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Chaitra Navratri 2024||नव संवत्सर 2081। हिंदू नव वर्ष 2081॥Navratri Special|

img 7436 2 1चैत्र नवरात्रि 2024 संपूर्ण जानकारी :-

नवरात्रि पूजन विधि

09 अप्रैल 2024 मंगलवार से नवरात्रि प्रारंभ ।

नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।

कलश / घट स्थापना विधि

घट स्थापना शुभ मुहूर्त

09 अप्रैल 2024 मंगलवार को सुबह 06:25 से 10:35 तक

अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:15 से दोपहर 01:05 तक

देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश / घट की स्थापना की जाती है। घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना । कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।*

सामग्री:-

👉🏻जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र

👉🏻जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी

👉🏻पात्र में बोने के लिए जौ

👉🏻घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश

(“हैमो वा राजतस्ताम्रो मृण्मयो वापि ह्यव्रणः” अर्थात ‘कलश’ सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का छेद रहित और सुदृढ़ उत्तम माना गया है। वह मङ्गलकार्यों में मङ्गलकारी होता है )

👉🏻कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल

👉🏻मौली (Sacred Thread)

👉🏻इत्र

👉🏻साबुत सुपारी

👉🏻दूर्वा

👉🏻कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के

👉🏻पंचरत्न

👉🏻अशोक या आम के 5 पत्ते

👉🏻कलश ढकने के लिए ढक्कन

👉🏻ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल

👉🏻पानी वाला नारियल

👉🏻नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा

👉🏻फूल माला

विधि

सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मौली बाँध दें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र डाल दें। कलश में पंचरत्न डालें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें।

श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार

पञ्चपल्लवसंयुक्तं वेदमन्त्रैः सुसंस्कृतम्। सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नैः समन्वितम्॥”

अर्थात कलश पंचपल्लवयुक्त, वैदिक मन्त्रों से भली भाँति संस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्न मई होना चाहिए।

नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मौली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: “अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय, ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय, तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है। नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।

अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। “हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इसमें पधारें।” अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें।

कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।

नवरात्रि के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें “हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।

उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।

नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है।

नवरात्रि के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है। दीपक के नीचे “चावल” रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा “सप्तधान्य” रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है

माता की पूजा “लाल रंग के कम्बल” के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है

नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। मान भगवती को इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है।

नवरात्रि के प्रतिदिन कंडे की धुनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कर्पूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नवरात्रि में पान और गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें

मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है। किस दिन किस चीज़ का भोग लगाना है ये हम विस्तार में आगे बताएँगे।

प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है।

श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार

एकैकां पूजयेत् कन्यामेकवृद्ध्या तथैव च। द्विगुणं त्रिगुणं वापि प्रत्येकं नवकन्तु वा॥”

अर्थात नित्य ही एक कुमारी का पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक-कुमारी की संख्या के वृद्धिक्रम से पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुने के वृद्धिक्रम से और या तो प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करें।

यदि कोई व्यक्ति नवरात्रि पर्यन्त प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ हैं तो उसे अष्टमी तिथि को विशेष रूप से अवश्य पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंश करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली करोङों योगिनियों सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुई थीं।

नौ दिनों में माता के अलग-अलग स्वरुपों की पूजा की जाती है. इन दिनों की अलग-अलग पूजा विधि होती है, जबकि नौ दिनों के लिए अलग-अलग मंत्री भी शास्त्रों में बनाए गए हैं. शास्त्रों के हिसाब से 9 दिनों में इन्ही मंत्रों के साथ माता की पूजा की जाती है. खास बात यह है कि अलग-अलग दिन माता को भोग भी अलग-अलग ही लगाया जाता है. नवरात्रि पर पूजन विधि से जुड़ी पूरी जानकारी अधोलिखित है :-

पहले दिन मां भगवती के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है. दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्माण्डा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवे दिन महागौरी और नौवें दिन सिद्धिदात्री के रूप में माता को पूजा जाता है. हर दिन मां के अलग-अलग मंत्रों का उच्चारण करने से मनोकामना पूरी होती है और व्रत सफल होता है. 

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1. पहला दिन यानि मां शैलपुत्री:– शैलपुत्री पूजन विधि ( Shailputri Puja Vidhi) :  दुर्गा को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करूणा और ममता का स्वरूप मानकर हम पूजते हैं, अत: इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता और और कलश में उन्हें विराजने हेतु प्रार्थना सहित उनका आहवान किया जाता है। नवरात्र पर कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है। पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा होती है. कलश में सप्तमृतिका यानी सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा सादर भेट किया जाता है और पंच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता है।इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है और इससे सभी देवी-देवता की पूजा होती है।इसे जयन्ती कहते हैं जिसे इस मंत्र के साथ अर्पित किया जाता है “जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नामोस्तुते”. इसी मंत्र से पुरोहित यजमान के परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर जयंती डालकर सुख, सम्पत्ति एवं आरोग्य का आर्शीवाद देते हैं।

शैलपुत्री पूजन महत्व (Significance of Worshipping Shailputri) :  देवी दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल पर बीच में स्थापित की जाती है और उनके दोनों तरफ यानी दायीं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा रहती है। वहीं बायीं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी रहती है तथा भगवान भोले नाथ की भी पूजा की जाती है। प्रथम पूजन के दिन “शैलपुत्री” के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती है।

मंत्रवन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌।

      वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

कलश स्थापना के पश्चात देवी दु्र्गा जिन्होंने दुर्गम नामक प्रलयंकारी अ-सुर का संहार कर अपने भक्तों को उसके त्रास से यानी पीड़ा से मुक्त कराया उस देवी का आह्वान किया जाता है. प्रतिदिन संध्या काल में देवी की आरती होती है. आरती में “जग जननी जय जय” और “जय अम्बे गौरी” के गीत भक्त जन गाते हैं.

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2. दूसरा दिन यानि मां ब्रह्मचारिणी: दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।मां दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा विधि:  देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा में सर्वप्रथम माता की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें तथा उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें व देवी को प्रसाद अर्पित करें। प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें। कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें। देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें-

मंत्र: दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

      देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को अरूहूल का फूल व कमल बेहद प्रिय होते हैं अत: इन फूलों की माला पहनायें, घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें।

मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ”

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।

ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।

शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

“मां ब्रह्मचारिणी का कवच” 

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।

अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥

पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥

षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।

अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

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3.तीसरा दिन यानि मां चंद्रघंटा: तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को पूजा जाता है. नवरात्र का तीसरा दिन भय से मुक्ति और अपार साहस प्राप्त करने का होता है। इस दिन मां के चंद्रघंटा स्वरुप की उपासना की जाती है। इनके सिर पर घंटे के आकार का चंद्रमा है। इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनके दसों हाथों में अ-स्त्र-शस्त्र हैं और इनकी मुद्रा युद्ध की मुद्रा है। मां चंद्रघंटा तंभ साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती है और ज्योतिष में इनका संबंध मंगल ग्रह से होता है।

ऐसे करें पूजा : मां चंद्रघंटा , जिनके माथे पर घंटे के आकार का एक चंद्र होता है. इनकी पूजा करने से शांति आती है, परिवार का कल्याण होता है. मां को लाल फूल चढ़ाएं, लाल सेब और गुड़ चढाएं, घंटा बजाकर पूजा करें, ढोल और नगाड़े बजाकर पूजा और आरती करें, शुत्रुओं की हार होगी। इस दिन गाय के दूध का प्रसाद चढ़ाने का विशेष विधान है। इससे हर तरह के दुखों से मुक्ति मिलती है।

मंत्र:पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।

     प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

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4. चौथा दिन यानि मां कूष्माण्डा: चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा की जाती है.नवरात्र के चौथे दिन मां पारांबरा भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। मान्‍यता ये है कि जब सृष्टि का अ-स्तित्व नहीं था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।अपनी मंद-मंद मुस्कान भर से ब्रम्हांड की उत्पत्ति करने के कारण ही इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है इसलिए ये सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। देवी कुष्मांडा का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है जहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के समान ही अलौकिक हैं।माता के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित होती हैं ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में मौजूद तेज मां कुष्मांडा की छाया है। मां कुष्‍माण्‍डा की आठ भुजाएं हैं। इसलिए मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। मां सिंह के वाहन पर सवार रहती हैं।

मंत्र: सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

      दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥

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5. पांचवां दिन यानि मां स्कंदमाता :नवरात्र का पांचवां दिनस्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह इनका भी वाहन है।

स्कन्दमाता की पूजा विधि : कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से जो साधक दुर्गा मां की उपासना कर रहे हैं उनके लिए दुर्गा पूजा का यह दिन विशुद्ध चक्र की साधना का होता है। इस चक्र का भेदन करने के लिए साधक को पहले मां की विधि सहित पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए कुश अथवा कम्बल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए जैसे आपने अब तक के चार दिनों में किया है फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए।

