Mantra, Aarti and Katha collection

This is a collection of all important Mantras, Aarti and Katha which is mentioned in various Purans, Shastra and ancient shastras.

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महाशिवरात्रि 2024 : Maha Shivratri 2024

img 7795 1 2img 7795 2 1 1महाशिवरात्रि 2024 उपाय

शुक्रवार, 08 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन की गई शिव पूजा से पिछले समय से चली आ रही परेशानियां खत्म हो सकती हैं और धन लाभ भी मिल सकता है। यहां जानिए शास्त्रों में बताए गए उपाए|

भगवान शिव बहुत भोले हैं, यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा से उन्हें सिर्फ एक लोटा पानी भी अर्पित करे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसीलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। महाशिवरात्रि (08 मार्च शुक्रवार) पर शिव भक्त भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए अनेक उपाय करते हैं।

कुछ ऐसे ही छोटे और अचूक उपायों के बारे शिवपुराण में भी लिखा है। ये उपाय इतने सरल हैं कि इन्हें बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है। हर समस्या के समाधान के लिए शिवपुराण में एक अलग उपाय बताया गया है। ये उपाय इस प्रकार हैं-

महाशिवरात्रि पर करें ये आसान उपाय, प्रसन्न होंगे भोलेनाथ

शिवपुराण के अनुसार, जानिए भगवान शिव को कौन सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से क्या फल मिलता है-

1. बुखार होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जल द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।

2. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिला दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।

3. शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।

4. शिव को गंगा जल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

5. शहद से भगवान शिव का अभिषेक करने से टीबी रोग में आराम मिलता है।

6. यदि शारीरिक रूप से कमजोर कोई व्यक्ति भगवान शिव का अभिषेक गाय के शुद्ध घी से करे तो उसकी कमजोरी दूर हो सकती है।

शिवपुराण के अनुसार, जानिए भगवान शिव को कौन-सा फूल चढ़ाने से क्या फल मिलता है-

1. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

2. चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।

3. अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने पर मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।

4. शमी वृक्ष के पत्तों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।

5. बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।

6. जूही के फूल से भगवान शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।

7. कनेर के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।

8. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

9. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।

10. लाल डंठलवाला धतूरा शिव पूजन में शुभ माना गया है।

11. दूर्वा से भगवान शिव का पूजन करने पर आयु बढ़ती है।

आमदनी बढ़ाने के लिए

महाशिवरात्रि पर घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करें और उसकी पूजा करें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का 108 बार जाप करें-

ऐं ह्रीं श्रीं ऊं नम: शिवाय: श्रीं ह्रीं ऐं

प्रत्येक मंत्र के साथ बिल्वपत्र पारद शिवलिंग पर चढ़ाएं। बिल्वपत्र के तीनों दलों पर लाल चंदन से क्रमश: ऐं, ह्री, श्रीं लिखें। अंतिम 108 वां बिल्वपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद निकाल लें तथा उसे अपने पूजन स्थान पर रखकर प्रतिदिन उसकी पूजा करें। माना जाता है ऐसा करने से व्यक्ति की आमदनी में इजाफा होता है।

संतान प्राप्ति के लिए उपाय

महाशिवरात्रि की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव की पूजा करें। इसके बाद गेहूं के आटे से 11 शिवलिंग बनाएं। अब प्रत्येक शिवलिंग का शिव महिम्न स्त्रोत से जलाभिषेक करें। इस प्रकार 11 बार जलाभिषेक करें। उस जल का कुछ भाग प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।

यह प्रयोग लगातार 21 दिन तक करें। गर्भ की रक्षा के लिए और संतान प्राप्ति के लिए गर्भ गौरी रुद्राक्ष भी धारण करें। इसे किसी शुभ दिन शुभ मुहूर्त देखकर धारण करें।

बीमारी ठीक करने के लिए उपाय

महाशिवरात्रि पर पानी में दूध व काले तिल डालकर शिवलिंग का अभिषेक करें। अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करें। अभिषेक करते समय ऊं जूं स: मंत्र का जप करते रहें|

शिवरात्रि पर करें इन 8 में से कोई 1 उपाय, दूर हो सकती है परेशानी

महाशिवरात्रि पर रात में किसी शिव मंदिर में दीपक जलाएं । शिव पुराण के अनुसार कुबेर देव ने पूर्व जन्म में रात के समय शिवलिंग के पास रोशनी की थी इसी वजह से अगले जन्म में वे देवताओं के कोषाध्यक्ष बने।

महाशिवरात्रि पर छोटा सा पारद (पारा) शिवलिंग लेकर आएं और घर के मंदिर में इसे स्थापित करें। शिवरात्रि से शुरू करके रोज इसकी पूजा करें । इस उपाय से घर की दरिद्रता दुर होती है और लक्ष्मी कृपा बनी रहती है।

यदि आप चाहें तो शिवरात्रि पर स्फटिक के शिवलिंग की पूजा कर सकते हैं। घर के मंदिर में जल, दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर से इस शिवलिंग को स्नान कराएं । मंत्र – ॐ नम: शिवाय । मंत्र जप कम से कम 108 बार करें।

हनुमानजी भगवान शिव के ही अंशावतार माने गए हैं। शिवरात्रि पर हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमानजी और शिवजी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इनकी कृपा से भक्त की सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं।

