का क्या खायेंगी सीताजी ! तो इन्द्रदेव उन्हें खीर भेजते थे ।

खीर बनाते समय घर में चाँदी का गिलास आदि जो बर्तन हो, आजकल जो मेटल (धातु) का बनाकर चाँदी के नाम से देते हैं वह नहीं, असली चाँदी के बर्तन अथवा असली सोना धो-धा के खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे । लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाओ तो लौह तत्त्व भी उसमें आ जायेगा । इलायची, खजूर या छुहारा डाल सकते हो लेकिन बादाम, काजू, पिस्ता, चारोली ये रात को पचने में भारी पड़ेंगे । रात्रि 09 बजे महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर 12 बजे के आसपास भगवान को भोग लगा के प्रसादरूप में खा लेनी चाहिए । लेकिन देर रात को खाते हैं इसलिए थोड़ी कम खाना और खाने से पहले एकाध चम्मच मेरे हवाले भी कर देना । मुँह अपना खोलना और भाव करना : ‘लो महाराज ! आप भी लगाओ भोग ।’ और थोड़ी बच जाय तो फ्रिज में रख देना । सुबह गर्म करके खा सकते हो ।

(खीर दूध, चावल, मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी – इन पंचश्वेतों से युक्त होती है, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती ।)*

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दीपावली लक्ष्मी पूजन विधि हिंदी में एवं आसान शब्दों में

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दिवाली पूजन विधि

दीपावली के पर्व पर सभी भक्तजन माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए अनेक प्रकार के जतन करते हैं । कुछ लोग इस दिन विशिष्ट साधनाएँ करते हैं , लेकिन सामान्य पूजन सभी करते हैं । इस दिन सायंकाल में शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी की विविध उपचारों से पूजा -अर्चना की जाती है । एक विशेष समस्या इस पूजा -अर्चना में प्रायः देखी जाती है कि महालक्ष्मी पूजन में प्रयुक्त मन्त्र संस्कृत भाषा में लिखी होने के कारण थोड़े क्लिष्ट होते हैं और इसी कारण आमजन इनका प्रयोग नहीं कर पाते हैं । पाठकगणों की इस समस्या का अनुभव करते हुए हिन्दी मन्त्रों से महालक्ष्मी का पूजन -अर्चना किया जा रहा है । हालॉंकि संस्कृत मन्त्रों का अपना महत्त्व है , लेकिन माँ तो भाव को ही प्रधानता देती है । यदि आप अपनी भाषा में अपने भाव माँ के समक्ष अच्छे से व्यक्त कर सकते हैं , तो वही भाषा आपके लिए सर्वश्रेष्ठ है । आइए , इस दीपावली पर हम अपनी भाषा में अपने भाव व्यक्त करके माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने का प्रयास करते है

पूजन हेतु सामग्री

रोली , मौली , लौंग , पान , सुपारी , धूप , कर्पूर , अगरबत्ती , अक्षत (साबुत चावल ), गुड़ , धनिया , ऋतुफल , जौ , गेहूँ , टूब , पुष्प , पुष्पमाला , चन्दन , सिन्दूर , दीपक , रूई , प्रसाद , नारियल , सर्वोषधि , पंचरत्न , यज्ञोपवीत , पंचामृत , शुद्ध जल , खील , मजीठ , सफेद वस्त्र , लाल वस्त्र , फुलेल , लक्ष्मी जीव एवं गणेश जी का चित्र या पाना , चौकी (बाजौट ), कलश , घी , कमलपुष्प , इलायची , माचिस , दक्षिणा हेतु नकदी , चॉंदी के सिक्के , बहीखाता , कलम तथा दवात । आदि ।

पूजा विधान एवं नियम

दीपावली के दिन सायंकाल पूजन करने से पूर्व शुद्ध जल से स्नान करके स्वच्छ एवं सुन्दर वस्त्र धारण कर सकुटुम्ब पूजन करने के लिए तैयार हों । लक्ष्मी जी के पूजन हेतु जो स्थान आपने निश्चित किया है , उसको स्वच्छ जल से धोकर उस पर बैठने हेतु आसन लगाएँ । आपको पूजन करते समय यह अवश्य ही ध्यान रखना है कि आपका मुँह पूर्व दिशा की ओर हो अर्थात् लक्ष्मी जी का चित्र अथवा पाना पूर्व दिशा की दीवार पर लगाना चाहिए । यदि पूर्व दिशा की ओर जगह नही बन पा रही हो , तो आप पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पूजन कर सकते हैं ।