मंत्र: सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

      शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

अब पंचोपचार विधि से देवी स्कन्दमाता की पूजा कीजिए। नवरात्रे की पंचमी तिथि को कहीं कहीं भक्त जन उद्यंग ललिता का व्रत भी रखते हैं। इस व्रत को फलदायक कहा गया है। जो भक्त देवी स्कन्द माता की भक्ति-भाव सहित पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है। देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है।

स्कन्दमाता की मंत्र:

सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया ।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ।।

या देवी सर्वभू?तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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6.छठवां दिन यानि मां कात्यायनी:मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से मां के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।

मां कात्यायनी का स्वरूप : मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार और कमल का फूल है।देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। मान्यता के अनुसार देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है। भक्त को माता के पूजन द्वारा सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है।

मां कात्यायनी की पूजा विधि : नवरात्रों के छठे दिन मां कात्यायनी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कात्यायनी सभी प्रकार के भय से मुक्त करती हैं. मां कात्यायनी की भक्ति से धर्म, अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है. देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए।

मंत्र:चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

     कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

चढावा- षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए।

मनोकामना- मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं। शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए।

मनोवान्छित वर की प्राप्ति :माना जाता है कि जिन कन्याओं के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हें मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।

विवाह के लिए कात्यायनी मन्त्र- 

ऊॅं कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।’

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7. सातवां दिन यानि मां कालरात्रि:नवरात्रि के सातवें दिन होती है मां कालरात्रि की पूजा। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी कहा जाता है। कहा जाता है कि देवी दुर्गा ने रक्तबीज का वध करने के लिए कालरात्रि को अपने तेज से उत्पन्न किया था। इनकी उपासना से प्राणी सर्वथा भय मुक्त हो जाता है।ऐसा है मां का स्वरूप: इनके शरीर का रंग काला है। मां कालरात्रि के गले में नरमुंड की माला है। कालरात्रि के तीन नेत्र हैं और उनके केश खुले हुए हैं। मां गर्दभ  की सवारी करती हैं। मां के चार हाथ हैं एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा है।

मंत्र: 

    ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

     दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।

     जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।                    

     जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तु ते।।

– धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु।

बीज मंत्र :  ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ( तीन, सात या ग्यारह माला करें)

कालरात्रि पूजा विधि  :  सप्तमी की पूजा अन्य दिनों की तरह ही होती परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है। इस दिन कहीं कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित कि जाती है। सप्तमी की रात्रि ‘सिद्धियों’ की रात भी कही जाती है। पूजा विधान में शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार पहले कलश की पूजा करनी चाहिए।

नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है। इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं।

मनोकामना: मां की इस तरह की पूजा से मृत्यु का भय नहीं सताता। देवी का यह रूप ऋद्धि- सिद्धि प्रदान करने वाला है। देवी भगवती के प्रताप से सब मंगल ही मंगल होता है।

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8.आठवां दिन यानि मां महागौरी: नवरात्र के आठवें दिन आठवीं दुर्गा यानि की महागौरी की पूजा अर्चना और आराधना की जाती है। कहते हैं अपनी कठीन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था। तभी से इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया। 

श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः। 

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ।।

मां महागौरी की पूजा करने से मन पवित्र हो जाता है और भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन षोडशोपचार पूजन किया जाता है। मां की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। देवी महागौरी का अत्यंत गौर वर्ण हैं। इनके वस्त्र और आभूषण सफेद हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है।

पूजन विधि इस प्रकार है : सबसे पहले गंगा जल से शुद्धिकरण करके देवी मां महागौरी की प्रतिमा या तस्वीर चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें।इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता महागौरी सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। इस दिन माता दुर्गा को नारियल का भोग लगाएं और नारियल का दान भी करें।

मां महागौरी का उपासना मंत्र: 

श्वेते वृषे समारुढ़ा, श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरीं शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया।।

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9.नौवां दिन यानि मां सिद्धिदात्री :-नवरात्रि के नौवें और आखिरी दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां दुर्गा की नौवीं शक्ति देवी सिद्धिदात्री की पूजा करने से भक्तों को सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। देवी सिद्धिदात्री को मां सरस्वती का भी एक रूप माना जाता है क्योंकि माता अपने सफेद वस्त्र एवं अलंकार से सुसज्जित अपने भक्तों को महाज्ञान एवं मधुर स्वर से मन्त्र-मुग्ध करती है। सिद्धिदात्री मां की पूजा के बाद ही अगले दिन दशहरा त्योहार मनाया जाता है।

देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है, देवी की चार भुजाएं हैं। दाईं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है और बांई भुजा में शंख और कमल का फूल है। मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं। मां की आराधना वाले इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है।

ऐसे करें पूजा:  इस दिन माता सिद्धिदात्री को नवाह्न प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करने चाहिए। सर्वप्रथम कलश की पूजा व उसमें स्थपित सभी देवी-देवताओ का ध्यान करना चाहिए। इसके पश्चात माता के मंत्रो का जाप कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इस दिन नौ कन्याओं को घर में भोग लगाना चाहिए। नव-दुर्गाओं में सिद्धिदात्री अंतिम है तथा इनकी पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर और 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए। यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं है।इस तरह से की गई पूजा से माता अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न होती है। भक्तों को संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भक्तों को अपना सारा ध्यान निर्वाण चक्र की ओर लगाना चाहिए। यह चक्र हमारे कपाल के मध्य में स्थित होता है। ऐसा करने से भक्तों को माता सिद्धिदात्री की कृपा से उनके निर्वाण चक्र में उपस्थित शक्ति स्वतः ही प्राप्त हो जाती है।

मंत्र: सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

     सेव्यमाना सदा भूयाात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

देवी का बीज मंत्र :

ऊॅं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नमः ।।

मां सिद्धदात्री की पूजा में हवन करने के लिए दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोकों का प्रयोग किया जा सकता है।

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महाशिवरात्रि 2024 : Maha Shivratri 2024

img 7795 1 2img 7795 2 1 1महाशिवरात्रि 2024 उपाय

शुक्रवार, 08 मार्च को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन की गई शिव पूजा से पिछले समय से चली आ रही परेशानियां खत्म हो सकती हैं और धन लाभ भी मिल सकता है। यहां जानिए शास्त्रों में बताए गए उपाए|

भगवान शिव बहुत भोले हैं, यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा से उन्हें सिर्फ एक लोटा पानी भी अर्पित करे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसीलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। महाशिवरात्रि (08 मार्च शुक्रवार) पर शिव भक्त भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए अनेक उपाय करते हैं।

कुछ ऐसे ही छोटे और अचूक उपायों के बारे शिवपुराण में भी लिखा है। ये उपाय इतने सरल हैं कि इन्हें बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है। हर समस्या के समाधान के लिए शिवपुराण में एक अलग उपाय बताया गया है। ये उपाय इस प्रकार हैं-

महाशिवरात्रि पर करें ये आसान उपाय, प्रसन्न होंगे भोलेनाथ

शिवपुराण के अनुसार, जानिए भगवान शिव को कौन सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से क्या फल मिलता है-

1. बुखार होने पर भगवान शिव को जल चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जल द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।

2. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिला दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।

3. शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।

4. शिव को गंगा जल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।

5. शहद से भगवान शिव का अभिषेक करने से टीबी रोग में आराम मिलता है।

6. यदि शारीरिक रूप से कमजोर कोई व्यक्ति भगवान शिव का अभिषेक गाय के शुद्ध घी से करे तो उसकी कमजोरी दूर हो सकती है।

शिवपुराण के अनुसार, जानिए भगवान शिव को कौन-सा फूल चढ़ाने से क्या फल मिलता है-

1. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

2. चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।

3. अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने पर मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।

4. शमी वृक्ष के पत्तों से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।

5. बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।

6. जूही के फूल से भगवान शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।

7. कनेर के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।

8. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

9. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।

10. लाल डंठलवाला धतूरा शिव पूजन में शुभ माना गया है।

11. दूर्वा से भगवान शिव का पूजन करने पर आयु बढ़ती है।

आमदनी बढ़ाने के लिए

महाशिवरात्रि पर घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करें और उसकी पूजा करें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का 108 बार जाप करें-

ऐं ह्रीं श्रीं ऊं नम: शिवाय: श्रीं ह्रीं ऐं

प्रत्येक मंत्र के साथ बिल्वपत्र पारद शिवलिंग पर चढ़ाएं। बिल्वपत्र के तीनों दलों पर लाल चंदन से क्रमश: ऐं, ह्री, श्रीं लिखें। अंतिम 108 वां बिल्वपत्र को शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद निकाल लें तथा उसे अपने पूजन स्थान पर रखकर प्रतिदिन उसकी पूजा करें। माना जाता है ऐसा करने से व्यक्ति की आमदनी में इजाफा होता है।