किसी सुहागिन को सुहाग का सामान उपहार में दें । जो लोग यह उपाय करते है, उनके वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर हो सकती हैं। सुहाग का सामान जैसे – लाल साड़ी, लाल चूडियां, कुम -कुम आदि।

महाशिवरात्रि पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति को अनाज और धन का दान करें। शास्त्रों में बताया गया है कि गरिबों को दान करने से पुराने सभी पापों का असर खत्म हो सकता है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

जो लोग शिवरात्रि पर किसी बिल्व वृक्ष के नीचे खड़े होकर खीर और घी का दान करते हैं, उन्हें महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्ति होती है। ऐसे लोग जीवनभर सुख-सुविधाएं प्राप्ति करते हैं और कार्यों में सफल होते हैं।

शिव पुराण के अनुसार बिल्व वृक्ष महादेव का रुप है। इसलिए इसकी पूजा करें।फूल, कुम -कुम, प्रसाद आदि चीजें विशेष रुप से चढ़ाएं । इसकी पूजा से जल्दी शुभ फल मिलते हैं। शिवरात्रि पर बिल्व के पास दीपक जलाएं ।

महाशिवरात्रि

शिवरात्रि का व्रत, पूजन, जागरण और उपवास करनेवाले मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है। (स्कंद पुराण)

शिवरात्रि के समान पाप और भय मिटानेवाला दूसरा व्रत नहीं है। इसको करनेमात्र से सब पापों का क्षय हो जाता है। (शिव पुराण)

शिवरात्रि की रात ‘ॐ नमः शिवाय’ जप

शिवजी का पत्रम-पुष्पम् से पूजन करके मन से मन का संतोष करें, फिर ॐ नमः शिवाय…. ॐ नमः शिवाय…. शांति से जप करते गये। इस जप का बड़ा भारी महत्त्व है। अमुक मंत्र की अमुक प्रकार की रात्रि को शांत अवस्था में, जब वायुवेग न हो आप सौ माला जप करते हैं तो आपको कुछ-न-कुछ दिव्य अनुभव होंगे। अगर वायु-संबंधी बीमारी हैं तो ‘बं बं बं बं बं’ सवा लाख जप करते हो तो अस्सी प्रकार की वायु-संबंधी बीमारियाँ गायब !

ॐ नमः शिवाय मंत्र तो सब बोलते हैं लेकिन इसका छंद कौन सा है, इसके ऋषि कौन हैं, इसके देवता कौन हैं, इसका बीज क्या है, इसकी शक्ति क्या है, इसका कीलक क्या है – यह मैं बता देता हूँ। अथ ॐ नमः शिवाय मंत्र। वामदेव ऋषिः। पंक्तिः छंदः। शिवो देवता। ॐ बीजम्। नमः शक्तिः। शिवाय कीलकम्। अर्थात् ॐ नमः शिवाय का कीलक है ‘शिवाय’, ‘नमः’ है शक्ति, ॐ है बीज… हम इस उद्देश्य से (मन ही मन अपना उद्देश्य बोलें) शिवजी का मंत्र जप रहे हैं – ऐसा संकल्प करके जप किया जाय तो उस संकल्प की पूर्ति में मंत्र की शक्ति काम देगी।

किस धातु के शिवलिंग की पूजा करे

वैसे तो भगवान शिव का अभिषेक हमेशा करना चाहिए,लेकिन शिवरात्रि (08 मार्च, शुक्रवार) का दिन कुछ खास है। यह दिन भगवान शिवजी का विशेष रूप से प्रिय माना जाता है। कई ग्रंथों में भी इस बात का वर्णन मिलता है। भगवान शिव का अभिषेक करने पर उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है मनोकामना पूरी होती है। धर्मसिन्धू के दूसरे परिच्छेद के अनुसार,अगर किसी खास फल की इच्छा हो तो भगवान के विशेष शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। यहां जानिए किस धातु के बने शिवलिंग की पूजा करने से कौन-सा फल मिलता है।

1⃣ सोने के शिवलिंग पर अभिषेक करने से सत्यलोक (स्वर्ग) की प्राप्ति होती है ।

2⃣ मोती के शिवलिंग पर अभिषेक करने से रोगों का नाश होता है।

3⃣ हीरे से निर्मित शिवलिंग पर अभिषेक करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है ।

4⃣ पुखराज के शिवलिंग पर अभिषेक करने से धन-लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।

5⃣स्फटिक के शिवलिंग पर अभिषेक करने से मनुष्य की सारी कामनाएं पूरी हो जाती हैं

6⃣नीलम के शिवलिंग पर अभिषेक करने से सम्मान की प्राप्ति होती है ।

7⃣ चांदी से बने शिवलिंग पर अभिषेक करने से पितरों की मुक्ति होती है ।

8⃣ ताम्बे के शिवलिंग पर अभिषेक करने से लम्बी आयु की प्राप्ति होती है ।

9⃣ लोहे के शिवलिंग पर अभिषेक करने से शत्रुओं का नाश होता है ।

10. आटे से बने शिवलिंग पर अभिषेक करने से रोगों से मुक्ति मिलती है ।

1⃣1⃣मक्खन से बने शिवलिंग पर अभिषेक करने पर सभी सुख प्राप्त होते हैं ।

1⃣2⃣गुड़ के शिवलिंग पर अभिषेक करने से अन्न की प्राप्ति होती है ।

शिवरात्रि के दिन करने योग्य विशेष बातें

१. शिवरात्रि के दिन की शुरुआत ये श्लोक बोल के शुरू करें

देव देव महादेव नीलकंठ नमोस्तुते l

कर्तुम इच्छा म्याहम प्रोक्तं, शिवरात्रि व्रतं तव ll

2. काल सर्प के लिए महाशिवरात्रि के दिन घर के मुख्य दरवाजे पर पिसी हल्दी से स्वस्तिक बना देना….शिवलिंग पर दूध और बिल्व पत्र चढ़ाकर जप करना और रात को ईशान कोण में मुख करके जप करना l