लक्ष्मी पूजन हेतु उपर्युक्त साम्रगी पहले ही एक स्थान पर एकत्र करके एक थाल में तैयार कर लेनी चाहिए । पाटा (चौकी ) पर आसन बिछाकर उस पर श्री गणेश जी एवं लक्ष्मी जी का चित्र स्थापित कर दें । उसके बायीं ओर दूसरे पाटे पर आधे में सफेद वस्त्र एवं आधे में लाल वस्त्र बिछाकर सफेद वस्त्र पर चावल की नौ ढेरी नवग्रह की एवं गेहूँ की सोलह ढेरी षोडशमातृका की बना लें । एक मिट्टी के कलश अथवा तॉंबे के कलश पर स्वस्तिक बनाकर उसके गले में मौली बॉंधकर उसके नीचे गेहूँ अथवा चावल डालकर रखें । उसके ऊपर नारियल पर मौली बॉंधकर रख दें । पूजन प्रारम्भ करने के लिए घी का एक दीपक बनाकर तैयार करके और उसे गणेश जी एवं लक्ष्मी जी के चित्र के समान थोड़े गेहूँ डालकर उस पर रखकर प्रज्वलित कर दें । तत्पश्चात् दीपक पर रोली , चावल , पुष्प चढ़ाएँ एवं निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करे।

‘ हे दीपक ! तुम देव हो , कर्म साक्षी महाराज ।

जब तक पूजन पूर्ण हो , रहो हमारे साथ॥ ’

दीपक पूजन के उपरान्त एक जलपात्र में पूजा के निमित्त जल भरकर अपने सामने रखकर उसके नीचे अक्षत , पुष्प डालकर गंगा , यमुना आदि नदियों का निम्नलिखित मन्त्र से आवाहन करे।

गंगा यमुना , गोदावरी नदियन की सिरताज ।

सिंधु , नर्मदा , कावेरी , सरस्वती सब साथ ॥

लक्ष्मी पूजन लक्ष्य है , आज हमारे द्वार ।

सब मिल हम आवाहन करें , आओ बारम्बार ॥

तत्पश्चात् जलपात्र से बायें हाथ में थोड़ासा जल लेकर दाहिने हाथ से अपने शरीर पर छीटें देते हुए बोले ।

वरुण विष्णु सबसे बड़े , देवन में सिरताज ।

बाहर -भीतर देह मम , करो शुद्ध महाराज ॥

फिर तीन बार आचमन करें और उच्चारण करे ।

श्रीगोविन्द को नमस्कार ।

श्री माधव को नमस्कार ।

श्री केशव को नमस्कार ॥

अब दाहिने हाथ में अक्षत , पुष्प , चन्दन , जल तथा दक्षिणा लेकर निम्नलिखित संकल्प बोलें ।

‘ श्रीगणेश जी को नमस्कार । श्री विष्णु जी को नमस्कार । मैं …..( अपने नाम का उच्चारण करें ) जाति …..( आपनी जाति का उच्चारण करें ) गोत्र …..( अपने गोत्र का उच्चारण करें ) आज ब्रह्मा की आयु के द्वितीय परार्द्ध में , श्री श्वेतवाराह कल्प में , वैवस्वत मन्वन्तर में , २८वें कलियुग के प्रथम चरण में , बौद्धावतार में , पृथ्वी लोक के जम्बू द्वीप में , भरत खण्ड नामक भारतवर्ष के …..( अपने क्षेत्र का नाम लें )….. नगर में ( अपने नगर का नाम लें )….. स्थान में ( अपने निवास स्थान का नाम लें ) संवत् २०६७ , कार्तिक मास , कृष्ण पक्ष , अमावस्या तिथि , शुक्रवार को सभी कर्मों की शुद्धि के लिए वेद , स्मृति , पुराणों में कहे गए फलों की प्राप्ति के लिए , धन – धान्य , ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए , अनिष्ट के निवारा तथा अभीष्ट की प्राप्ति के लिए परिवार सहित महालक्ष्मी पूजन निमित्त तथा माँ लक्ष्मी की विशेष अनुकम्पा हेतु गणेश पूजनादि का संकल्प कर रहा हूँ । ’

अब ऐसा कहते हुए गणेश जी की मूर्ति पर अथवा थाल में स्वस्तिक बनाकर सुपारी पर मोली लगाकर रखें ।

उसके उपरान्त गणेश जी का आवाहन निम्नलिखित मन्त्र से करें ।

सिद्धि सदन गज वदन वर , प्रथम पूज्य गणराज ।

प्रथम वन्दना आपको , सकल सुधारो काज ॥

जय गणपति गिरिजा सुवन रिद्धि -सिद्धि दातार ।

कष्ट हरो मंगल करो , नमस्कार सत बार ॥

रिद्धि -सिद्धि के साथ में , राजमान गणराज ।

यहॉं पधारो मूर्ति में , आओ आप बिराज ॥

शोभित षोडशमातृका , आओ यहॉं पधार ।

गिरिजा सुत के साथ में , करके कृपा अपार ॥

सूर्य आदि ग्रह भी , करो आगमन आज ।

लक्ष्मी पूजा पूर्ण हो , सुखी हो समाज ॥

आवाहन के पश्चात् हाथ में अक्षत लेकर सुपारी रूपी गणेश जी पर छोड़ते हुए श्रीगणेश जी को आसन दें ।