संतान प्राप्ति के लिए उपाय

महाशिवरात्रि की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव की पूजा करें। इसके बाद गेहूं के आटे से 11 शिवलिंग बनाएं। अब प्रत्येक शिवलिंग का शिव महिम्न स्त्रोत से जलाभिषेक करें। इस प्रकार 11 बार जलाभिषेक करें। उस जल का कुछ भाग प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।

यह प्रयोग लगातार 21 दिन तक करें। गर्भ की रक्षा के लिए और संतान प्राप्ति के लिए गर्भ गौरी रुद्राक्ष भी धारण करें। इसे किसी शुभ दिन शुभ मुहूर्त देखकर धारण करें।

बीमारी ठीक करने के लिए उपाय

महाशिवरात्रि पर पानी में दूध व काले तिल डालकर शिवलिंग का अभिषेक करें। अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करें। अभिषेक करते समय ऊं जूं स: मंत्र का जप करते रहें|

शिवरात्रि पर करें इन 8 में से कोई 1 उपाय, दूर हो सकती है परेशानी

महाशिवरात्रि पर रात में किसी शिव मंदिर में दीपक जलाएं । शिव पुराण के अनुसार कुबेर देव ने पूर्व जन्म में रात के समय शिवलिंग के पास रोशनी की थी इसी वजह से अगले जन्म में वे देवताओं के कोषाध्यक्ष बने।

महाशिवरात्रि पर छोटा सा पारद (पारा) शिवलिंग लेकर आएं और घर के मंदिर में इसे स्थापित करें। शिवरात्रि से शुरू करके रोज इसकी पूजा करें । इस उपाय से घर की दरिद्रता दुर होती है और लक्ष्मी कृपा बनी रहती है।

यदि आप चाहें तो शिवरात्रि पर स्फटिक के शिवलिंग की पूजा कर सकते हैं। घर के मंदिर में जल, दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर से इस शिवलिंग को स्नान कराएं । मंत्र – ॐ नम: शिवाय । मंत्र जप कम से कम 108 बार करें।

हनुमानजी भगवान शिव के ही अंशावतार माने गए हैं। शिवरात्रि पर हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमानजी और शिवजी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। इनकी कृपा से भक्त की सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं।

किसी सुहागिन को सुहाग का सामान उपहार में दें । जो लोग यह उपाय करते है, उनके वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर हो सकती हैं। सुहाग का सामान जैसे – लाल साड़ी, लाल चूडियां, कुम -कुम आदि।

महाशिवरात्रि पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति को अनाज और धन का दान करें। शास्त्रों में बताया गया है कि गरिबों को दान करने से पुराने सभी पापों का असर खत्म हो सकता है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

जो लोग शिवरात्रि पर किसी बिल्व वृक्ष के नीचे खड़े होकर खीर और घी का दान करते हैं, उन्हें महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्ति होती है। ऐसे लोग जीवनभर सुख-सुविधाएं प्राप्ति करते हैं और कार्यों में सफल होते हैं।

शिव पुराण के अनुसार बिल्व वृक्ष महादेव का रुप है। इसलिए इसकी पूजा करें।फूल, कुम -कुम, प्रसाद आदि चीजें विशेष रुप से चढ़ाएं । इसकी पूजा से जल्दी शुभ फल मिलते हैं। शिवरात्रि पर बिल्व के पास दीपक जलाएं ।

महाशिवरात्रि

शिवरात्रि का व्रत, पूजन, जागरण और उपवास करनेवाले मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है। (स्कंद पुराण)

शिवरात्रि के समान पाप और भय मिटानेवाला दूसरा व्रत नहीं है। इसको करनेमात्र से सब पापों का क्षय हो जाता है। (शिव पुराण)

शिवरात्रि की रात ‘ॐ नमः शिवाय’ जप

शिवजी का पत्रम-पुष्पम् से पूजन करके मन से मन का संतोष करें, फिर ॐ नमः शिवाय…. ॐ नमः शिवाय…. शांति से जप करते गये। इस जप का बड़ा भारी महत्त्व है। अमुक मंत्र की अमुक प्रकार की रात्रि को शांत अवस्था में, जब वायुवेग न हो आप सौ माला जप करते हैं तो आपको कुछ-न-कुछ दिव्य अनुभव होंगे। अगर वायु-संबंधी बीमारी हैं तो ‘बं बं बं बं बं’ सवा लाख जप करते हो तो अस्सी प्रकार की वायु-संबंधी बीमारियाँ गायब !

ॐ नमः शिवाय मंत्र तो सब बोलते हैं लेकिन इसका छंद कौन सा है, इसके ऋषि कौन हैं, इसके देवता कौन हैं, इसका बीज क्या है, इसकी शक्ति क्या है, इसका कीलक क्या है – यह मैं बता देता हूँ। अथ ॐ नमः शिवाय मंत्र। वामदेव ऋषिः। पंक्तिः छंदः। शिवो देवता। ॐ बीजम्। नमः शक्तिः। शिवाय कीलकम्। अर्थात् ॐ नमः शिवाय का कीलक है ‘शिवाय’, ‘नमः’ है शक्ति, ॐ है बीज… हम इस उद्देश्य से (मन ही मन अपना उद्देश्य बोलें) शिवजी का मंत्र जप रहे हैं – ऐसा संकल्प करके जप किया जाय तो उस संकल्प की पूर्ति में मंत्र की शक्ति काम देगी।

किस धातु के शिवलिंग की पूजा करे

वैसे तो भगवान शिव का अभिषेक हमेशा करना चाहिए,लेकिन शिवरात्रि (08 मार्च, शुक्रवार) का दिन कुछ खास है। यह दिन भगवान शिवजी का विशेष रूप से प्रिय माना जाता है। कई ग्रंथों में भी इस बात का वर्णन मिलता है। भगवान शिव का अभिषेक करने पर उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है मनोकामना पूरी होती है। धर्मसिन्धू के दूसरे परिच्छेद के अनुसार,अगर किसी खास फल की इच्छा हो तो भगवान के विशेष शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। यहां जानिए किस धातु के बने शिवलिंग की पूजा करने से कौन-सा फल मिलता है।

1⃣ सोने के शिवलिंग पर अभिषेक करने से सत्यलोक (स्वर्ग) की प्राप्ति होती है ।

2⃣ मोती के शिवलिंग पर अभिषेक करने से रोगों का नाश होता है।

3⃣ हीरे से निर्मित शिवलिंग पर अभिषेक करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है ।

4⃣ पुखराज के शिवलिंग पर अभिषेक करने से धन-लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।

5⃣स्फटिक के शिवलिंग पर अभिषेक करने से मनुष्य की सारी कामनाएं पूरी हो जाती हैं

6⃣नीलम के शिवलिंग पर अभिषेक करने से सम्मान की प्राप्ति होती है ।

7⃣ चांदी से बने शिवलिंग पर अभिषेक करने से पितरों की मुक्ति होती है ।

8⃣ ताम्बे के शिवलिंग पर अभिषेक करने से लम्बी आयु की प्राप्ति होती है ।

9⃣ लोहे के शिवलिंग पर अभिषेक करने से शत्रुओं का नाश होता है ।

10. आटे से बने शिवलिंग पर अभिषेक करने से रोगों से मुक्ति मिलती है ।

1⃣1⃣मक्खन से बने शिवलिंग पर अभिषेक करने पर सभी सुख प्राप्त होते हैं ।

1⃣2⃣गुड़ के शिवलिंग पर अभिषेक करने से अन्न की प्राप्ति होती है ।

शिवरात्रि के दिन करने योग्य विशेष बातें

१. शिवरात्रि के दिन की शुरुआत ये श्लोक बोल के शुरू करें

देव देव महादेव नीलकंठ नमोस्तुते l

कर्तुम इच्छा म्याहम प्रोक्तं, शिवरात्रि व्रतं तव ll

2. काल सर्प के लिए महाशिवरात्रि के दिन घर के मुख्य दरवाजे पर पिसी हल्दी से स्वस्तिक बना देना….शिवलिंग पर दूध और बिल्व पत्र चढ़ाकर जप करना और रात को ईशान कोण में मुख करके जप करना l

3. शिवरात्रि के दिन ईशान कोण में मुख करके जप करने की महिमा विशेष है, क्योंकि ईशान के स्वामी शिव जी हैं l रात को जप करें, ईशान को दिया जलाकर पूर्व के तरफ रखें , लेकिन हमारा मुख ईशान में हो तो विशेष लाभ होगा l जप करते समय झोका आये तो खड़े होकर जप करना l

4. महाशिवरात्रि को कोई मंदिर में जाकर शिवजी पर दूध चढाते हैं तो ये ५ मंत्र बोलें

ॐ हरये नमः

ॐ महेश्वराए नमः

ॐ शूलपानायाय नमः

ॐ पिनाकपनाये नमः

ॐ पशुपतये नमः

कालसर्प दोष

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 08 मार्च, शुक्रवार को है। ज्योतिष के अनुसार,जिन लोगों को कालसर्प दोष है,वे यदि इस दिन कुछ विशेष उपाए करें तो इस दोष से होने वाली परेशानियों से राहत मिल सकती है।