3. शिवरात्रि के दिन ईशान कोण में मुख करके जप करने की महिमा विशेष है, क्योंकि ईशान के स्वामी शिव जी हैं l रात को जप करें, ईशान को दिया जलाकर पूर्व के तरफ रखें , लेकिन हमारा मुख ईशान में हो तो विशेष लाभ होगा l जप करते समय झोका आये तो खड़े होकर जप करना l

4. महाशिवरात्रि को कोई मंदिर में जाकर शिवजी पर दूध चढाते हैं तो ये ५ मंत्र बोलें

ॐ हरये नमः

ॐ महेश्वराए नमः

ॐ शूलपानायाय नमः

ॐ पिनाकपनाये नमः

ॐ पशुपतये नमः

कालसर्प दोष

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 08 मार्च, शुक्रवार को है। ज्योतिष के अनुसार,जिन लोगों को कालसर्प दोष है,वे यदि इस दिन कुछ विशेष उपाए करें तो इस दोष से होने वाली परेशानियों से राहत मिल सकती है।

कालसर्प दोष मुख्य रूप से 12 प्रकार का होता है,इसका निर्धारण जन्म कुंडली देखकर ही किनया जा सकता है। प्रत्येक कालसर्प दोष के निवारण के लिए अलग-अलग उपाए हैं। यदि आप जानते हैं कि आपकी कुंडली में कौन का कालसर्प दोष है तो उसके अनुसार आप महाशिवरात्रि पर उपाए कर सकते हैं। कालसर्प दोष के प्रकार व उनके उपाए इस प्रकार हैं-

१. अनन्त कालसर्प दोष

अनन्त कालसर्प दोष होने पर शिवरात्रि पर एकमुखी,आठमुखी अथवा नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

यदि इस दोष के कारण स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है,तो महाशिवरात्रि पर रांगे(एक धातु)से बना सिक्का नदी में प्रवाहित करें।

२. .कुलिक कालसर्प दोष

कुलिक नामक कालसर्प दोष होने पर दो रंग वाला कंबल अथवा गर्म वस्त्र दान करें।

चांदी की ठोस गोली बनवाकर उसकी पूजा करें और उसे अपने पास रखें।

३. वासुकि कालसर्प दोष

वासुकि कालसर्प दोष होने पर रात को सोते समय सिरहाने पर थोड़ा बाजरा रखें और सुबह उठकर उसे पक्षियों को खिला दें।

महाशिवरात्रि पर लाल धागे में तीन, आठ या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

४. शंखपाल कालसर्प दोष

शंखपाल कालसर्प दोष के निवारण के लिए 400 ग्राम साबुत बादाम बहते जल में प्रवाहित करें।

महाशिवरात्रि पर शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें।

५. पद्म कालसर्प दोष

पद्म कालसर्प दोष होने पर महाशिवरात्रि से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक रोज सरस्वती चालीसा का पाठ करें।

जरूरतमंदों को पीले वस्त्र का दान करें और तुलसी का पौधा लगाएं।

६. महापद्म कालसर्प दोष

महापद्म कालसर्प दोष के निदान के लिए हनुमान मंदिर में जाकर सुंदरकांड का पाठ करें।

महाशिवरात्रि पर गरीब, असहायों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दें।

७. तक्षक कालसर्प दोष

तक्षक कालसर्प योग के निवारण के लिए 11 नारियल बहते हुए जल में प्रवाहित करें।

सफेद कपड़े और चावल का दान करें।

८. कर्कोटक कालसर्प दोष

कर्कोटक कालसर्प योग होने पर बटुकभैरव के मंदिर में जाकर उन्हें दही-गुड़ का भोग लगाएं और पूजा करें।*

महाशिवरात्रि पर शीशे के आठ टुकड़े नदी में प्रवाहित करें।

९. शंखचूड़ कालसर्प दोष

शंखचूड़ नामक कालसर्प दोष की शांति के लिए महाशिवरात्रि की रात सोने से पहले सिरहाने के पास जौ रखें और उसे अगले दिन पक्षियों को खिला दें।

पांचमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

१०. घातक कालसर्प दोष

घातक कालसर्प के निवारण के लिए पीतल के बर्तन में गंगाजल भरकर अपने पूजा स्थल पर रखें।

चार मुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष हरे रंग के धागे में धारण करें।

११. विषधर कालसर्प दोष

विषधर कालसर्प के निदान के लिए परिवार के सदस्यों की संख्या के बराबर नारियल लेकर एक-एक नारियल पर उनका हाथ लगवाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करें।

महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के मंदिर में जाकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।

१२. शेषनाग कालसर्प दोष

शेषनाग कालसर्प दोष होने पर महाशिवरात्रि की पूर्व रात्रि को लाल कपड़े में थोड़े से बताशे व सफेद फूल बांधकर सिरहाने रखें और उसे अगले दिन सुबह उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।