इसके उपरान्त गणेश जी का पूजन निम्नलिखित प्रकार से करें । तीन बार जल के छीटें देकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करे ।

पाद्य अर्घ्य वा आचमन , का जल यह तैयार ।

उसको भी प्रेमये , कर लो तुम स्वीकार ॥

पाद्य स्वीकार करें । अर्घ्य स्वीकार करें । आचमन हेतु जल स्वीकार करें ।

यह बोलकर जल के छीटें दें ।

स्नान हेतु जल स्वीकार करें । जल के छीटें दें ।

वस्त्र स्वीकार करें । बोलकर मोली चढ़ाएँ ।

गन्ध स्वीकार करें । रोली चढ़ाएँ ।

अक्षत स्वीकार करें । चावल चढ़ाएँ ।

पुष्प स्वीकार करें । पुष्प चढ़ाएँ ।

धूप स्वीकार करें । धूप करें ।

दीपक के दर्शन करें । दीपक दिखाएँ ।

मिष्टान्न स्वीकार करें । प्रसाद चढ़ाएँ ।

आचमन हेतु जल स्वीकार करें । कहकर जल के छीटें दें ।

ऋतुफल स्वीकार करें । ऋतुफल चढ़ाएँ ।

मुखशुद्धि के लिए पान स्वीकार करें । पान , सुपारी चढ़ाएँ ।

दक्षिणा स्वीकार करें । कहते हुए नकदी चढ़ाएँ ।

नमस्कार स्वीकार करें । नमस्कार करें ।

अब करबद्ध होकर गणेशजी को निम्नलिखित मन्त्र से नमस्कार करे ।

विघ्न हरण मंगल करण , गौरी सुत गणराज ।

मैं लियो आसरो आपको , पूरण करजो काज ॥

षोडशमातृका पूजन

गणेश पूजन के उपरान्त षोडशमातृका का पूजन करना चाहिए । हाथ में चावल लेकर दाहिने हाथ की ओर स्थापित लाल वस्त्र पर आरूढ़ षोडशामातृका पर चावल छोड़ते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें ।

बेग पधारो गेह मम , सोलह माता आप ।

वंश बढ़े , पीड़ा कटे , मिटे शोक संताप ॥

इसके पश्चात् जिस प्रकार से गणेश जी का पूजन किया था , उसी प्रकार से षोडशमातृका का पूजन करें । अन्त में निम्नलिखित मन्त्र के साथ षोडशमातृका को नमस्कार करें ।

सोलह माता आपको , नमस्कार सत बार ।

पुष्टि तुष्टि मंगल करो , भरो अखण्ड भण्डार ॥

नवग्रह पूजन

बायें हाथ में चावल लेकर दाहिने हाथ से सफेद वस्त्र पर चावल छोड़े एवं निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें ।

रवि शशि मंगल बुध , गुरु शुक्र शनि महाराज ।

राहु केतु नवग्रह नमो , सकल सँवारो काज ॥

हे नवग्रह तुमसे करूँ , विनती बारम्बार ।

मैं तो सेवक आपको , रखो कृपा अपार ॥

इसके पश्चात् जिस प्रकार गणेश जी का पूजन किया था , उसी प्रकार नवग्रह का भी पूजन करें ।

कलश पूजन

कलश पूजन हेतु बायें हाथ में अक्षत लेकर दाहिने हाथ से मिट्टी के कलश (जिसमें शुद्ध जल भरा हो ) पर अक्षत चढ़ाते हुए वरुण देवता का निम्नलिखित मन्त्र से आवाहन करें ।

जल जीवन हे जगत का , वरुण देव का वास ।

सकल देव निस दिन करें , कलश महि निवास ॥

गंगादिक नदियॉं बसें , सागर स्वल्प निवास ।

पूजा हेतु पधारिए पाप शाप हो नाश ॥

इसके पश्चात् जिस प्रकार गणेश जी का पूजन किया गया था , उसी प्रकार कलश का पूजन करें ।

रक्षा विधान विधि

बायें में मौली , रोली , अक्षत , पुष्प तथा दक्षिणा लेकर दाहिने हाथ से बन्द कर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण कर अक्षत को चारों दिशाओं में थोड़ा -थोड़ा छोड़ें ।

पूरब में श्रीकृष्ण जी , दक्षिण में वाराह । पश्चिम केशव दुःख हरे , उत्तर श्रीधर शाह ॥

ऊपर गिरधर कृष्ण जी , शेषनाग पाताल ।

दसों दिशा रक्षा करें , मेरी नित गोपाल ॥

इसके पश्चात् उपर्युक्त मौली , रोली , चावल , पुष्प आदि गणेश जी को चढ़ाएँ और मौली उठाकर सभी देवताओं गणेश जी , लक्ष्मी जी आदि को चढ़ाएँ । इसके पश्चात् परिजनों के बॉंधते हुए तिलक करें ।