कालसर्प दोष मुख्य रूप से 12 प्रकार का होता है,इसका निर्धारण जन्म कुंडली देखकर ही किनया जा सकता है। प्रत्येक कालसर्प दोष के निवारण के लिए अलग-अलग उपाए हैं। यदि आप जानते हैं कि आपकी कुंडली में कौन का कालसर्प दोष है तो उसके अनुसार आप महाशिवरात्रि पर उपाए कर सकते हैं। कालसर्प दोष के प्रकार व उनके उपाए इस प्रकार हैं-

१. अनन्त कालसर्प दोष

अनन्त कालसर्प दोष होने पर शिवरात्रि पर एकमुखी,आठमुखी अथवा नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

यदि इस दोष के कारण स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है,तो महाशिवरात्रि पर रांगे(एक धातु)से बना सिक्का नदी में प्रवाहित करें।

२. .कुलिक कालसर्प दोष

कुलिक नामक कालसर्प दोष होने पर दो रंग वाला कंबल अथवा गर्म वस्त्र दान करें।

चांदी की ठोस गोली बनवाकर उसकी पूजा करें और उसे अपने पास रखें।

३. वासुकि कालसर्प दोष

वासुकि कालसर्प दोष होने पर रात को सोते समय सिरहाने पर थोड़ा बाजरा रखें और सुबह उठकर उसे पक्षियों को खिला दें।

महाशिवरात्रि पर लाल धागे में तीन, आठ या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

४. शंखपाल कालसर्प दोष

शंखपाल कालसर्प दोष के निवारण के लिए 400 ग्राम साबुत बादाम बहते जल में प्रवाहित करें।

महाशिवरात्रि पर शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें।

५. पद्म कालसर्प दोष

पद्म कालसर्प दोष होने पर महाशिवरात्रि से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक रोज सरस्वती चालीसा का पाठ करें।

जरूरतमंदों को पीले वस्त्र का दान करें और तुलसी का पौधा लगाएं।

६. महापद्म कालसर्प दोष

महापद्म कालसर्प दोष के निदान के लिए हनुमान मंदिर में जाकर सुंदरकांड का पाठ करें।

महाशिवरात्रि पर गरीब, असहायों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दें।

७. तक्षक कालसर्प दोष

तक्षक कालसर्प योग के निवारण के लिए 11 नारियल बहते हुए जल में प्रवाहित करें।

सफेद कपड़े और चावल का दान करें।

८. कर्कोटक कालसर्प दोष

कर्कोटक कालसर्प योग होने पर बटुकभैरव के मंदिर में जाकर उन्हें दही-गुड़ का भोग लगाएं और पूजा करें।*

महाशिवरात्रि पर शीशे के आठ टुकड़े नदी में प्रवाहित करें।

९. शंखचूड़ कालसर्प दोष

शंखचूड़ नामक कालसर्प दोष की शांति के लिए महाशिवरात्रि की रात सोने से पहले सिरहाने के पास जौ रखें और उसे अगले दिन पक्षियों को खिला दें।

पांचमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

१०. घातक कालसर्प दोष

घातक कालसर्प के निवारण के लिए पीतल के बर्तन में गंगाजल भरकर अपने पूजा स्थल पर रखें।

चार मुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष हरे रंग के धागे में धारण करें।

११. विषधर कालसर्प दोष

विषधर कालसर्प के निदान के लिए परिवार के सदस्यों की संख्या के बराबर नारियल लेकर एक-एक नारियल पर उनका हाथ लगवाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करें।

महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के मंदिर में जाकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।

१२. शेषनाग कालसर्प दोष

शेषनाग कालसर्प दोष होने पर महाशिवरात्रि की पूर्व रात्रि को लाल कपड़े में थोड़े से बताशे व सफेद फूल बांधकर सिरहाने रखें और उसे अगले दिन सुबह उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।

महाशिवरात्रि पर गरीबों को दूध व अन्य सफेद वस्तुओं का दान करें।

महाशिवरात्रि पूजा

अर्ध रात्रि की पूजा के लिये स्कन्दपुराण में लिखा है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ‘निशिभ्रमन्ति भूतानि शक्तयः शूलभृद यतः । अतस्तस्यां चतुर्दश्यां सत्यां तत्पूजनं भवेत् ॥’ अर्थात् रात्रिके समय भूत, प्रेत, पिशाच, शक्तियाँ और स्वयं शिवजी भ्रमण करते हैं; अतः उस समय इनका पूजन करने से मनुष्य के पाप दूर हो जाते हैं । शिवपुराण में आया है “कालो निशीथो वै प्रोक्तोमध्ययामद्वयं निशि ॥ शिवपूजा विशेषेण तत्काले ऽभीष्टसिद्धिदा ॥ एवं ज्ञात्वा नरः कुर्वन्यथोक्तफलभाग्भवेत्” अर्थात रात के चार प्रहरों में से जो बीच के दो प्रहर हैं, उन्हें निशीधकाल कहा गया हैं | विशेषत: उसी कालमें की हुई भगवान शिव की पूजा अभीष्ट फल को देनेवाली होती है – ऐसा जानकर कर्म करनेवाला मनुष्य यथोक्त फलका भागी होता है |*

चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम कल्याणकारी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है। शिवरहस्य में कहा गया है ।*

“चतुर्दश्यां तु कृष्णायां फाल्गुने शिवपूजनम्। तामुपोष्य प्रयत्नेन विषयान् परिवर्जयेत।। शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्।”

शिवपुराण में ईशान संहिता के अनुसार “फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥” अर्थात फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए इसलिए इसे महाशिवरात्रि मानते हैं।

शिवपुराण में विद्येश्वर संहिता के अनुसार शिवरात्रि के दिन ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी ने अन्यान्य दिव्य उपहारों द्वारा सबसे पहले शिव पूजन किया था जिससे प्रसन्न होकर महेश्वर ने कहा था की “आजका दिन एक महान दिन है | इसमें तुम्हारे द्वारा जो आज मेरी पूजा हुई है, इससे मैं तुम लोगोंपर बहुत प्रसन्न हूँ | इसीकारण यह दिन परम पवित्र और महान – से – महान होगा | आज की यह तिथि ‘महाशिवरात्रि’ के नामसे विख्यात होकर मेरे लिये परम प्रिय होगी | इसके समय में जो मेरे लिंग (निष्कल – अंग – आकृति से रहित निराकार स्वरूप के प्रतीक ) वेर (सकल – साकाररूप के प्रतीक विग्रह) की पूजा करेगा, वह पुरुष जगत की सृष्टि और पालन आदि कार्य भी कर सकता हैं | जो महाशिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं जितेन्द्रिय रहकर अपनी शक्ति के अनुसार निश्चलभाव से मेरी यथोचित पूजा करेगा, उसको मिलनेवाले फल का वर्णन सुनो | एक वर्षतक निरंतर मेरी पूजा करनेपर जो फल मिलता हैं, वह सारा केवल महाशिवरात्रि को मेरा पूजन करने से मनुष्य तत्काल प्राप्त कर लेता हैं | जैसे पूर्ण चंद्रमा का उदय समुद्र की वृद्धि का अवसर हैं, उसी प्रकार यह महाशिवरात्रि तिथि मेरे धर्म की वृद्धि का समय हैं | इस तिथिमे मेरी स्थापना आदि का मंगलमय उत्सव होना चाहिये |

तिथितत्त्व के अनुसार शिव को प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि पर उपवास की प्रधानता तथा प्रमुखता है क्योंकि भगवान् शंकर ने खुद कहा है – “न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया। तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः।।” ‘मैं उस तिथि पर न तो स्नान, न वस्त्रों, न धूप, न पूजा, न पुष्पों से उतना प्रसन्न होता हूँ, जितना उपवास से।’

कंदपुराण में लिखा है “सागरो यदि शुष्येत क्षीयेत हिमवानपि। मेरुमन्दरशैलाश्च रीशैलो विन्ध्य एव च॥ चलन्त्येते कदाचिद्वै निश्चलं हि शिवव्रतम्।” अर्थात् ‘चाहे सागर सूख जाये, हिमालय भी क्षय को प्राप्त हो जाये, मन्दर, विन्ध्यादि पर्वत भी विचलित हो जाये, पर शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं हो सकता।’ इसका फल अवश्य मिलता है।

स्कंदपुराण’ में आता है “परात्परं नास्ति शिवरात्रि परात्परम् | न पूजयति भक्तयेशं रूद्रं त्रिभुवनेश्वरम् | जन्तुर्जन्मसहस्रेषु भ्रमते नात्र संशयः||” ‘शिवरात्रि व्रत परात्पर (सर्वश्रेष्ठ) है, इससे बढ़कर श्रेष्ठ कुछ नहीं है | जो जीव इस रात्रि में त्रिभुवनपति भगवान महादेव की भक्तिपूर्वक पूजा नहीं करता, वह अवश्य सहस्रों वर्षों तक जन्म-चक्रों में घूमता रहता है |’