महाशिवरात्रि पर गरीबों को दूध व अन्य सफेद वस्तुओं का दान करें।

महाशिवरात्रि पूजा

अर्ध रात्रि की पूजा के लिये स्कन्दपुराण में लिखा है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ‘निशिभ्रमन्ति भूतानि शक्तयः शूलभृद यतः । अतस्तस्यां चतुर्दश्यां सत्यां तत्पूजनं भवेत् ॥’ अर्थात् रात्रिके समय भूत, प्रेत, पिशाच, शक्तियाँ और स्वयं शिवजी भ्रमण करते हैं; अतः उस समय इनका पूजन करने से मनुष्य के पाप दूर हो जाते हैं । शिवपुराण में आया है “कालो निशीथो वै प्रोक्तोमध्ययामद्वयं निशि ॥ शिवपूजा विशेषेण तत्काले ऽभीष्टसिद्धिदा ॥ एवं ज्ञात्वा नरः कुर्वन्यथोक्तफलभाग्भवेत्” अर्थात रात के चार प्रहरों में से जो बीच के दो प्रहर हैं, उन्हें निशीधकाल कहा गया हैं | विशेषत: उसी कालमें की हुई भगवान शिव की पूजा अभीष्ट फल को देनेवाली होती है – ऐसा जानकर कर्म करनेवाला मनुष्य यथोक्त फलका भागी होता है |*

चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम कल्याणकारी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है। शिवरहस्य में कहा गया है ।*

“चतुर्दश्यां तु कृष्णायां फाल्गुने शिवपूजनम्। तामुपोष्य प्रयत्नेन विषयान् परिवर्जयेत।। शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्।”

शिवपुराण में ईशान संहिता के अनुसार “फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥” अर्थात फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए इसलिए इसे महाशिवरात्रि मानते हैं।

शिवपुराण में विद्येश्वर संहिता के अनुसार शिवरात्रि के दिन ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी ने अन्यान्य दिव्य उपहारों द्वारा सबसे पहले शिव पूजन किया था जिससे प्रसन्न होकर महेश्वर ने कहा था की “आजका दिन एक महान दिन है | इसमें तुम्हारे द्वारा जो आज मेरी पूजा हुई है, इससे मैं तुम लोगोंपर बहुत प्रसन्न हूँ | इसीकारण यह दिन परम पवित्र और महान – से – महान होगा | आज की यह तिथि ‘महाशिवरात्रि’ के नामसे विख्यात होकर मेरे लिये परम प्रिय होगी | इसके समय में जो मेरे लिंग (निष्कल – अंग – आकृति से रहित निराकार स्वरूप के प्रतीक ) वेर (सकल – साकाररूप के प्रतीक विग्रह) की पूजा करेगा, वह पुरुष जगत की सृष्टि और पालन आदि कार्य भी कर सकता हैं | जो महाशिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं जितेन्द्रिय रहकर अपनी शक्ति के अनुसार निश्चलभाव से मेरी यथोचित पूजा करेगा, उसको मिलनेवाले फल का वर्णन सुनो | एक वर्षतक निरंतर मेरी पूजा करनेपर जो फल मिलता हैं, वह सारा केवल महाशिवरात्रि को मेरा पूजन करने से मनुष्य तत्काल प्राप्त कर लेता हैं | जैसे पूर्ण चंद्रमा का उदय समुद्र की वृद्धि का अवसर हैं, उसी प्रकार यह महाशिवरात्रि तिथि मेरे धर्म की वृद्धि का समय हैं | इस तिथिमे मेरी स्थापना आदि का मंगलमय उत्सव होना चाहिये |

तिथितत्त्व के अनुसार शिव को प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि पर उपवास की प्रधानता तथा प्रमुखता है क्योंकि भगवान् शंकर ने खुद कहा है – “न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया। तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः।।” ‘मैं उस तिथि पर न तो स्नान, न वस्त्रों, न धूप, न पूजा, न पुष्पों से उतना प्रसन्न होता हूँ, जितना उपवास से।’

कंदपुराण में लिखा है “सागरो यदि शुष्येत क्षीयेत हिमवानपि। मेरुमन्दरशैलाश्च रीशैलो विन्ध्य एव च॥ चलन्त्येते कदाचिद्वै निश्चलं हि शिवव्रतम्।” अर्थात् ‘चाहे सागर सूख जाये, हिमालय भी क्षय को प्राप्त हो जाये, मन्दर, विन्ध्यादि पर्वत भी विचलित हो जाये, पर शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं हो सकता।’ इसका फल अवश्य मिलता है।

स्कंदपुराण’ में आता है “परात्परं नास्ति शिवरात्रि परात्परम् | न पूजयति भक्तयेशं रूद्रं त्रिभुवनेश्वरम् | जन्तुर्जन्मसहस्रेषु भ्रमते नात्र संशयः||” ‘शिवरात्रि व्रत परात्पर (सर्वश्रेष्ठ) है, इससे बढ़कर श्रेष्ठ कुछ नहीं है | जो जीव इस रात्रि में त्रिभुवनपति भगवान महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक जन्म-चक्रों में घूमता रहता है |’

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एकादशी को अन्न खाने से पाप लगता है और शिवरात्रि, रामनवमी तथा जन्माष्टमी के दिन अन्न खाने से दुगना पाप लगता है। अतः महाशिवरात्रि का व्रत अनिवार्य है।