अब लक्ष्मी पूजन करने के लिए पूर्व स्थापित लक्ष्मी जी की तस्वीर के पास चॉंदी की कटोरी में अथवा अन्य बर्तन में चॉंदी के सिक्के अथवा प्रचलित रुपए के सिक्कों को कच्चे दूध एवं पंचामृत से स्नान कराएँ एवं फिर पुष्प एवं चावल दाहिने हाथ में लेकर श्री महालक्ष्मी का आवाहन निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए करें ।

जयजगजननी , जय , रमा , विष्णुप्रिया जगदम्ब ।

बेग पधारो गेह मम , करो न मातु विलम्ब ॥

पाट विराजो गेह मम , भरो अखण्ड भंडार ।

श्रद्धा सहित पूजन करूँ , करो मातु स्वीकार॥

मातु लक्ष्मी करो कृपा , करो हृदय में वास ।

मनोकामना सिसद्ध करो , पूरण हो मेरी आस ॥

यही मोरि अरदास , हाथ जोड़ विनती करूँ ।

सब विधि करों सुवास , जय जननी जगदम्बा ॥

सब देवन के देव जो , हे विष्णु महाराज ।

हो उनकी अर्धांगिनी , हे महालक्ष्मी आप ॥

मैं गरीब अरजी धरूँ ; चरण शरण में माय ।

जो जन तुझको पूजता , सकल मनोरथ पाय ॥

आदि शक्ति मातेश्वरी , जय कमले जगदम्ब ।

यहॉं पधारो मूर्ति में , कृपा करो अविलम्ब ॥

इस प्रकार दोनों हाथों से पुष्प एवं चावल लक्ष्मी जी के पास छोड़े और तीन बार जल के छीटें दे और उच्चारण करें ।

पाद्य स्वीकार करें , अर्घ्य स्वीकार करें , आचमन हेतु जल स्वीकार करें ।

नमस्कार करते हुए मन्त्र कहें :

पाद्य अर्घ्य व आचमन का जल है यह तैयार ।

उसको भी माँ प्रेम से , कर लो तुम स्वीकार ॥

इसके पश्चात् ‘दुग्ध स्नान स्वीकार करें ’ कहते हुए दूध के छींटें दें तथा पंचामृत से स्नान करवाते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें ।

दूध , दही घी , मधु तथा शक्कर से कर स्नान ।

निर्मल जल से कीजियो , पीछे शुद्ध स्नान ॥

वस्त्र स्वीकार करें ऐसा कहते हुए मौली चढ़ाएँ तथा निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करें ।

कुंकुम केसर का तिलक , और माँग सिन्दूर ।

लेकर सब सुख दीजियो , कर दो माँ दुःख दूर ॥

नयन सुभग कज्जल सुभग , लो नेत्रों में डाल ।

करो चूडियों से जननी , हाथों का श़ृंगार ॥

अक्षता स्वीकार करें , कहते हुए चावल चढ़ाएँ ।

‘ पुष्प स्वीकार करें ’ कहते हुए पुष्प अर्पित करें ।

धूप स्वीकार करें , कहते हुए धूप करें तथा निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करें ।

गन्ध अक्षत के बाद में , यह फूलों का हार ।

धूप सुगन्धित शुद्ध घी का , दीपक है तैयार ॥

‘ दीप ज्योति का दर्शन करें ’, कहते हुए दीपक दिखाएँ ।

‘ मिष्टान्न एवं ऋतुफल स्वीकार करें ’, कहते हुए प्रसाद चढ़ाएँ तथा निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करें ।

भोग लगाता भक्ति से , जीमो रुचि से धाप ।

करो चुल्लू ऋतफल सुभग , आरोगो अब आप ॥

‘ आचमन हेतु जल स्वीकार करें ’, कहते हुए पान सुपारी चढ़ाएँ तथा निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करें ।

ऐलापूगी लवंगयुत , माँ खालो ताम्बूल ।

क्षमा करो मुझसे हुई , जो पूजा में भूल ॥

‘ दक्षिणा स्वीकार करें ’, कहते हुए नकदी चढ़ाएँ और निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करें ।