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एकादशी को अन्न खाने से पाप लगता है और शिवरात्रि, रामनवमी तथा जन्माष्टमी के दिन अन्न खाने से दुगना पाप लगता है। अतः महाशिवरात्रि का व्रत अनिवार्य है।

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वसंत पंचमी 2024

img 6488 2 1वसंत पंचमी

14 फरवरी 2024 बुधवार को वसंत पंचमी है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण तथा देवीभागवत पुराण के अनुसार जो मानव माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन संयमपूर्वक उत्तम भक्ति के साथ षोडशोपचार से भगवती सरस्वती की अर्चना करता है, वह वैकुण्ठ धाम में स्थान पाता है। माघ शुक्ल पंचमी विद्यारम्भ की मुख्य तिथि है। “माघस्य शुक्लपञ्चम्यां विद्यारम्भदिनेऽपि च।”

भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती से कहा था

प्रतिविश्वेषु ते पूजां महतीं ते मुदाऽन्विताः ।

माघस्य शुक्लपञ्चम्यां विद्यारम्भेषु सुन्दरि ।।

मानवा मनवो देवा मुनीन्द्राश्च मुमुक्षवः ।

सन्तश्च योगिनः सिद्धा नागगन्धर्वकिंनराः ।।

मद्वरेण करिष्यन्ति कल्पे कल्पे यथाविधि ।

भक्तियुक्ताश्च दत्त्वा वै चोपचारांश्च षोडश ।।

काण्वशाखोक्तविधिना ध्यानेन स्तवनेन च ।

जितेन्द्रियाः संयताश्च पुस्तकेषु घटेऽपि च ।।

कृत्वा सुवर्णगुटिकां गन्धचन्दन चर्च्चिताम् ।

कवचं ते ग्रहीष्यन्ति कण्ठे वा दक्षिणे भुजे ।।

पठिष्यन्ति च विद्वांसः पूजाकाले च पूजिते ।

इत्युक्त्वा पूजयामास तां देवीं सर्वपूजितः ।।

ततस्तत्पूजनं चक्रुर्ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः ।

अनन्तश्चापि धर्मश्च मुनीन्द्राः सनकादयः ।।

सर्वे देवाश्च मनवो नृपा वा मानवादयः ।

बभूव पूजिता नित्या सर्वलोकैः सरस्वती ।।

“सुन्दरि! प्रत्येक ब्रह्माण्ड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्यारम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ तुम्हारी विशाल पूजा होगी। मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलयपर्यन्त प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी प्रसिद्ध मुनिगण, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस– सभी बड़ी भक्ति के साथ सोलह प्रकार के उपचारों के द्वारा तुम्हारी पूजा करेंगे। उन संयमशील जितेन्द्रिय पुरुषों के द्वारा कण्वशाखा में कही हुई विधि के अनुसार तुम्हारा ध्यान और पूजन होगा। वे कलश अथवा पुस्तक में तुम्हें आवाहित करेंगे। तुम्हारे कवच को भोजपत्र पर लिखकर उसे सोने की डिब्बी में रख गन्ध एवं चन्दन आदि से सुपूजित करके लोग अपने गले अथवा दाहिनी भुजा में धारण करेंगे। पूजा के पवित्र अवसर पर विद्वान पुरुषों के द्वारा तुम्हारा सम्यक प्रकार से स्तुति-पाठ होगा। इस प्रकार कहकर सर्वपूजित भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती की पूजा की। तत्पश्चात, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अनन्त, धर्म, मुनीश्वर, सनकगण, देवता, मुनि, राजा और मनुगण– इन सब ने भगवती सरस्वती की आराधना की। तब से ये सरस्वती सम्पूर्ण प्राणियों द्वारा सदा पूजित होने लगीं।

वसन्त पंचमी पर सरस्वती मूल मंत्र की कम से कम 1 माला जप जरूर करना चाहिए।*

मूल मंत्र : “श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा”

सरस्वती जी का वैदिक अष्टाक्षर मूल मंत्र जिसे भगवान शिव ने कणादमुनि तथा गौतम को, श्रीनारायण ने वाल्मीकि को, ब्रह्मा जी ने भृगु को, भृगुमुनि ने शुक्राचार्य को, कश्यप ने बृहस्पति को दिया था जिसको सिद्ध करने से मनुष्य बृहस्पति के समान हो जाता है ।

सरस्वती पूजा के लिए नैवैद्य (ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार)

नवनीतं दधि क्षीरं लाजांश्च तिललड्डुकान् ।

इक्षुमिक्षुरसं शुक्लवर्णं पक्वगुडं मधु ।।

स्वस्तिकं शर्करां शुक्लधान्यस्याक्षतमक्षतम्।

अस्विन्नशुक्लधान्यस्य पृथुकं शुक्लमोदकम् ।।

घृतसैन्धवसंस्कारैर्हविष्यैर्व्यञ्जनैस्तथा ।

यवगोधूमचूर्णानां पिष्टकं घृतसंस्कृतम् ।।

पिष्टकं स्वस्तिकस्यापि पक्वरम्भाफलस्य च ।

परमान्नं च सघृतं मिष्टान्नं च सुधोपमम् ।।

नारिकेलं तदुदकं केशरं मूलमार्द्रकम् ।

पक्वरम्भाफलं चारु श्रीफलं बदरीफलम् ।।

कालदेशोद्भवं पक्वफलं शुक्लं सुसंस्कृतम् ।।

ताजा मक्खन, दही, दूध, धान का लावा, तिल के लड्डू, सफेद गन्ना और उसका रस, उसे पकाकर बनाया हुआ गुड़, स्वास्तिक (एक प्रकार का पकवान), शक्कर या मिश्री, सफेद धान का चावल जो टूटा न हो (अक्षत), बिना उबाले हुए धान का चिउड़ा, सफेद लड्डू, घी और सेंधा नमक डालकर तैयार किये गये व्यंजन के साथ शास्त्रोक्त हविष्यान्न, जौ अथवा गेहूँ के आटे से घृत में तले हुए पदार्थ, पके हुए स्वच्छ केले का पिष्टक, उत्तम अन्न को घृत में पकाकर उससे बना हुआ अमृत के समान मधुर मिष्टान्न, नारियल, उसका पानी, कसेरू, मूली, अदरख, पका हुआ केला, बढ़िया बेल, बेर का फल, देश और काल के अनुसार उपलब्ध ऋतुफल तथा अन्य भी पवित्र स्वच्छ वर्ण के फल – ये सब नैवेद्य के समान हैं।

सुगन्धि शुक्लपुष्पं च गन्धाढ्यं शुक्लचन्दनम् ।

नवीनं शुक्लवस्त्रं च शङ्खं च सुमनोहरम् ।।

माल्यं च शुक्लपुष्पाणां मुक्ताहीरादिभूषणम् ।।

सुगन्धित सफेद पुष्प, सफेद स्वच्छ चन्दन तथा नवीन श्वेत वस्त्र और सुन्दर शंख देवी सरस्वती को अर्पण करना चाहिये। श्वेत पुष्पों की माला और श्वेत भूषण भी भगवती को चढ़ावे।*

स्मरण शक्ति प्राप्त करने के लिए वसंत पंचमी से शुरू करके प्रतिदिन याज्ञवल्क्य द्वारा रचित भगवती सरस्वती की स्तुति करनी चाहिए।

🙏जय श्री राम 🙏

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माघ-मौनी अमावस्या

मौनी अमावस्या

माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस नामकरण के लिए दो मान्यताएं हैं ।

इस दिन मौन रहना चाहिए। मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। इस दिन मौन रहकर प्रयाग संगम अथवा पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।

ऐसा माना जाता है इस दिन ब्रह्मा जी ने स्वयंभुव मनु को उत्पन्न कर सृष्टि का निर्माण कार्य आरम्भ किया था इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है।

पद्म पुराण’ के अनुसार माघ मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या को सूर्योदय से पहले जो तिल और जल से पितरों का तर्पण करता है, वह स्वर्ग में अक्षय सुख भोगता है। जो उक्त तिथि को तिल की गौ बनाकर उसे सब सामग्रियों सहित दान करता है, वह सात जन्म के पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में अक्षय सुख का भागी होता है। ब्राह्मण को भोजन के योग्य अन्न देने से भी अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जो उत्तम ब्राह्मण को अनाज, वस्त्र, घर आदि दान करता है, उसे लक्ष्मी कभी नहीं छोड़ती।

इस दिन पितृ पूजा, श्राद्ध, तर्पण, पिण्ड दान, नारायणी आदि कर सकते है। वैसे तो प्रत्येक अमावस्या पितृ कर्म के लिए विशेष होती है परंतु युगादि तिथि तथा मकरस्थ रवि होने के कारण मौनी अमावस्या का महत्व कहीं ज्यादा है। अगर आप पितृदोष से पीड़ित हैं अथवा आपको लगता है की आपके पिता, माता अथवा गुरु के कुल में किसी को अच्छी गति प्राप्त नहीं हुई है तो आज तर्पण (विशेषतः गंगा किनारे) जरूर करें।