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माघ-मौनी अमावस्या

मौनी अमावस्या

माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस नामकरण के लिए दो मान्यताएं हैं ।

इस दिन मौन रहना चाहिए। मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। इस दिन मौन रहकर प्रयाग संगम अथवा पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।

ऐसा माना जाता है इस दिन ब्रह्मा जी ने स्वयंभुव मनु को उत्पन्न कर सृष्टि का निर्माण कार्य आरम्भ किया था इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है।

पद्म पुराण’ के अनुसार माघ मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या को सूर्योदय से पहले जो तिल और जल से पितरों का तर्पण करता है, वह स्वर्ग में अक्षय सुख भोगता है। जो उक्त तिथि को तिल की गौ बनाकर उसे सब सामग्रियों सहित दान करता है, वह सात जन्म के पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में अक्षय सुख का भागी होता है। ब्राह्मण को भोजन के योग्य अन्न देने से भी अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जो उत्तम ब्राह्मण को अनाज, वस्त्र, घर आदि दान करता है, उसे लक्ष्मी कभी नहीं छोड़ती।

इस दिन पितृ पूजा, श्राद्ध, तर्पण, पिण्ड दान, नारायणी आदि कर सकते है। वैसे तो प्रत्येक अमावस्या पितृ कर्म के लिए विशेष होती है परंतु युगादि तिथि तथा मकरस्थ रवि होने के कारण मौनी अमावस्या का महत्व कहीं ज्यादा है। अगर आप पितृदोष से पीड़ित हैं अथवा आपको लगता है की आपके पिता, माता अथवा गुरु के कुल में किसी को अच्छी गति प्राप्त नहीं हुई है तो आज तर्पण (विशेषतः गंगा किनारे) जरूर करें।

अगर आप सौभाग्यशाली हैं और इस दिन गंगा स्नान के लिए जा रहे हैं तो तर्पण के अलावा भी बहुत कृत्य हैं। स्कंदपुराण में भगवान शिव का कथन है ।

जो पितरों के उद्देश्य से भक्तिपूर्वक गुड़, घी और तिल के साथ मधुयुक्त खीर गंगा में डालते हैं, उसके पितर सौ वर्षों तक तृप्त बने रहते हैं और वे संतुष्ट होकर अपनी संतानों को नाना प्रकार की मनोवाञ्छित वस्तुएं प्रदान करते हैं।

जो पितरों के उद्देश्य से गंगाजल के द्वारा शिवलिंग को स्नान कराते हैं, उनके पितर यदि भारी नरक में पड़े हों तो भी तृप्त हो जाते हैं।

जो एक बार भी ताँबे के पात्र में रखे हुए अष्टद्रव्ययुक्त (जल, दूध, कुश का अग्रभाग, घी, मधु, गाय का दही, लाल कनेर तथा लाल चंदन) गंगाजल से भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं, वे अपने पितरों के साथ सूर्यलोक में जाकर प्रतिष्ठित होते हैं।*

जो गंगा के तट पर एक बार भी पिण्डदान करता है, वह तिलमिश्रित जल के द्वारा अपने पितरों का भवसागर से उद्धार कर देता है।

पिता/माता/गुरु/भाई/मित्र/रिश्तेदार किसी के भी कुल में कोई किसी भी तरह, किसी भी अवस्था में मरा हो (चाहे अग्नि से या विष से या आत्मदाह अथवा अन्य प्रकार से मृत्यु) आज सब पितरों का उद्धार संभव है।

माघ कृष्ण पक्ष की अमावस्या युगादि तिथि है। अर्थात इस तिथि को चार युगों में से एक युग का आरम्भ हुआ था। स्कंदपुराण के अनुसार “माघे पञ्चदशी कृष्णा द्वापरादिः स्मृता बुधैः” द्वापर की आदि तिथि हैं जबकि कुछ विद्वान इसको कलियुग की प्रारम्भ तिथि मानते हैं। युगादि तिथियाँ बहुत ही शुभ होती हैं, इस दिन किया गया जप, तप, ध्यान, स्नान, दान, यज्ञ, हवन कई गुना फल देता है l प्रत्येक युग में सौ वर्षों तक दान करने से जो फल होता है, वह युगादि-काल में एक दिन के दान से प्राप्त हो जाता है ।

इस दिन साधु, महात्मा तथा के सेवन के लिए अग्नि प्रज्वलित करनी चाहिए तथा उन्हें रजाई, कम्बल आदि जाड़े के वस्त्र देने चाहिए। इस दिन गुड़ में काले तिल मिलाकर मोदक बनाने चाहिए तथा उन्हें लाल वस्त्र में बांधकर ब्राह्मणों को देना श्रेयस्कर है। इसी पुण्य पर्व पर विभिन्न प्रकार के नैवेद्य मिष्टान्नादि षट्रस व्यंजनों से ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें द्रव्य दक्षिणादि से संतुष्ट कर प्रणामादि कर सादर विदा करना चाहिए।

गौशाला में गायों के निमित्त हरे चारे, खल, चोकर, भूसी, गुड़ आदि पदार्थों का दान देना चाहिए तथा गौ की चरण रज को मस्तक पर धारण कर उसे साष्टांग प्रणाम करना चाहिए।