क्या दे सकता दक्षिणा , आती मुझको लाज ।

किन्तु जान पूजांग यह , तुच्छ भेंट है आज ॥

नमस्कार करें और निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें ।

विष्णुप्रिया सागर सुता , जनजीवन आधार ।

गेह वास मेरे करो , नमस्कार शतवार ॥

इसके पश्चात् दीपमालिका पूजन करें

जो व्यक्ति सायंकाल (प्रदोषकाल ) में लक्ष्मी पूजन करते हैं , वे लक्ष्मी पूजन करने के पश्चात् तथा जो व्यक्ति रात्रि में पूजन करते हैं , उन्हें सायंप्रदोषकाल में दीपकों का पूजन अपनी पारिवारिक परम्परा के अनुसार करना चाहिए । एक बड़े थाल के बीच में बड़ा दीपक तथा अन्य छोटे दीपकों को शुद्ध जल से स्नान करवाकर रखें । उसमें शुद्ध नई रुई की बत्ती बनाकर सरसों के तेल या तिल्ली के तेल से प्रज्वलित करें और दाहिने हाथ में अक्षत एवं पुष्प अर्पित करते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें ।

हे दीपक ! तुम देव हो , कर्मसाक्षी महाराज ।

जब तक पूजन पूर्ण हो , रहो हमारे साथ ॥

शुभ करो कल्याण करो आरोग्य सुख प्रदान करो ।

बुद्धि मेरी तीव्र करो , दीप ज्योति नमस्कार हो ॥

आत्म तत्त्व का ज्ञान दो , बोधिसत्व प्रकाश दो ।

दीपावली समर्पित तुम्हें , मातेश्वरी स्वीकार करो ॥

इस मन्त्र का उच्चारण कर दीपकों को नमस्कार करें एवं जल के छीटें दें । इसके पश्चात् लक्ष्मी जी की आरती करने के लिए दिपकों में से बड़ा दीपक लक्ष्मी जी के सामने रखें तथा आरती करें

लक्ष्मी जी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता , मैया जय लक्ष्मी माता ॥

तुमको निसदिन सेवत , हर विष्णु धाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥

उमा , रमा , ब्रह्माणी , तुम ही जग माता ॥

सूर्य , चन्द्रमा ध्यावत , नारद ऋषि गाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रूप निरंजनी , सुख -संम्पत्ति दाता ॥

जो कोई तुमको ध्यावत ऋद्धि सिद्धि धन पाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल निवासिनी , तू ही शुभ दाता ॥

कर्म प्रभाव प्रकाशिनि , नव निधि की दाता ॥

॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहती , तहँ सब सद्गुण आता॥

सब सम्भव हो जाता , मन नहीं घबराता ॥

॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

तुम बिन यज्ञ न होवे , वस्त्र न हो पाता ॥

खान -पान अरु वैभव तुम बिन नहीं आता ॥

॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

शुभ गुण मन्दिर सुन्दर , क्षीरदधि जाता ॥

रत्न चतुर्दश तुम बिन , कोई नहीं पाता ॥

॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

आरती श्री लक्ष्मीजी की जो कोई नर गाता ॥

उर आनन्द समाता , पाप उत्तर जाता ॥

॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

स्थिर चर जगत बखाने , कर्म प्रचुर लाता ॥

जो कोई मातु आपकी , शुभ दृष्टि पाता ॥

॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

जय लक्ष्मी माता , मैया जय लक्ष्मी माता ॥

तुमको निशदिन सेवत , हर विष्णु धाता ॥

॥ ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

क्षमा प्रार्थना

ब्रह्माविष्णुशिव रुपिणी , परम ब्रह्म की शक्ति ।

मुझ सेवक को दीजिए , श्रीचरणों की भक्ति ॥

अपराधी नित्य का , पापों का भण्डार ।

मुझ सेवक को कीजियो , दुःखसागर से पार ॥

हो जाते हैं पूत तो , कई पूत अज्ञान ।

पर माता तो कर दया , रखती उनका ध्यान ॥

ऐसा मन में धारकर , कृपा करो अवलम्ब ।

और प्रार्थना क्या करूँ ? तू करुणा की खान ॥

त्राहि -त्राहि मातेश्वरी , मैं मूरख अज्ञान ॥

धरणी पर जब तक जीऊँ , रटूँ आपका नाम ।

तब दासों के सिद्ध सब , हो जाते हैं काम ॥

इसके पश्चात् ‘श्री महालक्ष्मी की जय ’ सब एक साथ बोलें तथा सारे कुटुम्ब के लोग मिलकर श्री गणेशजी , वरुण , षोडशमातृका , नवग्रह और महालक्ष्मी को प्रणाम करके कहें कि ‘हे सभी देवताओं ! आप सब तो यथास्थान प्रस्थान कीजिए तथा श्रीमहालक्ष्मी एवं ऋद्धि -सिद्धि और शुभ -लाभ सहित गणेश जी आप हमारे घर में और व्यापार में विराजमान रहिए और अन्त में हाथ जोड़कर निम्नलिखित उच्चारण करें । ’

त्राहि -त्राहि दुःखहारिणी , हरो बेगि सब त्रास ।

जयति -जयति जयलक्ष्मी , करो दुःखों का नाश ॥

इस सरल विधि के द्वारा जो लोग संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों का उच्चारण नहीं कर सकते वो इसके द्वारा पूजन कर सकते है ।