अगर आप सौभाग्यशाली हैं और इस दिन गंगा स्नान के लिए जा रहे हैं तो तर्पण के अलावा भी बहुत कृत्य हैं। स्कंदपुराण में भगवान शिव का कथन है ।

जो पितरों के उद्देश्य से भक्तिपूर्वक गुड़, घी और तिल के साथ मधुयुक्त खीर गंगा में डालते हैं, उसके पितर सौ वर्षों तक तृप्त बने रहते हैं और वे संतुष्ट होकर अपनी संतानों को नाना प्रकार की मनोवाञ्छित वस्तुएं प्रदान करते हैं।

जो पितरों के उद्देश्य से गंगाजल के द्वारा शिवलिंग को स्नान कराते हैं, उनके पितर यदि भारी नरक में पड़े हों तो भी तृप्त हो जाते हैं।

जो एक बार भी ताँबे के पात्र में रखे हुए अष्टद्रव्ययुक्त (जल, दूध, कुश का अग्रभाग, घी, मधु, गाय का दही, लाल कनेर तथा लाल चंदन) गंगाजल से भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं, वे अपने पितरों के साथ सूर्यलोक में जाकर प्रतिष्ठित होते हैं।*

जो गंगा के तट पर एक बार भी पिण्डदान करता है, वह तिलमिश्रित जल के द्वारा अपने पितरों का भवसागर से उद्धार कर देता है।

पिता/माता/गुरु/भाई/मित्र/रिश्तेदार किसी के भी कुल में कोई किसी भी तरह, किसी भी अवस्था में मरा हो (चाहे अग्नि से या विष से या आत्मदाह अथवा अन्य प्रकार से मृत्यु) आज सब पितरों का उद्धार संभव है।

माघ कृष्ण पक्ष की अमावस्या युगादि तिथि है। अर्थात इस तिथि को चार युगों में से एक युग का आरम्भ हुआ था। स्कंदपुराण के अनुसार “माघे पञ्चदशी कृष्णा द्वापरादिः स्मृता बुधैः” द्वापर की आदि तिथि हैं जबकि कुछ विद्वान इसको कलियुग की प्रारम्भ तिथि मानते हैं। युगादि तिथियाँ बहुत ही शुभ होती हैं, इस दिन किया गया जप, तप, ध्यान, स्नान, दान, यज्ञ, हवन कई गुना फल देता है l प्रत्येक युग में सौ वर्षों तक दान करने से जो फल होता है, वह युगादि-काल में एक दिन के दान से प्राप्त हो जाता है ।

इस दिन साधु, महात्मा तथा के सेवन के लिए अग्नि प्रज्वलित करनी चाहिए तथा उन्हें रजाई, कम्बल आदि जाड़े के वस्त्र देने चाहिए। इस दिन गुड़ में काले तिल मिलाकर मोदक बनाने चाहिए तथा उन्हें लाल वस्त्र में बांधकर ब्राह्मणों को देना श्रेयस्कर है। इसी पुण्य पर्व पर विभिन्न प्रकार के नैवेद्य मिष्टान्नादि षट्रस व्यंजनों से ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें द्रव्य दक्षिणादि से संतुष्ट कर प्रणामादि कर सादर विदा करना चाहिए।

गौशाला में गायों के निमित्त हरे चारे, खल, चोकर, भूसी, गुड़ आदि पदार्थों का दान देना चाहिए तथा गौ की चरण रज को मस्तक पर धारण कर उसे साष्टांग प्रणाम करना चाहिए।

माघी अमावस्या को प्रात: स्नान के बाद ब्रह्मदेव और गायत्री का पूजन करें। गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, पलंग, दर्पण आदि का मंत्रोपचार के साथ ब्राह्मण को दान करें। पवित्र भाव से ब्राह्मण एवं परिजनों के साथ भोजन करें। इस दिन पीपल में आघ्र्य देकर परिक्रमा करें और दीप दान दें। इस दिन जिनके लिए व्रत करना संभव नहीं हो वह मीठा भोजन करें।

मौनी अमावस्या के दिन भूखे प्राणियों को भोजन कराने का भी विशेष महत्व है। इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद आटे की गोलियां बनाएं। गोलियां बनाते समय भगवान का नाम लेते रहें। इसके बाद समीप स्थित किसी तालाब या नदी में जाकर यह आटे की गोलियां मछलियों को खिला दें। इस उपाय से आपके जीवन की अनेक परेशानियों का अंत हो सकता है। अमावस्या के दिन चीटियों को शक्कर मिला हुआ आटा खिलाएं। ऐसा करने से आपके पाप कर्मों का क्षय होगा और पुण्य कर्म उदय होंगे। यही पुण्य कर्म आपकी मनोकामना पूर्ति में सहायक होंगे।

दशतीर्थसहस्राणि तिस्रः कोटयस्तथा पराः॥

समागच्छन्ति मध्यां तु प्रयागे भरतर्षभ।

माघमासं प्रयागे तु नियतः संशितव्रतः॥

स्नात्वा तु भरतश्रेष्ठ निर्मलः स्वर्गमाप्नुयात्।

(महाभारत, अनुशासन पर्व 25 । 36 -38)

अर्थात माघ मास की अमावस्या को प्रयाग राज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है। जो नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघ मास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।

🙏जय श्री राम 🙏

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How to Make Rahu Positive and strong || Rahu Ke Upay

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Nurturing the Positive Energy of Rahu: Time-Honored Remedies for Strength and Harmony

In the intricate tapestry of Vedic astrology, Rahu is a celestial force that holds immense potential for positive transformation. Rather than fearing its influence, delve into the ancient wisdom of “Rahu Ke Upay” – remedies that not only neutralize malefic effects but also amplify the positive aspects of this cosmic energy.

For complete information watch our YouTube video:- How to Make Rahu Positive and strong || Rahu Ke Upay

Embrace the essence of self-discovery as you explore time-tested methods to strengthen your connection with Rahu. From mindfulness practices to spiritual rituals, discover how aligning with Rahu’s energy can lead to personal growth, enhanced intuition, and a deeper understanding of life’s mysteries.

Uncover the subtle nuances of incorporating gemstones, mantras, and meditation into your daily routine to invoke the positive vibrations of Rahu. By fostering a harmonious relationship with this celestial body, you can harness its energies to navigate challenges, promote clarity of thought, and ultimately, cultivate a more fulfilling existence.

As you embark on this transformative journey, remember that the key lies not in resisting Rahu’s influence but in channeling its power towards your personal evolution. Explore the profound wisdom encoded in “Rahu Ke Upay” and embark on a path of self-empowerment, embracing the positive aspects of this celestial force for a brighter, more harmonious life.

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Navigating Rahu’s Influence: Practical Remedies and Insights for Each House

Understanding Rahu’s Role:

    • Pros: Rahu, a shadow planet, signifies ambition, desire, and unconventional thinking.
    • Cons: Its malefic influence can lead to obsessions, illusionary pursuits, and unexpected challenges.
  1. Rahu in the First House:

    • Pros: Enhances self-expression, charisma, and courage.

    • Cons: Tendency towards arrogance, impulsiveness, and health issues.

    • Remedies: Wear Gomed (Hessonite) gemstone, chant Rahu mantras, and practice mindfulness to balance self-perception.

  2. Rahu in the Second House:

    • Pros: Amplifies financial gains, communication skills, and creative thinking.

    • Cons: Potential for financial instability, speech issues, and strained family relations.

    • Remedies: Offer mustard oil at a Shani temple, recite Rahu Beej mantra, and cultivate financial discipline.

  3. Rahu in the Third House:

    • Pros: Boosts courage, communication, and networking abilities.

    • Cons: Prone to misunderstandings, conflicts with siblings, and restlessness.

    • Remedies: Wear blue sapphire, perform rituals on Saturdays, and practice open communication to maintain relationships.

  4. Rahu in the Fourth House:

    • Pros: Strengthens domestic harmony, intuition, and emotional stability.

    • Cons: Possible disruptions in family life, property disputes, and emotional turmoil.

    • Remedies: Use silver utensils, chant Rahu stotra, and foster a peaceful home environment.

  5. Rahu in the Fifth House:

    • Pros: Boosts creativity, intelligence, and spiritual pursuits.

    • Cons: Challenges in childbearing, strained relationships with children, and impulsivity.

    • Remedies: Offer red flowers to Lord Hanuman, wear red coral, and practice mindfulness for emotional balance.

  6. Rahu in the Sixth House:

    • Pros: Strengthens determination, victory over enemies, and health improvement.

    • Cons: Potential health issues, legal disputes, and conflicts at the workplace.

    • Remedies: Wear a cat’s eye gemstone, chant Rahu mantra, and engage in acts of charity for positive karmic balance.