माघी अमावस्या को प्रात: स्नान के बाद ब्रह्मदेव और गायत्री का पूजन करें। गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, पलंग, दर्पण आदि का मंत्रोपचार के साथ ब्राह्मण को दान करें। पवित्र भाव से ब्राह्मण एवं परिजनों के साथ भोजन करें। इस दिन पीपल में आघ्र्य देकर परिक्रमा करें और दीप दान दें। इस दिन जिनके लिए व्रत करना संभव नहीं हो वह मीठा भोजन करें।

मौनी अमावस्या के दिन भूखे प्राणियों को भोजन कराने का भी विशेष महत्व है। इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद आटे की गोलियां बनाएं। गोलियां बनाते समय भगवान का नाम लेते रहें। इसके बाद समीप स्थित किसी तालाब या नदी में जाकर यह आटे की गोलियां मछलियों को खिला दें। इस उपाय से आपके जीवन की अनेक परेशानियों का अंत हो सकता है। अमावस्या के दिन चीटियों को शक्कर मिला हुआ आटा खिलाएं। ऐसा करने से आपके पाप कर्मों का क्षय होगा और पुण्य कर्म उदय होंगे। यही पुण्य कर्म आपकी मनोकामना पूर्ति में सहायक होंगे।

दशतीर्थसहस्राणि तिस्रः कोटयस्तथा पराः॥

समागच्छन्ति मध्यां तु प्रयागे भरतर्षभ।

माघमासं प्रयागे तु नियतः संशितव्रतः॥

स्नात्वा तु भरतश्रेष्ठ निर्मलः स्वर्गमाप्नुयात्।

(महाभारत, अनुशासन पर्व 25 । 36 -38)

अर्थात माघ मास की अमावस्या को प्रयाग राज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है। जो नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघ मास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।

🙏जय श्री राम 🙏

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मकर संक्रांति 2024

img 5585मकर संक्रांति 2024 विशेष

आत्मोद्धारक व जीवन-पथ प्रकाशक पर्व – मकर संक्रांति (15 जनवरी 2024 सोमवार को पुण्यकाल सूर्योदय से सूर्यास्त तक )

जिस दिन भगवान सूर्यनारायण उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करते हैं, उस दिन उतरायण (मकर संक्रांति) का पर्व मनाया जाता है | इस दिन से अंधकारमयी रात्रि कम होती जाती है और प्रकाशमय दिवस बढ़ता जाता है | उत्तरायण का वाच्यार्थ है कि सूर्य उत्तर की तरफ, लक्ष्यार्थ है आकाश के देवता की कृपा से ह्दय में भी अनासक्ति करनी है | नीचे के केन्द्रों में वासनाएँ, आकर्षण होता है व ऊपर के केन्द्रों में निष्कामता, प्रीति और आनंद होता है | संक्रांति रास्ता बदलने की सम्यक सुव्यवस्था है | इस दिन आप सोच व कर्म की दिशा बदलें | जैसी सोच होगी वैसा विचार होगा, जैसा विचार होगा वैसा कर्म होगा | हाड-मांस के शरीर को सुविधाएँ दे के विकार भोगकर सुखी होने की पाश्चात्य सोच है और हाड-मांस के शरीर को संयत, जितेन्द्रिय रखकर सदभाव से विकट परिस्थितियों में भी सामनेवाले का मंगल चाहते हुए उसका मंगलमय स्वभाव प्रकट करना यह भारतीय सोच है |

सम्यक क्रांति…. ऐसे तो हर महिने संक्रांति आती है लेकिन मकर संक्रांति साल में एक बार आती है | उसीका इंतजार किया था भीष्म पितामह ने | उन्होंने उत्तरायण काल शुरू होने के बाद ही देह त्यागी थी |

पुण्यपुंज व आरोग्यता अर्जन का दिन

जो संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता वह ७ जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है और जो संक्रांति का स्नान कर लेता है वह तेजस्वी और पुण्यात्मा हो जाता है | संक्रांति के दिन उबटन लगाये, जिसमे काले तिल का उपयोग हो |

भगवान सूर्य को भी तिलमिश्रित जल से अर्घ्य दें | इस दिन तिल का दान पापनाश करता है, तिल का भोजन आरोग्य देता है, तिल का हवन पुण्य देता है | पानी में भी थोड़े तिल डाल के पियें तो स्वास्थ्यलाभ होता है | तिल का उबटन भी आरोग्यप्रद होता है | इस दिन सुर्योद्रय से पूर्व स्नान करने से १० हजार गौदान करने का फल होता है | जो भी पुण्यकर्म उत्तरायण के दिन करते हैं वे अक्षय पुण्यदायी होते हैं | तिल और गुड के व्यंजन, चावल और चने की दाल की खिचड़ी आदि ऋतु-परिवर्तनजन्य रोगों से रक्षा करती है | तिलमिश्रित जल से स्नान आदि से भी ऋतु-परिवर्तन के प्रभाव से जो भी रोग-शोक होते हैं, उनसे आदमी भिड़ने में सफल होता है

सूर्यदेव की विशेष प्रसन्नता हेतु मंत्र

ब्रम्हज्ञान सबसे पहले भगवान सूर्य को मिला था | उनके बाद रजा मनु को, यमराज को…. ऐसी परम्परा चली | भास्कर आत्मज्ञानी हैं, पक्के ब्रम्ह्वेत्ता हैं | बड़े निष्कलंक व निष्काम हैं | कर्तव्यनिष्ठ होने में और निष्कामता में भगवान सूर्य की बराबरी कौन कर सकता है ! कुछ भी लेना नहीं, न किसी से राग है न द्वेष है | अपनी सत्ता-समानता में प्रकाश बरसाते रहते हैं, देते रहते हैं |