जय गणेश भगवान की

जय लक्ष्मी माता की

दीपावली लक्ष्मी पूजन विधि हिंदी में एवं आसान शब्दों में Read More »

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जन्माष्टमी व्रत की महिमा एवं विधि

img 7730 1जन्माष्टमी के व्रत की महिमा व विधि

भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिरजी को कहते हैं : “२० करोड़ एकादशी व्रतों के समान अकेला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत हैं |”

धर्मराज सावित्री से कहते हैं : “ भारतवर्ष में रहनेवाला जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है वह १०० जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है |”

चार रात्रियाँ विशेष पुण्य प्रदान करनेवाली हैं

१ )दिवाली की रात

२) महाशिवरात्रि की रात

३) होली की रात और

४) कृष्ण जन्माष्टमी की रात इन विशेष रात्रियों का जप, तप , जागरण बहुत बहुत पुण्य प्रदायक है |

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान,नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत का पालन करना चाहिए।

(शिवपुराण, कोटिरूद्र संहिता अ. 37)

जन्माष्टमी व्रत-उपवास की महिमा

जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहिए, बड़ा लाभ होता है ।इससे सात जन्मों के पाप-ताप मिटते हैं ।
जन्माष्टमी एक तो उत्सव है, दूसरा महान पर्व है, तीसरा महान व्रत-उपवास और पावन दिन भी है।
वायु पुराण’ में और कई ग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन की महिमा लिखी है। ‘जो जन्माष्टमी की रात्रि को उत्सव के पहले अन्न खाता है, भोजन कर लेता है वह नराधम है’ – ऐसा भी लिखा है, और जो उपवास करता है, जप-ध्यान करके उत्सव मना के फिर खाता है, वह अपने कुल की 21 पीढ़ियाँ तार लेता है और वह मनुष्य परमात्मा को साकार रूप में अथवा निराकार तत्त्व में पाने में सक्षमता की तरफ बहुत आगे बढ़ जाता है । इसका मतलब यह नहीं कि व्रत की महिमा सुनकर मधुमेह वाले या कमजोर लोग भी पूरा व्रत रखें ।
बालक, अति कमजोर तथा बूढ़े लोग अनुकूलता के अनुसार थोड़ा फल आदि खायें ।
जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है ।
उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्त्व है। जिसको क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र का और अपने गुरु मंत्र का थोड़ा जप करने को भी मिल जाय, उसके त्रिताप नष्ट होने में देर नहीं लगती ।
भविष्य पुराण’ के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत संसार में सुख-शांति और प्राणीवर्ग को रोगरहित जीवन देनेवाला, अकाल मृत्यु को टालनेवाला, गर्भपात के कष्टों से बचानेवाला तथा दुर्भाग्य और कलह को दूर भगानेवाला होता है।