  7. Rahu in the Seventh House:

    • Pros: Enhances business acumen, partnerships, and relationship depth.

    • Cons: Tendency towards unconventional relationships, conflicts with partners, and business challenges.

    • Remedies: Perform rituals on Tuesdays, wear Gomed, and practice open communication in relationships.

  8. Rahu in the Eighth House:

    • Pros: Facilitates spiritual growth, hidden talents, and financial gains through inheritance.

    • Cons: Potential for accidents, mysterious circumstances, and financial losses.

    • Remedies: Chant Mahamrityunjaya mantra, wear black or blue sapphire, and maintain caution in financial matters.

  9. Rahu in the Ninth House:

  • Pros: Boosts spiritual pursuits, wisdom, and long-distance travels.

  • Cons: Tendency towards religious conflicts, legal issues related to father, and philosophical disagreements.

  • Remedies: Wear yellow sapphire, perform rituals on Thursdays, and engage in charitable activities

10. Rahu in the Tenth House:

    • Pros: Amplifies career success, ambition, and leadership qualities.

    • Cons: Tendency towards workaholism, power struggles, and challenges in maintaining work-life balance.

    • Remedies: Wear a blue sapphire, engage in acts of service, and practice mindfulness in career decisions.

  1. Rahu in the Eleventh House:

    • Pros: Enhances social connections, financial gains, and networking abilities.

    • Cons: Potential for unrealistic goals, strained relationships with elder siblings, and overindulgence.

    • Remedies: Chant Rahu mantra, wear a hessonite gemstone, and focus on setting realistic financial objectives.

  2. Rahu in the Twelfth House:

    • Pros: Facilitates spiritual growth, intuitive abilities, and creativity.

    • Cons: Tendency towards isolation, hidden enemies, and challenges related to foreign travel.

    • Remedies: Wear cat’s eye gemstone, engage in charitable activities, and practice meditation for emotional balance.

In navigating Rahu’s influence, it’s essential to approach these insights with an open mind, understanding that astrology provides guidance rather than determinism. Implementing remedies thoughtfully and seeking the guidance of experienced astrologers can help harmonize the cosmic energies for a more balanced and fulfilling life.

Remember, consulting with a qualified astrologer is crucial for personalized insights and remedies tailored to your unique astrological profile.

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माघ मास 2024

माघ मास 2024

25 जनवरी से लेकर 24 फरवरी तक माघ स्नान (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार माघ मास दिनांक 10 फरवरी से) | माघ स्नान से बढ़कर पवित्र पाप नाशक दूसरा कोई व्रत नही है | एकादशी के व्रत की महिमा है, गंगा स्नान की महिमा है, लेकिन माघ मास में सभी तिथियाँ पर्व हैं, सभी तिथियाँ पूनम हैं | और माघ मास में सूर्योदय से थोड़ी देर पहले स्नान करना पाप नाशक और आरोग्य प्रद और प्रभाव बढ़ाने वाला है | पाप नाशनी उर्जा मिलने से बुद्धि शुद्ध होती है, इरादे सुंदर होते हैं |

पद्म पुराण में ब्रह्म ऋषि भृगु कहते हैं की तप परम ध्यानं त्रेता याम जन्म तथाह | द्वापरे व् कलो दानं | माघ सर्व युगे शुच ||

सत युग में तपस्या से उत्तम पद की प्राप्ति होती है, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में भगवत पूजा से और कलियुग में दान सर्वोपरी माना गया है

दानं केवलं कलियुगे ||

परन्तु माघ स्नान तो सभी युगों में श्रेष्ठ माना गया है |

सतयुग में सत्य की प्रधानता थी, त्रेता में तप की, द्वापर में यज्ञकी, कलियुग में दान की लेकिन माघ मास में स्नान की चारो युग में बड़ी भारी महिमा है | सभी दिन माघ मास में स्नान कर सकें तो बहुत अच्छा नहीं तो ३ दिन तो लगातार करना चाहिए | बीच में तो करें लेकिन आखरी ३ दिन तो जरूर करना चाहिए | माघ मास का इतना प्रभाव है कि सभी जल गंगा जल के तीर्थ पर्व के समान हैं |

पुष्कर, कुरुक्षेत्र, काशी, प्रयाग में १० वर्ष पवित्र शौच, संतोष आदि नियम पालने से जो फल मिलता है माघ मास में ३ दिन स्नान करने से वो मिल जाता है, खाली ३ दिन | माघ मास प्रात: स्नान सब कुछ देता है | आयु, आरोग्य, रूप, बल, सौभाग्य, सदाचरण देता है |

जिनके बच्चे सदाचरण से गिर गए हैं उनको भी पुचकार के, इनाम देकर भी बच्चो को स्नान कराओ तो बच्चों को समझाने से, मारने-पीटने से या और कुछ करने से उतना नहीं सुधर सकते हैं, घर से निकाल देने से भी इतना नहीं सुधरेंगे जितना माघ मास के स्नान से तो सदआचरण, संतान वृद्धि, सत्संग, सत्य और उदार भाव आदि का प्रादितय होता है | व्यक्ति की सुदंरता उत्तम गुण समझ, उतम गुण से सम्पन होती है | नर्क का डर उसके लिए सदा के लिए खत्म हो जाता है | मरने के बाद फिर वो नर्क में नही जायेगा |

दरिद्रता और पाप दूर हो जायेंगे | दुर्भाग्य का कीचड नाश हो जायेगा | यत्न पूर्वक माघ स्नान, माघ प्रात: स्नान से विद्या निर्मल होती है | मलिन विद्या क्या है ? कि पढ़-लिख के दूसरों को ठगों | दारू पियो, क्लबों में जाओ, बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड करो ये मलिन विद्या है | लेकिन निर्मल विद्या होगी तो ये पापाचरण में रूचि नही होगी |

माघ प्रात: स्नान से विद्या निर्मल, कीर्ति बढ़ती है, आरोग्य और आयुष्य, अक्षय धन की प्राप्ति होती है | जो धन कभी नष्ट ना हो, वह अक्षय धन की भी प्राप्ति होती है | रुपये-पैसे तो छोड़के मरना पड़ता है, दूसरा अक्षय धन वो भी प्राप्त होता है | समस्त पापों से मुक्ति और इंद्र लोक की प्राप्ति सहज में हो जाती है अर्थात स्वर्ग लोक की प्राप्ति |

पद्म पुराण में वशिष्टजी भगवान कहते हैं, भगवान के गुरु, भगवान वशिष्टजी कहते हैं वैशाख में जल, अन्न दान उत्तम हैं | कार्तिक में तपस्या और पूजा, माघ में जप और होम दान उत्तम है |

प्रिय वस्तु अर्थात रूचिकर वस्तु का त्याग करने से व्यक्ति वासनाओं की गुलामी के जंजाल को काटने का बल ले आता है | नियम पालन, पवित्र नियम पालने से अधर्म की जड़े कटती हैं | जो लोग तत्वज्ञान सुनते हैं लेकिन अधर्म करते रहते हैं तो तत्वज्ञान में रूचि नहीं होती, तत्वज्ञान उनको पचता नहीं है |

मूर्ख हृदय न चेतिए यदपि गुरु मिले विरंची सम

ब्रह्माजी जैसा गुरु मिले लेकिन जिसको अधर्म में रूचि है वह फिर फिसल जाता है | मैं मिलियनर, बिलियनर, तिलियनर बनू | लेकिन वो सुसाईड करके मर गए कई मिलियनर, कई तिलियनर, बड़े-बड़े | तो बड़े धनाढ़्य थे, और उनकी बड़ी दुर्गति हुई | तो जिस वस्तु में आसक्ति है उस वस्तु को बल पूर्वक त्याग दे तो अधर्म की जड़े कटती हैं |

सकाम भावना से माघ महिने का स्नान करने वाले को मनोवांछित फल प्राप्त होता है लेकिन निष्काम भाव से कुछ नहीं चाहिए खाली भगवत प्रसन्नता, भगवत प्राप्ति के लिए माघ का स्नान करता है, तो उसको भगवत प्राप्ति में भी बहुत-बहुत आसानी होती है |

सामर्थ्य के अनुसार प्रति दिन हवन और १ बार भोजन करें माघ मास में | ३-३ बार खाना ये आध्यात्मिक जगत में और बच्चों के लिए ३-३ बार भोजन बुद्धि मोटी बना देगा | माघ मास में जरा नाश्ते से बच जाओ | २ टाईम भोजन करो | लिखा तो १ टाईम है लेकिन फिर भी २ टाईम कर सकते हैं |