पद्म पुराण’ में सूर्यदेवता का मूल मंत्र है : ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम: | अगर इस सूर्य मंत्र का ‘आत्मप्रीति व आत्मानंद की प्राप्ति हो’ – इस हेतु से भगवान भास्कर का प्रीतिपूर्वक चिंतन करते हुए जप करते हैं तो खूब प्रभु-प्यार बढेगा, आनंद बढेगा |

ओज-तेज-बल का स्त्रोत : सूर्यनमस्कार

सूर्यनमस्कार करने से ओज-तेज और बुद्धि की बढ़ोत्तरी होती है |

ॐ सूर्याय नम: |

ॐ भानवे नम: |

ॐ खगाय नम:

ॐ रवये नम:

ॐ अर्काय नम: |…..

आदि मंत्रो से सूर्यनमस्कार करने से आदमी ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है | इसमें प्राणायाम भी हो जाता है, कसरत भी हो जाती है |

सूर्य की उपासना करने से, अर्घ्य देने से, सूर्यस्नान व सूर्य-ध्यान आदि करने से कामनापूर्ति होती है | सूर्य का ध्यान भ्रूमध्य में करने से बुद्धि बढती है और नाभि-केंद्र में करने से मन्दाग्नि दूर होती है, आरोग्य का विकास होता है |

आरोग्य व पुष्टि वर्धक : सूर्यस्नान

सूर्य की धूप में जो खाद्य पदार्थ, जैसे-घी, तेल आदि २ – ४ घंटे रखा रहे तो अधिक सुपाच्य हो जाता है | धूप में रखे हुए पानी से कभी –कभी स्नान कर सकते हैं | इससे सूखा रोग (Rickets) नहीं होता और रोगनाशिनी शक्ति बरक़रार रहती है |

सूर्य की किरणों से रोग दूर करने की प्रशंसा ‘अथर्ववेद’ में भी आती है | कांड – १, सूक्त २२ के श्लोकों में सूर्य की किरणों का वर्णन आता है |

मैं १५-२० मिनट सूर्यस्नान करता हूँ | लेटे–लेटे सूर्यस्नान करना और भी हितकारी होता है लेकिन सूर्य की कोमल धूप हो, सूर्योदय से एक-डेढ़ घंटे के अंदर-अंदर सूर्यस्नान कर लें | इससे मांसपेशियाँ तंदुरस्त होती हैं, स्नायुओं का दौर्बल्य दूर होता है | सूर्यस्नान का यह प्रसाद मुझे अनुभव होता है | मुझे स्नायुओं में दौर्बल्य नहीं है | स्नायु की दुर्बलता, शरीर में दुर्बलता, थकान व कमजोरी हो तो प्रतिदिन सूर्यस्नान करना चाहिए |

सूर्यस्नान से त्वचा के रोग भी दूर होते हैं, हड्डियाँ मजबूत होती हैं | रक्त में कैल्शियम, फ़ॉस्फोरस व लोहें की मात्राएँ बढती हैं, ग्रंथियों के स्त्रोतों में संतुलन होता है | सूर्यकिरणों से खून का दौरा तेज, नियमित व नियंत्रित चलता है | लाल रक्त कोशिकाएँ जाग्रत होती हैं, रक्त की वृद्धि होती है | गठिया, लकवा और आर्थराइटिस के रोग में भी लाभ होता है | रोगाणुओं का नाश होता है, मस्तिष्क के रोग, आलस्य, प्रमाद, अवसाद, ईर्ष्या-द्वेष आदि शांत होते हैं | मन स्थिर होने में भी सूर्य की किरणों का योगदान है | नियमित सूर्यस्नान से मन पर नियंत्रण, हार्मोन्स पर नियंत्रण और त्वचा व स्नायुओं में क्षमता, सहनशीलता की वृद्धि होती है |

नियमित सूर्यस्नान से दाँतों के रोग दूर होने लगते हैं | विटामिन ‘डी’ की कमी से होनेवाले सूखा रोग, संक्रामक रोग आदि भी सूर्यकिरणों से भगाये जा सकते हैं |

अत: आप भी खाद्य अन्नों को व स्नान के पानी को धूप में रखों तथा सूर्यस्नान का खूब लाभ लो |

दृढ़ संकल्पवान व साधना में उन्नत होने का दिन

उत्तरायण यह देवताओं का ब्राम्हमुहूर्त है तथा लौकिक व अध्यात्म विद्याओं की सिद्धि का काल है | तो मकर संक्रांति के पूर्व की रात्रि में सोते समय भावना करना कि ‘पंचभौतिक शरीर पंचभूतों में, मन, बुद्धि व अहंकार प्रकृति में लीन करके मैं परमात्मा में शांत हो रहा हूँ | और जैसे उत्तरायण के पर्व के दिन भगवान सूर्य दक्षिण से मुख मोडकर उत्तर की तरफ जायेंगे, ऐसे ही हम नीचे के केन्द्रों से मुख मोडकर ध्यान-भजन और समता के सूर्य की तरफ बढ़ेंगे |

ॐ शांति …. ॐ आनंद …. ‘

रात को ‘ॐ सूर्याय नम: |’

इस मंत्र का चिंतन करके सोओगे तो सुबह उठते-उठते सूर्यनारायण का भ्रूमध्य में ध्यान भी सहज में कर पाओगे | उससे बुद्धि का विकास होगा |

मकर संक्रांति

15 जनवरी 2024 सोमवार को (पुण्यकाल सूर्योदय से सूर्यास्त तक मकर संक्राति है।

मकर संक्रांति के दिन एक मुट्ठी काले तिल को लेकर घर के सभी सदस्यों के सिर से 7 बार वार कर उत्तर दिशा में बिना देखे फेंक दें. ऐसा करने से रोगों से छुटकारा मिलता है साथ ही कर्ज से भी मुक्ति मिलती है.