श्रीकृष्ण-जन्माष्टमीव्रत की कथा एवं विधि

भविष्यपुराण उत्तरपर्व अध्याय – २४
राजा युधिष्ठिर ने कहा – अच्युत ! आप विस्तार से (अपने जन्म-दिन) जन्माष्टमी व्रत का विधान बतलाने की कृपा करें |
भगवान् श्रीकृष्ण बोले – राजन ! जब मथुरा में कंस मारा गया, उस समय माता देवकी मुझे अपनी गोद में लेकर रोने लगीं | पिता वसुदेवजी भी मुझे तथा बलदेवजी आलिंगन कर गद्गदवाणी से कहने लगे – ‘आज मेरा जन्म सफल हुआ, जो मैं अपने दोनों पुत्रों को कुशल से देख रहा हूँ | सौभाग्य से आज हम सभी एकत्र मिल रहे हैं |’ हमारे माता-पिता को अति हर्षित देखकर बहुत से लोग वहाँ एकत्र हुए और मुझसे कहने लगे – ‘भगवन ! आपने बहुत बड़ा काम किया, जो इस दुष्ट कंसको मारा | हम सभी इससे बहुत पीड़ित थे | आप कृपाकर यह बतलाये कि आप माता देवकी के गर्भ से कब आविर्भूत हुए थे ? हम सब उस दिन महोत्सव मनाया करेंगे | आपको बार-बार नमस्कार है, हम सब आपकी शरण में हैं | आप हम पर प्रसन्न होइये | उस समय पिता वसुदेवजी ने भी मुझसे कहा था कि अपना जन्मदिन इन्हें बता दो |’
तब मैंने मथुरानिवासी जनों को जन्माष्टमी व्रत का रहस्य बतलाया और कहा – ‘पुरवासियों ! आपलोग मेरे जन्म दिन को विश्व में जन्माष्टमी के नाम से प्रसारित करें | प्रत्येक धार्मिक व्यक्ति को जन्माष्टमी का व्रत अवश्य करना चाहिये | जिस समय सिंह राशि पर सूर्य और वृषराशिपर चन्द्रमा था, उस भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में मेरा जन्म हुआ | वसुदेवजी के द्वारा माता देवकी के गर्भ से मैंने जन्म लिया | यह दिन संसार में जन्माष्टमी नाम से विख्यात होगा | प्रथम यह व्रत मथुरा में प्रसिद्ध हुआ और बाद में सभी लोकों में इसकी प्रसिद्धी हो गयी | इस व्रत के करने से संसार में शान्ति होगी, सुख प्राप्त होगा और प्राणिवर्ग रोगरहित होगा |’
महाराज युधिष्ठिर ने कहा – भगवन ! अब आप इस व्रत का विधान बतलाये, जिसके करने से आप प्रसन्न होते हैं |
भगवान श्रीकृष्ण बोले – महाराज ! इस एक ही व्रत के कर लेने से सात जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं | व्रत के पहले दिन दंतधावन आदि करके व्रत का नियम ग्रहण करें | व्रत के दिन मध्यान्ह में स्नान कर माता भगवती देवकी का एक सूतिका गृह बनाये | उसे पद्मरागमणि और वनमाला आदिसे सुशोभित करें | गोकुल की भांति गोप, गोपी, घंटा, मृदंग, शंख और मांगल्य-कलश आदिसे समन्वित तथा अलंकृत सुतिका-गृह के द्वारपर रक्षा के लिए खणग, कृष्ण छाग, मुशल आदि रखे | दीवालों पर स्वस्तिक आदि मांगलिक चिन्ह बना दें | षष्ठीदेवी की भी नैवेद्य आदि के साथ स्थापना करें | इस प्रकार यथाशक्ति उस सूतिकागृह को विभूषितकर बीच में पर्यंक के ऊपर मुझसहित अर्धसुप्तावस्थावाली, तपस्विनी माता देवकी की प्रतिमा स्थापित करें | प्रतिमाएँ आठ प्रकार की होती हैं –स्वर्ण, चाँदी, ताम्र, पीतल, मृत्तिका, काष्ठ की मणिमयी तथा चित्रमयी | इनमे से किसी भी वस्तुकी सर्वलक्षणसम्पन्न प्रतिमा बनाकर स्थापित करें | माता देवकी का स्तनपान करती हुई बालस्वरूप मेरी प्रतिमा उनके समीप पलंग के ऊपर स्थापित करें | एक कन्या के साथ माता यशोदा की प्रतिमा भी वहां स्थापित की जाय | सूतिका-मंडप के ऊपर की भित्त्तियों में देवता, ग्रह, नाग तथा विद्याधर आदि की मूर्तियाँ हाथोसे पुष्प-वर्षा करते हुए बनाये | वसुदेवजी को सूतिकागृह के बाहर खणग और ढाल धारण किये चित्रित करना चाहिये | वसुदेवजी महर्षि कश्यप के अवतार हैं और देवकी माता अदितिकी | बलदेवजी शेषनाग के अवतार हैं, नन्दबाबा दक्षप्रजापति के, यशोदा दिति की और गर्गमुनि ब्रह्माजी के अवतार हैं | कंस कालनेमिका अवतार है | कंस के पहरेदारों को सूतिकागृह के आस-पास निद्रावस्था में चित्रित करना चाहिये | गौ, हाथी आदि तथा नाचती-गाती हुई अप्सराओं और गन्धर्वो की प्रतिमा भी बनाये | एक ओर कालिया नाग को यमुना के ह्रदय में स्थापित करें |
इसप्रकार अत्यंत रमणीय नवसुतिका-गृह में देवी देवकी की स्थापनकर भक्ति से गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, नारियल, दाडिम, ककड़ी, बीजपुर, सुपारी, नारंगी तथा पनस आदि जो फल उस देशमें उससमय प्राप्त हों, उन सबसे पूजनकर माता देवकी की इसप्रकार प्रार्थना करे –