माघ मास में पति-पत्नी के सम्पर्क से दूर रहने वाला व्यक्ति दीर्घ आयु वाला रहता है और सम्पर्क करने वाले की आयुष्य नाश होती है | भूमि पे शयन नहीं तो गद्दा हटाकर सादे बिस्तर पर, पलंग पर और समर्थ जितना हो धन में, विद्या में, जितना भी कमजोर हो, असमर्थ हो, उतना ही उसको बल पूर्वक माघ स्नान कर लेना चाहिए | तो धन में, बल में, विद्या में बढ़ेगा | माघ मास का स्नान असमर्थ को सामर्थ्य देता है, निर्धन को धन देता है, बीमार को आरोग्य देता है | पापी को पुण्य, निर्बल को बल देता है | माघ मास में तिल उबटन स्नान | मिक्सी में पिस जाते हैं थोडा पानी में घोल बनाकर शरीर को मलकर फिर तिल और जौ वो पुण्य स्नान है | उबटन स्नान, तर्पण, हवन और दान और भोजन, भोजन में भी थोडा तिल हो जाये | वो कष्ट निवारक है |

पुण्यदायी स्नान सुधारे स्वभाव

माघ मास में प्रात:स्नान (ब्राम्हमुहूर्त में स्नान) सब कुछ देता है | आयुष्य लम्बा करता है, अकाल मृत्यु से रक्षा करता है, आरोग्य, रूप, बल, सौभाग्य व सदाचरण देता है | जो बच्चे सदाचरण के मार्ग से हट गये हैं उनको भी पुचकारके, इनाम देकर भी प्रात:स्नान कराओ तो उन्हें समझाने से, मारने-पीटने से या और कुछ करने से वे उतना नहीं सुधर सकते हैं, घर से निकाल देने से भी इतना नहीं सुधरेंगे जितना माघ मास में सुबह का स्नान करने से वे सुधरेंगे |

तो माघ स्नान से सदाचार, संतानवृद्धि, सत्संग, सत्य आचरण उदारभाव आदि का प्राकट्य होता है | व्यक्ति की सुंदरता माने समझ उत्तम गुणों से सम्पन्न हो जाती है | उसकी दरिद्रता और पाप दूर हो जाते हैं | दुर्भाग्य का कीचड़ सूख जाता है | माघ मास में सत्संग-प्रात:स्नान जिसने किया, उसके लिए नरक का डर सदा के लिए खत्म हो जाता है | मरने के बाद वह नरक में नहीं जायेगा | माघ मास के प्रात:स्नान से वृत्तियाँ निर्मल होती हैं, विचार ऊँचे होते हैं | समस्त पापों से मुक्ति होती है | ईश्वरप्राप्ति नहीं करनी हो तब भी माघ मास का सत्संग और पुण्यस्नान स्वर्गलोक तो सहज में ही तुम्हारा पक्का करा देता है | माघ मास का पुण्यस्नान यत्नपूर्वक करना चाहिए |

यत्नपूर्वक माघ मास के प्रात:स्नान से विद्या निर्मल होती है | मलिन विद्या क्या है ? पढ़-लिखके दूसरों को ठगो, दारु पियो, क्लबों में जाओ, बॉयफ्रेंड – गर्लफ्रेंड करो – यह मलिन विद्या है | लेकिन निर्मल विद्या होगी तो इस पापाचरण में रूचि नहीं होगी | माघ के प्रात:स्नान से निर्मल विद्या व कीर्ति मिलती है | ‘अक्षय धन’ की प्राप्ति होती है | रूपये – पैसे तो छोड़के मरना पड़ता है | दूसरा होता है ‘अक्षय धन’, जो धन कभी नष्ट न हो उसकी भी प्राप्ति होती है समस्त पापों से मुक्ति और इन्द्रलोक अर्थात स्वर्गलोक की प्राप्ति सहज में हो जाती है |

पद्म पुराण’ में भगवान राम के गुरुदेव वसिष्ठजी कहते हैं कि ‘वैशाख में जलदान. अन्नदान उत्तम माना जाता है और कार्तिक में तपस्या, पूजा लेकिन माघ में जप, होम और दान उत्तम माना गया है |’

माघ मास विशेष :-

माघ मास हिंदू पञ्चाङ्ग का 11 वां चंद्रमास है। इस मास में मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने के कारण इसका नाम माघ रखा गया (मघायुक्ता पौर्णमासी यत्र मासे सः)।

उत्तर भारत हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ मास प्रारंभ हो चुका है।

माघ मास में इन तिथियों शुभ काम नहीं करना चाहिए।

माघ मास में श्रवण और मूल शून्य नक्षत्र हैं इनमें कार्य करने से धन का नाश होता है।

माघ मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी व शुक्ल पक्ष की षष्ठी मास शून्य तिथियां होती हैं।

महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार

माघं तु नियतो मासमेकभक्तेन य: क्षिपेत्।

श्रीमत्कुले ज्ञातिमध्ये स महत्त्वं प्रपद्यते।।

अर्थात जो माघ मास में नियमपूर्वक एक समय भोजन करता है, वह धनवान कुल में जन्म लेकर अपने कुटुम्बजनों में महत्व को प्राप्त होता है।

माघ में मूली का त्याग करना चाहिए। देवता और पितर को भी मूली अर्पण न करें।

श्री हरि नारायण को माघ मास अत्यंत प्रिय है। वस्तुत: यह मास प्रातः स्नान (माघ स्नान), कल्पवास, पूजा-जप-तप, अनुष्ठान, भगवद्भक्ति, साधु-संतों की कृपा प्राप्त करने का उत्तम मास है। माघ मास की विशिष्टता का वर्णन करते हुए महामुनि वशिष्ठ ने कहा है, ‘जिस प्रकार चंद्रमा को देखकर कमलिनी तथा सूर्य को देखकर कमल प्रस्फुटित और पल्लवित होता है, उसी प्रकार माघ मास में साधु-संतों, महर्षियों के सानिध्य से मानव बुद्धि पुष्पित, पल्लवित और प्रफुल्लित होती है। यानी प्राणी को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।

पद्मपुराण, उत्तरपर्व में कहा गया है

ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी

मासानां च तथा माघः श्रेष्ठः सर्वेषु कर्मसु

अर्थात जैसे ग्रहों में सूर्य और नक्षत्रों में चन्द्रमा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार महीनों में माघ मास श्रेष्ठ है।

पद्मपुराण में कहा गया है की माघ मास आने पर नाना प्रकार के फूलों से भगवान की पूजा करें। उस समय कपूर से तथा नाना प्रकार के नैवेद्य एवं लड्डूओं से पूजा होनी चाहिए। इस प्रकार देवदेवेश्वर के पूजित होने पर मनुष्य निश्चय ही मनोवाञ्छित फलों को प्राप्त कर लेता है।

पद्मपुराण में वसिष्ठजी कहते हैं कि वैशाख में जल और अन्न का दान उत्तम है, कार्तिक में तपस्या और पूजा की प्रधानता है तथा माघ में जप, होम और दान ये तीन बातें विशेष हैं। जिन लोगों ने माघ में प्रातः स्नान, नाना प्रकार का दान और भगवान विष्णु का स्तोत्र पाठ किया है, वे दिव्यधाम में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं।

माघ मास में प्रातःकाल स्नान का विशेष महत्व है

व्रतैर्दानैस्तपोभिश्च न तथा प्रीयते हरि:।

माघमज्जनमात्रेण यथा प्रीणाति केशव:।।

*प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापापनुक्तये।

माघस्नानं प्रकुर्वीत स्वर्ग लाभाय मानव:।।

पूरे माघ मास में प्रयाग में निवास तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम में स्नान बहुत भाग्यशाली मनुष्य को प्राप्त होता है ।

स्कन्दपुराण वैष्णवखण्ड के अनुसार

प्रयागो माघमासे तु पुष्करं कार्तिके तथा ।।

अवन्ती माधवे मासि हन्यात्पापं युगार्जितम् ।।

माघ मास में प्रयाग, कार्तिक में पुष्कर और वैशाख मास में अवन्तीपुरी (उज्जैन) – ये एक युगतक उपार्जित किये हुए पापों का नाश कर डालते हैं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार

जो व्रती पुरुष चैत्र अथवा माघ मास में शंकर की पूजा करता है तथा बेंत लेकर उनके सम्मुख रात-दिन भक्ति पूर्वक नृत्य करने में तत्पर रहता है, वह चाहे एक मास, आधा मास, दस दिन, सात दिन अथवा दो ही दिन या एक ही दिन ऐसा क्यों न करे, उसे दिन की संख्या के बराबर युगों तक भगवान शिव के लोक में प्रतिष्ठा प्राप्त हो जाती है।

माघ में तिलों का दान जरूर जरूर करना चाहिए। विशेषतः तिलों से भरकर ताम्बे का पात्र दान देना चाहिए।

महाभारत अनुशासन पर्व के 66वें अध्याय के अनुसार

माघ मासे तिलान् यस्तु ब्राह्मणेभ्यः प्रयच्छति।

सर्वसत्वसमकीर्णं नरकं स न पश्यति॥

जो माघ मास में ब्राह्मणों को तिल दान करता है, वह समस्त जन्तुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नहीं करता।

माघ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मन्वंतर तिथि कहते है उस दिन जो कुछ दान दिया जाता है उसका फल अक्षय बताया गया है ( पद्मपुराण – सृष्टि खंड )

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