सूर्य आराधना और अर्घ्यमकर संक्रांति के दिन सूर्य पूजन और अर्घ्य का विशेष महत्व होता है. इससे आपके गृह दोष दूर होते हैं और नौकरी, भोग विलास, रोग, दोष से मुक्ति मिलती है. इसलिए स्नान कर के सूर्य देव को अर्घ्य दें. ध्यान रहे कि अर्घ्य में लाल चंदन, लाल फूल, गुड़ और तिल अवश्य लें. इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं उनकी कृपा दृष्टि आप पर हमेशा बनी रहती है.

नारद पुराण के अनुसार

“मकरस्थे रवौ गङ्गा यत्र कुत्रावगाहिता ।

पुनाति स्नानपानाद्यैर्नयन्तीन्द्रपुरं जगत् ।।”

सूर्य के मकर राशिपर रहते समय जहाँ कहीं भी गंगा में स्नान किया जाय , वह स्नान आदि के द्वारा सम्पूर्ण जगत्‌‍ को पवित्र करती और अन्त में इन्द्रलोक पहुँचाती है।

पद्मपुराण के सृष्टि खंड अनुसार मकर संक्रांति में स्नान करना चाहिए। इससे दस हजार गोदान का फल प्राप्त होता है। उस समय किया हुआ तर्पण, दान और देवपूजन अक्षय होता है।

गरुड़पुराण के अनुसार मकर संक्रान्ति, चन्द्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण के अवसर पर गयातीर्थ में जाकर पिंडदान करना तीनों लोकों में दुर्लभ है।

मकर संक्रांति के दिन लक्ष्मी प्राप्ति व रोग नाश के लिए गोरस (दूध, दही, घी) से भगवान सूर्य, विपत्ति तथा शत्रु नाश के लिए तिल-गुड़ से भगवान शिव, यश-सम्मान एवं ज्ञान, विद्या आदि प्राप्ति के लिए वस्त्र से देवगुरु बृहस्पति की पूजा महापुण्यकाल / पुण्यकाल में करनी चाहिए।

मकर संक्रांति के दिन तिल (सफ़ेद तथा काले दोनों) का प्रयोग तथा तिल का दान विशेष लाभकारी है। विशेषतः तिल तथा गुड़ से बने मीठे पदार्थ जैसे की रेवड़ी, गजक आदि। सुबह नहाने वाले जल में भी तिल मिला लेने चाहिए।

विष्णु पुराण, द्वितीयांशः अध्यायः 8 के अनुसार

कर्कटावस्थिते भानौ दक्षिणायनमुच्यते ।

उत्तरायणम्प्युक्तं मकरस्थे दिवाकरे ।।

सूर्य के ‪‎कर्क‬ राशि में उपस्थित होने पर ‪‎दक्षिणायन‬ कहा जाता है और उसके ‪मकर ‬राशि पर आने से ‪उत्तरायण‬ कहलाता है|

धर्मसिन्धु के अनुसार

तिलतैलेन दीपाश्च देया: शिवगृहे शुभा:।

सतिलैस्तण्डुलैर्देवं पूजयेद्विधिवद् द्विजम्।।

तस्यां कृष्ण तिलै: स्नानं कार्ये चोद्वर्त्नम तिलै:

तिला देवाश्च होतव्या भक्ष्याश्चैवोत्तरायणे

उत्तरायण के दिन तिलों के तेल के दीपक से शिवमंदिर में प्रकाश करना चाहिए , तिलों सहित चावलों से विधिपूर्वक शिव पूजन करना चाहिए. ये भी बताया है की उत्तरायण में तिलों सेठ उबटन, काले तिलों से स्नान, तिलों का दान, होम तथा भक्षण करना चाहिए .

अत्र शंभौ घृताभिषेको महाफलः

वस्त्रदानं महाफलं

मकर संक्रांति के दिन महादेव जी को घृत से अभिषेक (स्नान) कराने से महाफल होता है . गरीबों को वस्त्रदान से महाफल होता है .

अत्र क्षीरेण भास्करं स्नानपयेव्सूर्यलोकप्राप्तिः

इस संक्रांति को दूध से सूर्य को स्नान करावै तो सूर्यलोक की प्राप्ति होती है

“क्षीराद्यैः स्नापयेद्यस्तु रविसंक्रमणे हरिम् ।

स वसेद्विष्णुसदने त्रिसप्तपुरुषैः सह ।।”

जो सूर्यकी संक्रान्तिके दिन दूध आदिसे श्रीहरिको नहलाता है , वह इक्कीस पीढ़ियोंके साथ विष्णुलोक में वास करता है।

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