गायभ्दि: किन्नराध्यै: सततपरिवृता वेणुवीणानीनादै भृंगारादर्शकुम्भप्रमरकृतकरै: सेव्यमाना मुनीन्द्रै: |
पर्यन्गे स्वास्तृते या मुदित्ततरमना: पुत्रिणी सम्यगास्ते सा देवी देवमाता जयति सुवदना देवकी कान्तरूपा ||
जिनके चारों ओर किन्नर आदि अपने हाथों में वेणु तथा वीणा-वाद्यों के द्वारा स्तुति-गान कर रहे हैं और जो अभिषेक-पात्र, आदर्श, मंगलमय कलश तथा चँवर हाथों में लिए श्रेष्ठ मुनिगणोंद्वारा सेवित हैं तथा जो कृष्ण-जननी भलीभांति बिछे हुए पलंगपर विराजमान हैं, उन कमनीय स्वरुपवाली सुवदना देवमाता अदिति-स्वरूपा देवी देवकी की जय हो |’
उससमय यह ध्यान करें कि कमलासना लक्ष्मी देवकी के चरण दबा रही हो | उन देवी लक्ष्मी की – ‘नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम: |’ इस मन्त्र से पूजा करे | इसके बाद ‘ॐ देवक्यै नम:, ॐ वासुदेवाय नम:, ॐ बलभद्राय नम:, ॐ श्रीकृष्णाय नम:, ॐ सुभद्रायै नम:, ॐ नन्दाय नम: तथा ॐ यशोदायै नम:’ – इन नाम-मन्त्रों से सबका अलग-अलग पूजन करें |
कुछ लोग चन्द्रमा के उदय हो जानेपर चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान कर हरि का ध्यान करते हैं, उन्हें निम्नलिखित मन्त्रों से हरि का ध्यान करना चाहिये –
अनघं वामनं शौरि वैकुण्ठ पुरुषोत्तमम |
वासुदेवं हृषीकेशं माधवं मधुसूदनम ||
वाराहं पुण्डरीकाक्षं नृसिंहं ब्राह्मणप्रियम |
दामोदरं पद्यनाभं केशवं गरुड़ध्वजम |
गोविन्दमच्युतं कृष्णमनन्तमपराजितम |
अघोक्षजं जगद्विजं सर्गस्थित्यन्तकारणम |
अनादिनिधनं विष्णुं त्रैलोक्येश त्रिविक्रमम |
नारायण चतुर्बाहुं शंखचक्रगदाधरम |
पीताम्बरधरं नित्यं वनमालाविभूषितम |
श्रीवत्सांग जगत्सेतुं श्रीधरं श्रीपति हरिम || (उत्तरपर्व ५५/४६ – ५०)
इन मन्त्रों से भगवान् श्रीहरि का ध्यान करके ‘योगेश्वराय योगसम्भवाय योगपतये गोविन्दाय नमो नम:’ – इस मन्त्र से प्रतिमा को स्नान कराना चाहिये | अनन्तर ‘यज्ञेश्वराय यज्ञसम्भवाय यज्ञपतये गोविन्दाय नमो नम:’ – इस मंत्रसे अनुलोपन, अर्घ्य, धूप, दीप आदि अर्पण करें | तदनंतर ‘विश्वाय विश्वेश्वराय विश्वसम्भवाय विश्वपतये गोविन्दाय नमो नम: |’ इस मन्त्र से नैवेद्य निवेदित करें | दीप अर्पण करने का मन्त्र इसप्रकार हैं – धम्रेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम: |’
इसप्रकार वेदी के ऊपर रोहिणी-सहित चन्द्रमा, वसुदेव, देवकी, नन्द, यशोदा और बलदेवजी का पूजन करें , इससे सभी पापों से मुक्ति हो जाती हैं | चंद्रोदय के समय इस मन्त्र से चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान करें –
क्षीरोदार्नवसम्भूत अत्रिनेत्रसमुद्भव |
गृहनार्घ्य शशाकेंदों रोहिण्या सहितो मम || (उत्तरपर्व ५५/५४)
आधी रात को गुड और घी से वसोर्धारा की आहुति देकर षष्ठीदेवी की पूजा करे | उसी क्षण नामकरण आदि संस्कार भी करने चाहिये | नवमी के दिन प्रात:काल मेरे ही समान भगवती का भी उत्सव करना चाहिये | इसके अनन्तर ब्राह्मणों को भोजन कराकर ‘कृष्णो में प्रीयताम’ कहकर यथाशक्ति दक्षिणा देनी चाहिये |
धर्मनंदन ! इसप्रकार जो मेरा भक्त पुरुष अथवा नारी देवी देवकी के इस महोत्सव को प्रतिवर्ष करता हैं, वह पुत्र, सन्तान, आरोग्य, धन-धान्य, सदगृह, दीर्घ आयुष्य और राज्य तथा सभी मनोरथों को प्राप्त करता हैं | जिस देशमें यह उत्सव किया जाता है, वहाँ जन्म-मरण, आवागमन की व्याधि, अवृष्टि तथा ईति-भीती आदि का कभी भय नहीं रहता | मेघ समयपर वर्षा करते हैं | पांडूपुत्र ! जिस घर में यह देवकी-व्रत किया जाता हैं, वहाँ अकालमृत्यु नहीं होती और न गर्भपात होता हैं तथा वैधव्य, दौर्भाग्य एवं कलह नहीं होता | जो एक बार भी इस व्रत को करता हैं, वह विष्णुलोक को प्राप्त होता है | इस व्रत के करनेवाले संसार के सभी सुखों को भोगकर अंत में विष्णुलोक में निवास करते हैं |
इति श्री भविष्यपुराण का उत्तरपर्व का चौवीसवाँ अध्याय समाप्त हुआ

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